महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। मराठा समुदाय के नेता मनोज जरांगे पाटिल ने 5वें दिन अपना अनिश्चितकालीन अनशन खत्म कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से अपील की कि वे आकर मुलाकात करें और मराठा समुदाय के साथ चल रही कटुता को खत्म करें। ये खबर न सिर्फ मराठा समुदाय के लिए, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के लिए एक बड़ा कदम है। आइए, इस घटना को आसान और रोचक तरीके से समझते हैं।
अनशन खत्म, लेकिन मांगें पूरी होने की राह
मनोज जरांगे पाटिल ने मुंबई के आजाद मैदान में 29 अगस्त, 2025 को अनशन शुरू किया था। उनकी मांग थी कि मराठा समुदाय को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र देकर OBC कोटे में 27% आरक्षण दिया जाए। 5वें दिन, जरांगे ने सरकार के आश्वासन के बाद अनशन तोड़ दिया। उन्होंने कहा, “हमारी मांगों पर सरकार ने ध्यान दिया है। अब हम गांव की ओर लौट रहे हैं।” ये अनशन खत्म करना उनके लिए एक जीत की तरह है, क्योंकि सरकार ने उनकी कई मांगें मान ली हैं, जिनमें मराठा-कुनबी समानता को मान्यता देना और आंदोलनकारियों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेना शामिल है।
फडणवीस से मुलाकात की शर्त
जरांगे ने अनशन तोड़ने से पहले एक शर्त रखी थी। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार से अपील की कि वे व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलने आएं। उनका कहना था, “मराठा समुदाय और नेताओं के बीच जो कटुता है, उसे खत्म करने के लिए फडणवीस साहेब को आना चाहिए। अगर वे नहीं आए, तो ये कटुता बनी रहेगी।” जरांगे का मानना था कि नेताओं की मौजूदगी से न सिर्फ मराठा समुदाय का भरोसा बढ़ेगा, बल्कि रिश्तों में आई खटास भी खत्म होगी।
सरकार का जवाब और विखे पाटिल की भूमिका
मराठा आरक्षण पर बनी कैबिनेट उप-समिति के अध्यक्ष और राजस्व मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने जरांगे से अनशन खत्म करने की अपील की। उन्होंने कहा, “आज अनशन खत्म कर लें, बाद में हम मुख्यमंत्री से मुलाकात कराएंगे।” विखे पाटिल ने फडणवीस की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी मदद के बिना ये मुमकिन नहीं था। उन्होंने ये भी बताया कि सरकार मराठा समुदाय को कुनबी दर्जा देने, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामले वापस लेने और आंदोलन में मरने वालों के परिवारों को मुआवजा व नौकरी देने पर सहमत है।
मंत्री उदय सामंत ने भी जोर देकर कहा कि मुख्यमंत्री फडणवीस ने उप-समिति को पूरी आजादी दी है। उन्होंने कहा, “राधाकृष्ण विखे पाटिल को सारे अधिकार दिए गए हैं। हम सब आपके साथ हैं।” इसके बाद, जरांगे ने आंदोलनकारियों से सलाह लेकर विखे पाटिल के हाथ से पानी पीकर अनशन तोड़ा।
अब गांव की ओर, लेकिन मांगें अधूरी नहीं
अनशन खत्म करने के बाद जरांगे ने अपने समर्थकों से कहा, “अब गाड़ियां चलाएं और गांव की ओर चलें। घर वापसी का समय है।” गौरतलब है कि ये आंदोलन मुंबई में भारी भीड़ और ट्रैफिक जाम का कारण बना था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी 2 सितंबर तक आजाद मैदान खाली करने का आदेश दिया था। जरांगे की तबीयत बिगड़ने के बावजूद, उन्होंने अस्पताल जाने से इनकार कर दिया था। लेकिन सरकार के साथ बातचीत के बाद ये आंदोलन एक सकारात्मक नोट पर खत्म हुआ। जरांगे ने इसे “जीत” बताया, हालांकि उन्होंने कहा कि मांगों को लागू होने में दो महीने तक लग सकते हैं।
मराठा आरक्षण का पेच
मराठा समुदाय महाराष्ट्र की आबादी का करीब 33% है और वो लंबे समय से शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है। जरांगे की मांग है कि मराठा समुदाय को कुनबी के रूप में OBC कोटे में शामिल किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का नियम है कि आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं हो सकता। OBC समुदाय का एक हिस्सा इसका विरोध कर रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनका हिस्सा कम होगा। महाराष्ट्र सरकार ने पहले 10% अलग आरक्षण देने की कोशिश की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। अब सरकार OBC कोटे में मराठा समुदाय को शामिल करने के रास्ते तलाश रही है।
क्या है इस कहानी का सबक?
मनोज जरांगे पाटिल का ये अनशन और उसका अंत ये दिखाता है कि बातचीत से बड़े मुद्दों का हल निकाला जा सकता है। उनकी हिम्मत और समुदाय के लिए लड़ाई ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है। लेकिन मराठा आरक्षण का मुद्दा अभी पूरी तरह हल नहीं हुआ है। सरकार को अब कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना होगा। जरांगे का ये कदम एक उम्मीद की किरण है, लेकिन क्या ये मराठा समुदाय की उम्मीदों को पूरा कर पाएगा? ये समय बताएगा।
आप इस आंदोलन और जरांगे के फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? क्या मराठा समुदाय को OBC आरक्षण मिलना चाहिए? हमें कमेंट में जरूर बताएं!
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