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लोकसभा में पास हुआ नया इनकम टैक्स बिल 2025: 1961 का पुराना कानून होगा खत्म, जानें क्या हैं बड़े बदलाव

इनकम टैक्स
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सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में नया इनकम टैक्स बिल पेश किया, जो अब पारित हो चुका है। ये संशोधित बिल संसदीय चयन समिति की अधिकांश सिफारिशों को शामिल करता है और सीधे तौर पर 1961 के पुराने आयकर अधिनियम को बदलने का आधार बनेगा।

सरकार ने फरवरी में पेश किए गए पुराने ड्राफ्ट को वापस लेकर ये नया मसौदा तैयार किया है, जिसमें सभी सुझाए गए बदलाव एक साथ जोड़े गए हैं। अच्छी खबर ये है कि 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर टैक्स छूट पहले की तरह बरकरार रहेगी।

निर्मला सीतारमण का बयान
संसद में सीतारमण ने कहा कि कई सुझाव ऐसे थे जो कानून के सही अर्थ और आसान अनुपालन के लिए जरूरी थे। इसमें ड्राफ्टिंग की त्रुटियों को दूर करने, शब्दावली का मेल बिठाने और क्रॉस-रेफरेंसिंग जैसे तकनीकी सुधार किए गए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि फरवरी वाला बिल भ्रम से बचने के लिए वापस लिया गया और नया ड्राफ्ट अब पूरी तरह 1961 के कानून की जगह लेगा।

चयन समिति की अहम सिफारिशें
नए बिल में प्रॉपर्टी, पेंशन और टैक्स कटौती से जुड़े कई बदलाव किए गए हैं।

  • खाली पड़ी संपत्तियों के किराए की गणना का तरीका बदला गया है, ताकि वास्तविक और अनुमानित किराए में स्पष्टता रहे।

  • हाउस प्रॉपर्टी आय पर 30% मानक कटौती अब नगरपालिका कर घटाने के बाद लागू होगी।

  • निर्माण-पूर्व ब्याज कटौती का लाभ अब किराए पर दी गई संपत्तियों तक बढ़ाया गया है।

  • गैर-कर्मचारी पेंशन पाने वालों को भी पेंशन कटौती का फायदा मिलेगा।

  • अस्थायी रूप से खाली पड़ी व्यावसायिक संपत्तियों को “हाउस प्रॉपर्टी” आय में टैक्स नहीं किया जाएगा।

पुराने फरवरी ड्राफ्ट की खास बातें
फरवरी का ड्राफ्ट पिछले छह दशकों में भारत के प्रत्यक्ष कर कानून का सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा था। इसमें आसान भाषा, कटौतियों का एकीकरण और कम प्रावधानों के जरिए अनुपालन को सरल बनाने पर जोर था।

  • कुछ अपराधों के लिए पेनाल्टी कम करना।

  • टैक्स स्लैब, कैपिटल गेन नियम या आय वर्ग में कोई बदलाव नहीं।

  • “पहले भरोसा, बाद में जांच” के सिद्धांत से मुकदमों में कमी।

  • CBDT को ज्यादा शक्तियां, डिजिटल निगरानी और “टैक्स ईयर” की अवधारणा।

क्या बदलेगा आपके लिए?
नया इनकम टैक्स बिल न केवल भाषा और नियमों में सरलता लाएगा, बल्कि डिजिटल युग की जरूरतों के मुताबिक टैक्स प्रशासन को आधुनिक भी बनाएगा। करदाताओं के लिए अनुपालन आसान होगा और विवादों की संभावना कम होगी।

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