केरल की नर्स निमिषा प्रिया की यमन में सुनाई गई मौत की सजा को फिलहाल टाल दिया गया है। ये भारत और यमन के धार्मिक नेताओं के हस्तक्षेप और लगातार कूटनीतिक प्रयासों का नतीजा है।
धार्मिक नेताओं का अहम योगदान
ग्रैंड मुफ्ती ऑफ इंडिया शेख अबूबकर अहमद ने यमन के मशहूर आलिम शेख उमर बिन हफीज से मदद मांगी। शेख उमर ने अपने शिष्यों को मृतक तलाल के परिवार से बातचीत करने के लिए भेजा। कई दौर की चर्चा के बाद, तलाल का परिवार मौत की सजा को टालने के लिए राजी हुआ। शेख उमर का सुन्नी समुदाय में प्रभाव और यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के कब्जे के बावजूद उनका रसूख इस मामले में निर्णायक साबित हुआ।
भारत सरकार की खामोश कोशिशें
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में “खामोश और लगातार” प्रयास किए। सऊदी दूतावास में यमन के मामलों को देखने वाले एक अधिकारी ने महीनों तक यमनी प्रशासन से बातचीत की। इजरायल-ईरान तनाव के कारण कुछ समय के लिए बातचीत में रुकावट आई, लेकिन स्थिति सामान्य होने पर प्रयास फिर से शुरू हुए।
ब्लड मनी की कोशिशें नाकाम
भारत ने तलाल के परिवार को ब्लड मनी के रूप में भारी रकम देने की पेशकश की। एक अधिकारी ने बताया कि अगर ब्लड मनी 2 करोड़ थी, तो भारत ने 20 करोड़ तक देने की बात कही, लेकिन परिवार इसके लिए तैयार नहीं हुआ।
सजा टली, माफी की उम्मीद बाकी
फिलहाल निमिषा की फांसी को टाल दिया गया है, लेकिन उनकी सजा माफ नहीं हुई है। ब्लड मनी या कानूनी रास्तों के जरिए सजा माफी के लिए बातचीत जारी है। डिप्टी मुफ्ती हुसैन साकाफी ने बताया कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में निमिषा को बचाने में अपनी सीमाएं जताई थीं। इसके बाद केरल के कुछ नेताओं ने मुफ्ती साहब से यमनी आलिम से बात करने की गुजारिश की थी।
विदेश मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, “ये कोई एक फोन कॉल का नतीजा नहीं, बल्कि महीनों की मेहनत का परिणाम है।”
कैसे पहुंचीं यमन और क्यों रहीं वहां?
निमिषा प्रिया साल 2008 में नर्सिंग की पढ़ाई के लिए यमन गई थीं। केरल की रहने वाली निमिषा ने बेहतर करियर की तलाश में यमन को चुना, जो उस समय नर्सिंग के लिए एक आकर्षक गंतव्य था। साल 2011 में निमिषा पढ़ाई पूरी कर भारत लौटीं। यहां उनकी मुलाकात टॉमी थॉमस से हुई, जिनसे उन्होंने शादी कर ली। इस दंपती को एक बेटी भी हुई। शादी के बाद निमिषा अपने पति टॉमी और बेटी के साथ फिर से यमन चली गईं। साल 2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हो गया। इस अशांत माहौल में निमिषा के पति टॉमी अपनी बेटी के साथ केरल वापस लौट आए। हालांकि, निमिषा ने यमन में ही रहने का फैसला किया।
यमन में अस्पताल खोलना चाहती थी निमिषा
निमिषा यमन में एक अस्पताल खोलना चाहती थी, जिसके उसे वहां नागरिकता चाहिए थी। इसी दौरान उसकी मुलाकात तलाल अब्दो महदी नाम के शख्स से हुई, जिसने निमिषा की मदद की और साल 2015 में दोनों ने शादी का फर्जी डॉक्यूमेंट बनवाया, और अस्पताल खोल ली।
निमिषा ने क्यों की महदी की निमिषा को उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने दबाव बनाया, लेकिन निमिषा ने मना कर दिया। इसके बाद महदी ने निमिषा को अस्पताल बंद करने की धमकी दी। साथ ही उसने निमिषा के पासपोर्ट और जरूरी के कागजात छीन लिए। फिर इसके बाद अपने कागजात वापस पाने की चाहत में 2017 में निमिषा ने तलाल को बेहोशी की दवा दी, लेकिन डोज ज्यादा हो जाने की वजह से उनकी मौत हो गई।
इसके बाद निमिषा ने एक नर्स के साथ मिलकर महदी के शरीर के टुकड़े किए और टैंक में डिस्पोज करने के लिए फेंक दिया। फिर यमन से भागने की कोशिश में निमिषा को गिरफ्तार कर लिया गया। साल 2020 में उसे यमन ने ट्रायल कोर्ट में फांसी की सजा सुनाई गई।
अब आगे क्या?
भारत सरकार और धार्मिक नेता निमिषा की सजा माफी के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। ये मामला न केवल कूटनीतिक, बल्कि धार्मिक और मानवीय स्तर पर भी संवेदनशील है।
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