Rules for Martyr Status: दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित पहलगाम, एक खूबसूरत पर्यटन स्थल, 22 अप्रैल 2025 को उस भयावह आतंकी हमले का गवाह बना, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। बैसरन के पास हुए इस हमले में 26 लोग अपनी जान गंवा बैठे, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। इस त्रासदी ने न केवल पीड़ित परिवारों के जीवन को बदल दिया, बल्कि एक गंभीर सवाल भी खड़ा किया—क्या इन निर्दोष लोगों को शहीद का दर्जा (Martyr Status) मिल सकता है? लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मांग को जोर-शोर से उठाया है, और पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है। लेकिन शहीद का दर्जा (Shaheed Ka Darja) क्या है, और इसे देने के नियम क्या हैं? आइए, इस विषय को गहराई से समझते हैं।
राहुल गांधी ने पहलगाम हमले के बाद एक्स पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि वे पीड़ित परिवारों के दुख में उनके साथ हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया कि इस त्रासदी में जान गंवाने वालों को शहीद का दर्जा (Martyr Status) दिया जाए। राहुल ने कानपुर में पीड़ित शुभम द्विवेदी के परिवार से मुलाकात की और उनकी मांग का समर्थन किया। यह मांग न केवल भावनात्मक है, बल्कि उन सुविधाओं से भी जुड़ी है जो शहीद के परिवार को मिलती हैं। लेकिन क्या सामान्य नागरिकों को यह सम्मान दिया जा सकता है? इसका जवाब जानने के लिए हमें भारत सरकार की नीतियों और शहीद शब्द की परिभाषा को समझना होगा।
शहीद का दर्जा (Shaheed Ka Darja) आमतौर पर उन सैनिकों को दिया जाता है जो देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं। सेना के जवान, जो सीमा पर या आतंकी हमलों से लड़ते हुए शहादत प्राप्त करते हैं, उन्हें सरकार द्वारा शहीद का दर्जा प्रदान किया जाता है। इस दर्जे के साथ कई सुविधाएं भी जुड़ी हैं, जैसे परिवार को आर्थिक सहायता, जमीन या मकान, पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी, रेल और हवाई किराए में छूट, और कभी-कभी परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी। लेकिन यह सम्मान केवल सैन्य बलों तक सीमित है। राज्य पुलिस के जवान, जो आतंकी हमलों या अन्य ऑपरेशनों में अपनी जान गंवाते हैं, उन्हें यह दर्जा नहीं मिलता। इसी तरह, अग्निवीर योजना के तहत भर्ती हुए सैनिकों को भी शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता, भले ही उनकी मृत्यु किसी सैन्य ऑपरेशन में हो।
पहलगाम हमले में मारे गए लोग पर्यटक थे, जो अपने परिवारों के साथ छुट्टियां मनाने आए थे। उनकी मृत्यु निश्चित रूप से दुखद है, लेकिन मौजूदा नियमों के अनुसार, शहीद का दर्जा (Martyr Status) केवल सैन्य कर्मियों के लिए है। भारत सरकार ने 2017 में केंद्रीय सूचना आयोग को बताया था कि रक्षा मंत्रालय ने शहीद शब्द के लिए कोई आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। 2013 में राज्यसभा सांसद किरणमय नंदा के सवाल के जवाब में भी सरकार ने स्पष्ट किया कि रक्षा मंत्रालय के पास शहीद की कोई सटीक परिभाषा नहीं है। एक आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद को मिले जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि शहीद शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। ऐसे में, सामान्य नागरिकों को यह दर्जा देना कानूनी और नीतिगत रूप से जटिल है।
शहीद शब्द की उत्पत्ति इस्लाम की पवित्र किताब कुरान से हुई है। यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है साक्षी या आत्म-बलिदान। हदीस के अनुसार, शहीद वह है जो अपने विश्वास के लिए स्वेच्छा से मृत्यु को स्वीकार करता है। हिंदी में इसके समान शब्द हैं हुतात्मा, जिसका अर्थ है प्राणों का बलिदान देने वाला, और वीरगति, जिसका अर्थ है एक वीर की मृत्यु। लेकिन भारत में शहीद शब्द का उपयोग मुख्य रूप से सैन्य संदर्भ में होता है। पहलगाम जैसे हमले में मारे गए पर्यटकों को शहीद का दर्जा (Shaheed Ka Darja) देने की मांग नई नहीं है। पहले भी ऐसी मांगें उठती रही हैं, लेकिन नीतिगत सीमाओं के कारण इन्हें लागू नहीं किया गया।
राहुल गांधी और पीड़ित परिवारों की मांग ने इस मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि शहीद का दर्जा देने के लिए सरकार को अपनी नीति में बदलाव करना होगा। अगर ऐसा होता है, तो यह न केवल पहलगाम हमले के पीड़ितों के लिए, बल्कि भविष्य में ऐसी त्रासदियों का शिकार होने वाले अन्य नागरिकों के लिए भी एक नया रास्ता खोल सकता है। इस मांग ने समाज में एक गहरी बहस को जन्म दिया है कि क्या शहीद का सम्मान केवल सैनिकों तक सीमित रहना चाहिए, या इसे उन निर्दोष लोगों तक विस्तारित किया जाना चाहिए जो आतंकी हमलों का शिकार बनते हैं।
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