Mystical Experiences at Kailash: कैलाश पर्वत को हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में पवित्र माना जाता है। इसे भगवान शिव का निवास कहा जाता है। कई यात्री और शोधकर्ता यहाँ के अलौकिक अनुभवों की बात करते हैं। स्वामी प्रणवानंद ने अपनी किताब “कैलाश-मानसरोवर: ए डिवाइन जर्नी” (2014) में लिखा कि कैलाश पर समय की गति धीमी हो जाती है। कुछ घंटों में ही नाखून और बाल असामान्य रूप से बढ़ जाते हैं। रूसी वैज्ञानिक डॉ. अर्नस्ट मुल्दाशेव ने अपनी किताब “ह्वेयर डू वी कम फ्राम?” (2002) में भी इस बात का जिक्र किया।
कई यात्रियों ने बताया कि डोलमा ला दर्रा (5,636 मीटर) के पास एक अदृश्य दीवार जैसा अहसास होता है, जो आगे बढ़ने से रोकती है। तिब्बती इसे “देवताओं का सीमा क्षेत्र” मानते हैं। “स्कंद पुराण” में कहा गया है कि कैलाश के केंद्र में केवल पवित्र आत्माएँ ही प्रवेश कर सकती हैं। कुछ लोगों को यहाँ सिरदर्द, चक्कर या किसी की मौजूदगी का अहसास हुआ। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपनी किताब में लिखा कि उन्हें डोलमा ला के पास ठंडी हवा का झोंका लगा और उनका शरीर सुन्न हो गया।
रात में कैलाश के आसपास कई यात्रियों ने “ऊं” की ध्वनि सुनी और आकाश में नाचते प्रकाश के गोले देखे। राहुल सिंह की किताब “माउंट कैलाश: रियलिटी बिहाइंड द मिथ” (2018) में शेरपाओं के हवाले से बताया गया कि पूर्णिमा की रात यहाँ आकाश में चमकते गोले दिखते हैं। तिब्बती ग्रंथ “बार्डो थोडोल” में कैलाश को “दिव्य ध्वनियों का स्रोत” कहा गया है।
नासा के अध्ययनों में कैलाश के आसपास असामान्य चुंबकीय क्षेत्र और 10 हर्ट्ज से कम की ध्वनियाँ पाई गईं, जो डर और भ्रम पैदा कर सकती हैं। रूसी पर्वतारोही सर्गेई सिस्टोव ने बताया कि रात में तूफान के दौरान उन्हें चीखों जैसी आवाजें सुनाई दीं और उनका जीपीएस काम नहीं किया। सुबह वे अपने रास्ते से 3 किलोमीटर दूर थे। वैज्ञानिक इसे ऑक्सीजन की कमी से होने वाला मतिभ्रम मानते हैं।
कैलाश को “कांग रिनपोछे” या रत्न का पर्वत भी कहा जाता है। “शिव पुराण” में इसे त्रिकोणात्मक शिवलिंग बताया गया है। सूर्यास्त के समय इसकी छाया शिवलिंग जैसी दिखती है। रात में यहाँ रुकना मना है, क्योंकि स्थानीय मान्यता के अनुसार, रात में देवता यहाँ आते हैं। तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है और हिमस्खलन का खतरा रहता है।
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