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कारगिल युद्ध में मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों की सच्चाई आई सामने, जनरल मुनीर का बड़ा खुलासा

कारगिल युद्ध में मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों की सच्चाई आई सामने, जनरल मुनीर का बड़ा खुलासा
पाकिस्तान का पहला कबूलनामा: पाकिस्तानी सेना ने 25 साल बाद पहली बार आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध में अपने सैनिकों की शहादत को स्वीकार किया है। यह बयान पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर ने दिया, जो पाकिस्तान की सैन्य नीति और इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है।

लंबे समय से विवादास्पद रहे कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की प्रत्यक्ष भूमिका को अब तक नजरअंदाज किया जा रहा था, लेकिन यह बयान उनके इस इनकार पर सवाल खड़ा करता है। आइए इस ऐतिहासिक कबूलनामे और इसके पीछे की कहानी पर एक नज़र डालते हैं।


पाकिस्तानी सेना का पहला आधिकारिक बयान

1999 में हुए कारगिल युद्ध को लेकर पाकिस्तान की सरकार और सेना ने अब तक अपने सैनिकों की शहादत या इस युद्ध में प्रत्यक्ष भागीदारी से इनकार किया था। पाकिस्तानी सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, जनरल सैयद असीम मुनीर ने 6 सितम्बर 2024 को पाकिस्तान के रक्षा दिवस पर दिए भाषण में पहली बार स्वीकार किया कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों ने शहादत दी थी। यह बयान पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में एक नया पन्ना खोलता है, क्योंकि अब तक कारगिल में हुई सैनिकों की मौतों को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया था।

कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका

कारगिल युद्ध 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसमें पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को घुसपैठ के लिए नियंत्रण रेखा (LoC) के भारतीय हिस्से में भेजा था। पाकिस्तान ने इस युद्ध में अपनी प्रत्यक्ष भूमिका से हमेशा इनकार किया था और इसे ‘स्वतंत्रता सेनानियों’ का संघर्ष बताया था। लेकिन अब, सेना प्रमुख का यह बयान इस इनकार की कहानी को बदलता है।


परवेज मुशर्रफ और पाकिस्तान का पूर्व रुख

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने हमेशा कहा था कि यह एक स्थानीय कार्रवाई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना का कोई औपचारिक हिस्सा नहीं था। उन्होंने बार-बार कहा कि यह कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानियों का प्रयास था, जिसमें पाकिस्तान की प्रत्यक्ष संलिप्तता नहीं थी। हालाँकि, मुशर्रफ ने बाद में एफसीएनए (Force Command Northern Areas) की भूमिका स्वीकार की थी, जो पाकिस्तानी सेना के 10 कोर का हिस्सा था। लेकिन उन्होंने कभी भी इस ऑपरेशन के बारे में पूरी सच्चाई को जनता के सामने नहीं रखा।

नवाज शरीफ और कारगिल ऑपरेशन

उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी इस ऑपरेशन के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी गई थी। 1999 में, जब यह युद्ध शुरू हुआ, तब उन्हें डीजीएमओ (Director General of Military Operations) द्वारा औपचारिक रूप से जानकारी दी गई थी। इसके पहले ही भारत और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस ऑपरेशन के बारे में खबरें आनी शुरू हो गई थीं। यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान सरकार और सेना के बीच उस समय इस मामले को लेकर गहरा असमंजस था।


शहीद सैनिकों के शव नहीं लाए गए

कारगिल युद्ध के दौरान मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों के शवों को वापस लाने में पाकिस्तान की अनिच्छा के कारण भी सेना और सरकार की निंदा हुई। कई सैनिकों के परिवारों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि उनके प्रियजनों के शवों को वापस नहीं लाया गया। कैप्टन फरहत हसीब के भाई इतरत अब्बास ने कहा कि वे लगातार सेना के अधिकारियों से शव वापस लाने की गुहार लगाते रहे, लेकिन कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। इस घटना ने पाकिस्तान के अंदर ही सरकार और सेना की नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए थे।

परिवारों की नाराजगी

कई परिवारों ने इस युद्ध के दौरान अपने प्रियजनों को खो दिया, और वे अब भी सवाल करते हैं कि क्यों उनके शव वापस नहीं लाए गए। कैप्टन अम्मार हुसैन की मां रेहाना महबूब ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे की मौत के बारे में जानने के लिए सेना के अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उन्हें संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। यह इस युद्ध के एक और काले पहलू को उजागर करता है, जो कि सेना के नेतृत्व की जिम्मेदारी को दर्शाता है।


पाकिस्तानी सेना का मौजूदा स्वीकारोक्ति

25 साल बाद, सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर ने जो बयान दिया है, वह पाकिस्तान की सैन्य नीति में बदलाव का संकेत है। इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने प्रत्यक्ष भूमिका निभाई थी और इसके परिणामस्वरूप कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। यह कबूलनामा पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो भविष्य की नीतियों और भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी असर डाल सकता है।

क्या बदलेगा यह कबूलनामा?

इस कबूलनामे से पाकिस्तान की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने यह साफ हो गया है कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका को अब और छिपाया नहीं जा सकता। इससे दोनों देशों के बीच के संबंधों में नए सवाल खड़े होंगे और संभवतः भविष्य की सैन्य और राजनीतिक रणनीतियों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा।

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