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Maratha Quota: मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र सरकार झुकी, जानें किन राज्यों में 50% से ज्यादा है कोटा सिस्टम?

Maratha Quota: मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र सरकार झुकी, जानें किन राज्यों में 50% से ज्यादा है कोटा सिस्टम?

Maratha Quota: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर लंबे समय से चल रहा आंदोलन हाल ही में तब खत्म हुआ, जब सरकार ने आंदोलनकारी मनोज जरांगे की छह मांगें मान लीं। जरांगे पांच दिन से अनशन पर थे। उनकी मांग थी कि मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाए, पुराने दस्तावेजों की जांच के लिए गांव स्तर पर समिति बने, 1961 से पहले के भूमि अभिलेख उपलब्ध कराए जाएं और पात्र मराठों को ओबीसी कोटे में शामिल किया जाए। सरकार के इस फैसले के बाद मराठा समुदाय में खुशी की लहर है। लेकिन यह मुद्दा एक बार फिर आरक्षण की सीमा को लेकर चर्चा में आ गया है। देश में कई राज्य ऐसे हैं, जहां आरक्षण 50 फीसदी की तय सीमा से ज्यादा है। आइए जानते हैं कि ये राज्य कौन-कौन से हैं।

तमिलनाडु में आरक्षण का आंकड़ा सबसे ज्यादा है। यहां कुल 69 फीसदी आरक्षण लागू है। इसमें 50 फीसदी हिस्सा ओबीसी के लिए, 18 फीसदी एससी के लिए और 1 फीसदी एसटी के लिए आरक्षित है। इस व्यवस्था को 1993 में तमिलनाडु सरकार ने संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करके कानूनी सुरक्षा दी थी। इसका मतलब है कि इस कानून को कोर्ट में आसानी से चुनौती नहीं दी जा सकती। यही वजह है कि तमिलनाडु में इतने सालों से 69 फीसदी आरक्षण बरकरार है।

बिहार में भी आरक्षण को लेकर बड़ा कदम उठाया गया था। 2023 में बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75 फीसदी करने की कोशिश की थी। इसमें एससी, एसटी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए कोटा बढ़ाया गया था। लेकिन पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी, और मामला अभी अदालत में है। बिहार का यह कदम जातिगत जनगणना के आधार पर लिया गया था, लेकिन कानूनी अड़चनों ने इसे लागू होने से रोक दिया।

कर्नाटक में आरक्षण की सीमा करीब 66 फीसदी तक पहुंच चुकी है। यहां ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों के लिए बड़ा हिस्सा तय किया गया है। हाल ही में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 32 फीसदी से बढ़ाकर 51 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा था, जिससे कुल आरक्षण 85 फीसदी तक हो सकता है। हालांकि, इस कदम को भी कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। केरल में भी आरक्षण का आंकड़ा 60 फीसदी के आसपास है, जिसमें ओबीसी को 40 फीसदी, एससी को 8 फीसदी और एसटी को 2 फीसदी कोटा मिलता है।

तेलंगाना में आरक्षण 62 से 64 फीसदी तक है। यहां मुस्लिम समुदाय और एसटी वर्ग के लिए अतिरिक्त कोटा देने की वजह से यह सीमा बढ़ी है। छत्तीसगढ़ ने भी 58 फीसदी तक आरक्षण लागू किया था, जिसमें एसटी को 32 फीसदी, एससी को 13 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी कोटा दिया गया। लेकिन यह मामला भी अदालत में अटका हुआ है।

उत्तर-पूर्वी राज्यों में जनजातीय आबादी ज्यादा होने की वजह से आरक्षण की सीमा काफी ऊंची है। सिक्किम में 85 फीसदी आरक्षण लागू है, जिसमें 7 फीसदी एससी, 18 फीसदी एसटी, 40 फीसदी ओबीसी और 20 फीसदी स्थानीय समुदायों के लिए है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में भी आरक्षण 80 फीसदी तक है, जो ज्यादातर एसटी समुदाय के लिए है। इन राज्यों को संविधान के तहत विशेष स्वायत्तता मिली हुई है, जिसकी वजह से वे इतना ज्यादा आरक्षण दे पाते हैं।

लद्दाख में हाल ही में केंद्र सरकार ने स्थानीय निवासियों के लिए 85 फीसदी नौकरियां आरक्षित की हैं। हालांकि, यह सामान्य आरक्षण नीति से अलग विशेष प्रावधानों के तहत है। इन सभी राज्यों में आरक्षण की ऊंची सीमा वहां की सामाजिक और जनसांख्यिकीय स्थिति को ध्यान में रखकर तय की गई है।

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