दुनिया के सबसे दुर्दांत आतंकवादियों में से एक, अब्दुल रहमान मक्की (Abdul Rehman Makki), जो 26/11 मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड था, अपनी अंतिम सांसें बेहद कमजोर हालत में लेते हुए इस दुनिया से चला गया। मुंबई आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड (Mumbai Attack Mastermind) और लश्कर-ए-तैयबा के डिप्टी चीफ की पहचान नफरत और खून से लथपथ इतिहास के लिए की जाती थी। लेकिन जिंदगी के आखिरी दिनों में उसका हाल इतना बदतर हो गया था कि वह बिस्तर से उठने तक के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो गया।
मुंबई हमलों का गुनहगार
अब्दुल रहमान मक्की, जो हाफिज सईद (Hafiz Saeed) का साला और लश्कर-ए-तैयबा का डिप्टी चीफ था, 2008 के मुंबई हमलों का प्रमुख साजिशकर्ता था। उस हमले ने पूरे भारत को हिला दिया था। 26/11 के हमले में 175 निर्दोष लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए थे।
इस आतंकी घटना ने भारत और दुनिया को आतंकवाद के खतरों से अवगत कराया। मक्की ने उस नरसंहार की पूरी योजना बनाई थी और इसे अमल में लाने के लिए अपने नेटवर्क का इस्तेमाल किया था।
हार्ट अटैक से मौत
अब्दुल रहमान मक्की की मौत हार्ट अटैक से हुई। लेकिन इस कुख्यात आतंकवादी के अंतिम दिन बेहद दर्दनाक रहे। जिन हाथों से उसने मासूमों का खून बहाया, वही कांपने लगे थे। वह अपनी ताकत खो चुका था और बिस्तर पर पड़ा हुआ था। मौत के पहले के ये पल जैसे उसे उसके किए गुनाहों का एहसास कराने के लिए थे।
हाफिज सईद का छाया
मक्की को हमेशा हाफिज सईद (Hafiz Saeed) का ‘शैडो’ कहा जाता था। वह न केवल लश्कर के संगठनात्मक ढांचे में एक अहम कड़ी था, बल्कि सईद के साथ आतंकवादी योजनाओं में भी बराबर का भागीदार था। 2023 में संयुक्त राष्ट्र ने मक्की को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया था। इस घोषणा के बाद उसकी संपत्तियां जब्त कर ली गईं और विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
कश्मीर और खून की धमकियां
मक्की ने कई बार भारत को धमकी दी थी। 2010 में एक सभा के दौरान उसने कहा था कि अगर कश्मीर को पाकिस्तान को नहीं सौंपा गया, तो भारत में खून की नदियां बहेंगी। उसके क्रूर और निर्दयी रवैये ने उसे नफरत का चेहरा बना दिया। बावजूद इसके, पाकिस्तान ने मक्की के खिलाफ कभी भी कड़ी कार्रवाई नहीं की।
पाकिस्तान की भूमिका और शर्मनाक रवैया
अब्दुल रहमान मक्की का उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है। मक्की जैसे आतंकियों को ना केवल सरकार का समर्थन मिला, बल्कि वहां की एजेंसियों ने उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की। यह रवैया अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की साख को बार-बार गिराता रहा है।
क्या सजा हुई?
मक्की की मौत किसी अदालत के फैसले से नहीं, बल्कि प्रकृति के न्याय से हुई। हार्ट अटैक ने इस आतंकवादी का अंत किया, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या आतंकवादियों के लिए मौत ही अंतिम सजा है, या उन्हें उनके अपराधों का सजा कानूनी रूप से मिलनी चाहिए।
अब्दुल रहमान मक्की (Abdul Rehman Makki) का अंत यह साबित करता है कि गुनाहों का हिसाब प्रकृति जरूर लेती है। उसने मासूमों का खून बहाया, लेकिन अपनी आखिरी सांस तक वह खुद असहाय रहा। मक्की की मौत दुनिया के लिए यह संदेश है कि आतंकवाद का रास्ता अंत में सिर्फ विनाश की ओर ही ले जाता है।
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