1943 Bengal Famine Tragedy: 1943 में बंगाल में एक ऐसी त्रासदी हुई, जिसने लाखों लोगों की जिंदगी छीन ली। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 14 जुलाई 2025 को आईआईटी मद्रास में इसकी चर्चा की। उन्होंने बताया कि कुछ ही महीनों में 60 लाख लोग भूख से तड़प-तड़प कर मर गए। उस समय भारत अंग्रेजों के कब्जे में था और द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। जापान के बर्मा तक पहुंचने के डर से अंग्रेजों ने बंगाल में हजारों नावें जब्त कर लीं और गांवों में अनाज के गोदाम खाली करवा दिए। खेतों की फसलें भी नष्ट कर दी गईं। इससे खाने का संकट बढ़ गया और अनाज की कीमतें आसमान छूने लगीं।
लोग भूख से इतने मजबूर हो गए कि घास, पेड़ की छाल और यहाँ तक कि जानवरों का मल तक खाने लगे। कोलकाता की सड़कों पर हर रोज सैकड़ों लाशें बिखरी रहती थीं। कुछ परिवारों ने अनाज के लिए अपने बच्चों को बेच दिया। कई बच्चों को सड़कों पर छोड़ दिया गया क्योंकि माता-पिता उन्हें खाना नहीं दे पा रहे थे। हालात इतने खराब थे कि जानवर इंसानों की लाशें खाने लगे। जब बंगाल से मदद की गुहार लंदन पहुंची, तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अनाज भेजने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “अगर भारतीय भूखे मर रहे हैं, तो गांधी अब तक जिंदा क्यों है?”
डोभाल ने कहा कि इस त्रासदी को इतिहास में दबा दिया गया। स्कूल की किताबों में इसका जिक्र नहीं मिलता, न ही कोई स्मारक बना। बंगाल का यह अकाल ब्रिटिश नीतियों का नतीजा था, जिसने लाखों लोगों को भूख से मार डाला। डोभाल ने इसे एक चेतावनी बताया कि गलत नीतियाँ और मानवता से मुँह मोड़ना कितना खतरनाक हो सकता है।