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पुणे: वर्क प्रेशर की वजह से बैंक मैनेजर ने की आत्महत्या, सुसाइड नोट में लिखी ये बातें

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पुणे, महाराष्ट्र: एक दिल दहला देने वाली घटना ने बारामती शहर को झकझोर कर रख दिया है। बैंक ऑफ बड़ौदा की बारामती सिटी शाखा के मुख्य प्रबंधक शिवशंकर मित्रा ने अपने ही ऑफिस में फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इस दुखद घटना ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे समुदाय को गहरे सदमे में डाल दिया है। उनके पास मिले सुसाइड नोट ने एक बार फिर काम के बोझ और मानसिक तनाव की भयावह सच्चाई को उजागर किया है।

सुसाइड नोट में छिपा दर्द
शिवशंकर मित्रा ने अपने सुसाइड नोट में साफ लिखा कि वो काम के असहनीय दबाव के कारण ये कदम उठा रहे हैं। उन्होंने अपने सहकर्मियों और परिवार को इस घटना के लिए जिम्मेदार न ठहराने की गुजारिश की। इस नोट ने न केवल उनके दर्द को बयां किया, बल्कि आज के कॉर्पोरेट जगत में बढ़ते मानसिक तनाव की गंभीर समस्या की ओर भी इशारा किया।

इस्तीफे के बाद भी नहीं मिली राहत
जानकारी के अनुसार, शिवशंकर ने स्वास्थ्य समस्याओं और कार्यभार के चलते 11 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वो नोटिस पीरियड पर थे, लेकिन ऐसा लगता है कि इस दौरान भी वो अपने मानसिक बोझ से उबर नहीं पाए। रात 10 से 12 बजे के बीच उन्होंने बैंक परिसर में ही ये अंतिम कदम उठाया। उनकी पत्नी ने जब देर रात तक उनके घर न लौटने की चिंता जताई, तब बैंक कर्मचारियों ने ऑफिस में जांच की और उन्हें फंदे से लटका पाया।

पुलिस जांच में जुटी
बारामती सिटी पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर विलास नाले ने बताया, “हमें शिवशंकर की पत्नी से सूचना मिली थी कि वो घर नहीं लौटे। जब बैंक में जांच की गई, तो उनका शव फंदे से लटका मिला। उनकी जेब से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ, जिसमें उन्होंने वर्क प्रेशर को अपनी मृत्यु का कारण बताया। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और हम इस मामले की गहन जांच कर रहे हैं।”

मानसिक स्वास्थ्य पर एक चेतावनी
ये घटना केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि आज के दौर में बढ़ते कार्यस्थल तनाव का एक दुखद उदाहरण है। शिवशंकर जैसे कई लोग हर दिन दबाव और तनाव से जूझ रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज अक्सर अनसुनी रह जाती है। ये हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि हमें अपने आसपास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा।

आज, जब हम शिवशंकर को खो चुके हैं, उनके सुसाइड नोट की पंक्तियां हमें सोचने पर मजबूर करती हैं – क्या हमारा समाज और कार्यस्थल इतना असंवेदनशील हो चुका है कि लोग अपनी जान देने को मजबूर हो रहे हैं? आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कोई और इस अंधेरे रास्ते पर न चले।

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