Dombivli Memorial: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुआ आतंकी हमला न केवल देश के लिए एक त्रासदी था, बल्कि इसने महाराष्ट्र के डोंबिवली के लोगों के दिलों को भी झकझोर दिया। इस हमले में 26 लोगों ने अपनी जान गंवाई, जिनमें से छह महाराष्ट्र के थे। इनमें डोंबिवली के तीन बेटे—अतुल मोने, संजय लेले, और हेमंत जोशी—भी शामिल थे, जिन्हें उनके परिवारों की आंखों के सामने गोली मार दी गई। इस दुखद घटना के बाद डोंबिवली में शोक की लहर दौड़ गई, लेकिन इस दर्द ने स्थानीय समुदाय को एकजुट कर एक स्मारक बनाने का संकल्प दिलाया। डोंबिवली स्मारक निर्माण (Dombivli Memorial Construction) अब न केवल इन शहीदों को श्रद्धांजलि है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ एकता का प्रतीक भी बनने जा रहा है।
यह कहानी उस दिन से शुरू होती है, जब अतुल, संजय, और हेमंत अपने परिवारों के साथ कश्मीर की खूबसूरत वादियों में छुट्टियां मनाने गए थे। अतुल का बेटा अपनी दसवीं की परीक्षा खत्म कर चुका था, और परिवार इस यात्रा का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। संजय, जो एक निजी फर्म में अकाउंटेंट थे, अपने मिलनसार स्वभाव के लिए जाने जाते थे। हेमंत भी अपनी सोसाइटी में एक जिम्मेदार और प्रिय व्यक्ति थे। लेकिन उस दिन, पहलगाम की बैसरन घाटी में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने उनके सपनों को छीन लिया। इस हमले ने न केवल उनके परिवारों को तोड़ा, बल्कि डोंबिवली के हर उस व्यक्ति को गहरा आघात पहुंचाया, जो उन्हें जानता था।
घटना के बाद डोंबिवली में गुस्सा और दुख दोनों उमड़ पड़े। स्थानीय लोगों ने सड़कों पर उतरकर सरकार से आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। कुछ दोस्तों ने भावुक होकर कहा कि अगर उन्हें मौका मिले, तो वे खुद आतंकियों को सबक सिखाने को तैयार हैं। इस दुख और आक्रोश के बीच, एक उम्मीद की किरण तब जगी, जब स्थानीय विधायक रवींद्र चव्हाण ने कल्याण डोंबिवली नगर निगम को पत्र लिखकर इन शहीदों के लिए स्मारक बनाने का प्रस्ताव रखा। यह विचार जल्द ही पूरे समुदाय की आवाज बन गया।
कल्याण डोंबिवली नगर निगम ने इस प्रस्ताव को गंभीरता से लिया। सिटी इंजीनियर ने बताया कि डोंबिवली पश्चिम के स्कूल मैदान में अतुल मोने, संजय लेले, और हेमंत जोशी की स्मृति में स्मारक बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। नगर निगम ने एक प्रस्ताव तैयार किया और इसे मंजूरी के लिए भेज दिया। बताया जा रहा है कि 4 मई 2025 को इस स्मारक की आधिकारिक घोषणा की जाएगी। यह स्मारक न केवल इन तीन शहीदों की याद को जीवित रखेगा, बल्कि यह डोंबिवली के लोगों के लिए एक ऐसी जगह होगी, जहां वे अपने नायकों को श्रद्धांजलि दे सकेंगे।
इस स्मारक का विचार डोंबिवली के लोगों के लिए बेहद खास है। अतुल, संजय, और हेमंत सिर्फ तीन नाम नहीं थे; वे उन परिवारों का हिस्सा थे, जिनके साथ उन्होंने हंसी-खुशी के पल बिताए। संजय के चचेरे भाई माधव लेले ने बताया कि संजय का स्वभाव इतना सहज था कि उनकी किसी से कभी अनबन नहीं हुई। उनकी चिंता अब यह है कि संजय के परिवार का भविष्य कैसे संवरेगा। इसी तरह, अतुल की सोसाइटी के सदस्यों ने कहा कि वह हमेशा दूसरों के कल्याण के लिए सोचते थे। हेमंत भी अपने समुदाय में एक प्रेरणा थे। इन तीनों की याद में बनने वाला स्मारक उनके बलिदान को अमर करेगा।
पहलगाम आतंकी हमला (Pahalgam Terror Attack) ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इस हमले में लश्कर-ए-तैयबा के चार आतंकियों ने दो स्थानीय आतंकियों के साथ मिलकर पर्यटकों को निशाना बनाया। सैन्य सूत्रों के अनुसार, आतंकी स्टील टिप वाली गोलियों और एके-47 राइफलों से लैस थे। उन्होंने हिंदू पर्यटकों को चुन-चुनकर गोली मारी, जिससे 26 लोगों की जान चली गई। इस हमले की साजिश में शामिल एक आतंकी, आदिल थोकर, ने पाकिस्तान में प्रशिक्षण लिया था और 2018 में अटारी-वाघा बॉर्डर के जरिए वहां गया था।
डोंबिवली के लोगों का यह स्मारक बनाने का फैसला सिर्फ शहीदों को याद करने का प्रयास नहीं है। यह एक संदेश भी है कि आतंकवाद के खिलाफ उनका गुस्सा और एकता कम नहीं होगी। नगर निगम के इस कदम ने स्थानीय समुदाय में एक नई उम्मीद जगाई है। लोग चाहते हैं कि यह स्मारक न केवल उनके नायकों की याद दिलाए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह भी सिखाए कि एकता और साहस के सामने कोई ताकत नहीं टिक सकती।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी इस घटना के बाद डोंबिवली में शहीदों के परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने परिवारों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया। इसके अलावा, जिला प्रशासन ने भी हेल्पलाइन नंबर जारी किए ताकि पीड़ित परिवारों को सहायता मिल सके। इन कोशिशों ने डोंबिवली के लोगों के दुख को कुछ हद तक कम करने की कोशिश की, लेकिन स्मारक का निर्माण इस दुख को एक सकारात्मक दिशा देने का प्रयास है।
यह स्मारक सिर्फ पत्थर और सीमेंट का ढांचा नहीं होगा। यह डोंबिवली के उन तीन बेटों की कहानी कहेगा, जो अपने परिवारों के साथ खुशियां बांटने निकले थे, लेकिन देश के लिए शहीद हो गए। यह स्मारक हर उस व्यक्ति को प्रेरणा देगा, जो आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होना चाहता है। जैसे-जैसे 4 मई की तारीख नजदीक आ रही है, डोंबिवली के लोग इस स्मारक की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं, जो उनके शहीदों के सम्मान में एक स्थायी निशानी होगी।
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