Samosa-Jalebi Health Warning: भारत में समोसा और जलेबी हर गली-नुक्कड़ पर मिलते हैं। ये दोनों इतने पसंदीदा हैं कि जलेबी को तो राष्ट्रीय मिठाई का दर्जा मिल चुका है। लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने 14 जुलाई 2025 को एक आदेश जारी किया, जिसने इन्हें चर्चा में ला दिया। मंत्रालय ने सभी केंद्रीय संस्थानों को कहा है कि समोसा और जलेबी जैसे नाश्ते बेचने वालों को अब बोर्ड लगाने होंगे, जिन पर लिखा होगा कि इनमें कितना फैट और चीनी है। यह चेतावनी तंबाकू की तरह ही होगी, जैसे “समझदारी से खाएं, आपका भविष्य आपको धन्यवाद देगा।”
जलेबी की कहानी बड़ी दिलचस्प है। इसका जन्म ईरान में हुआ, जहाँ इसे जुलबिया कहते थे। 10वीं शताब्दी की फारसी रसोई किताब “अल-तबीख” में इसका जिक्र है। रमजान में इसे खास तौर पर बनाया और बांटा जाता था। ईरान में जलेबी को शहद और गुलाब जल के साथ बनाते थे। फारसी व्यापारियों और आक्रांताओं के जरिए 15वीं शताब्दी तक यह भारत पहुंची। यहाँ इसे शादी-ब्याह और त्योहारों का हिस्सा बनाया गया। उत्तर भारत में इसे जलेबी, दक्षिण में जेलेबी और नॉर्थ-ईस्ट में जिलापी कहते हैं।
समोसे की कहानी भी ईरान से शुरू होती है। 11वीं शताब्दी में फारसी इतिहासकार अबुल फजल बेहकी ने इसे संबुश्क के नाम से लिखा। तब इसमें मावा और ड्राई फ्रूट भरे जाते थे। भारत में समोसा उज्बेकिस्तान और अफगानिस्तान के रास्ते आया। वहाँ इसे मीट और प्याज से बनाते थे। भारत में इसने नया रूप लिया। मसालेदार आलू, मावा, चाशनी, छोले, नूडल्स, चीज, मशरूम, चॉकलेट और चिकन जैसे कई स्वादों के साथ समोसा यहाँ मशहूर हो गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय का यह आदेश नागपुर जैसे शहरों में लागू हो चुका है। अब समोसा-जलेबी की दुकानों पर चेतावनी बोर्ड दिखने लगे हैं। यह कदम लोगों को ज्यादा चीनी और तेल से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करने के लिए उठाया गया है। लेकिन इसने समोसा और जलेबी के दीवानों को सोच में डाल दिया है।
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