महाराष्ट्र

Wits Hotel Auction Scandal: उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर फर्जी जीआर और होटल विट्स नीलामी में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगे!

Wits Hotel Auction Scandal: उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर फर्जी जीआर और होटल विट्स नीलामी में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगे!

Wits Hotel Auction Scandal: महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों हंगामा मचा हुआ है। उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मुश्किलों में घिर गए हैं। उनके खिलाफ दो बड़े आरोपों ने महायुति सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। एक तरफ अहिल्यानगर में फर्जी सरकारी आदेश यानी जीआर के जरिए करोड़ों रुपये के घोटाले की बात सामने आई है, तो दूसरी तरफ संभाजीनगर के होटल विट्स की खरीद-फरोख्त में गड़बड़ी का मामला गूंज रहा है। दोनों ही मामलों ने न सिर्फ सरकार की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि विपक्ष को भी शिंदे सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है। आइए, इन दोनों मुद्दों को करीब से समझते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं अहिल्यानगर के उस फर्जी जीआर की, जिसने सबको चौंका दिया। पिछले साल 3 अक्टूबर 2024 को ग्रामीण विकास विभाग ने एक सरकारी आदेश जारी किया था। इस आदेश के आधार पर अहिल्यानगर, पारनेर, श्रीगोंदा और नेवासा जैसे चार तालुकाओं में 45 विकास कार्य शुरू किए गए। इन कार्यों की कुल लागत थी 6.94 करोड़ रुपये। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जब ठेकेदारों ने अपने काम के बिल भुगतान के लिए मंत्रालय में जमा किए, तब जाकर हकीकत सामने आई। क्रॉस चेकिंग के दौरान पता चला कि जिस जीआर के आधार पर ये सारे काम हुए, वह असल में फर्जी था। जी हां, कोई ऐसा सरकारी आदेश था ही नहीं। इस खुलासे ने न सिर्फ अधिकारियों को सकते में डाल दिया, बल्कि पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए। विभाग ने तुरंत भुगतान पर रोक लगा दी और जांच के आदेश दे दिए। अब सवाल यह है कि आखिर इतना बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ कैसे? और इसके पीछे कौन लोग शामिल हैं?

अब आते हैं दूसरे बड़े मामले पर, जो है होटल नीलामी का। संभाजीनगर का होटल विट्स, जिसे धनदा कॉर्पोरेशन लिमिटेड नाम की कंपनी चलाती है, इसकी नीलामी को लेकर विपक्ष ने बड़े सवाल उठाए हैं। विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने विधान परिषद में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उनका कहना है कि इस होटल नीलामी में भारी गड़बड़ी हुई है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस सौदे में शिंदे की शिवसेना के मंत्री संजय शिरसाट के बेटे सिद्धांत शिरसाट का नाम कैसे आया? दानवे का दावा है कि संजय शिरसाट ने अपने शपथ पत्र में कहा था कि उनके बेटे की संपत्ति शून्य है। फिर सिद्धांत इतने बड़े होटल सौदे में कैसे शामिल हो गए? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है। इस पूरे मामले ने होटल नीलामी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

होटल विट्स की नीलामी की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। दानवे ने बताया कि सरकार ने इस नीलामी के लिए विज्ञापन जारी किया था। तीन कंपनियों ने इसमें हिस्सा लिया। इनमें सिद्धांत मैटेरियल प्रोक्योरमेंट एंड सप्लायर्स कंपनी, लक्ष्मी निर्मल हॉलिडे कंपनी और कल्याण टोल इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी शामिल थीं। साल 2018 में एक सरकारी मूल्यांकनकर्ता ने इस होटल की कीमत 75.92 करोड़ रुपये आंकी थी। अब 2025 में इसकी कीमत कम से कम 150 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी, लेकिन नीलामी में इसे इससे भी कम कीमत पर बेचने की बात सामने आई। दानवे ने इस पर सवाल उठाया कि आखिर इतनी कम कीमत क्यों तय की गई? क्या इसके पीछे कोई साजिश थी?

इसके अलावा, नीलामी की प्रक्रिया में भी कई खामियां सामने आईं। दानवे का कहना है कि सिद्धांत मैटेरियल प्रोक्योरमेंट एंड सप्लायर्स कंपनी उस समय पंजीकृत भी नहीं थी, जब उसने नीलामी में हिस्सा लिया। नियमों के मुताबिक, तीन साल की आयकर रिटर्न और राज्य स्तरीय समाचार पत्रों में विज्ञापन की शर्त थी, लेकिन इनका पालन नहीं हुआ। इतना ही नहीं, 40 करोड़ रुपये का सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट और 45 करोड़ रुपये के वित्तीय कारोबार की शर्तों को भी हटा दिया गया। यह सब सुनियोजित तरीके से किया गया, ताकि कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाया जा सके। दानवे ने मांग की है कि इस कंपनी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हो और इसे काली सूची में डाला जाए।

इन दोनों मामलों ने महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल ला दिया है। एक तरफ फर्जी जीआर के जरिए करोड़ों रुपये के विकास कार्यों का खेल, तो दूसरी तरफ होटल नीलामी में पारदर्शिता की कमी। इन आरोपों ने उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनकी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने होटल विट्स मामले की उच्च स्तरीय जांच का ऐलान किया है, लेकिन क्या यह जांच सच को सामने लाएगी? यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल, ये दोनों मामले न सिर्फ सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं, बल्कि आम लोगों का भरोसा भी डगमगा रहा है।

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