भारत में ट्राम का सफर 150 साल पुराना है। मुंबई में घोड़ों से चलने वाली पहली ट्राम से लेकर आज के कोलकाता की इकलौती ट्राम तक, यह कहानी रोमांच और बदलाव से भरी है।
150 साल पहले 9 मई 1874 को मुंबई की सड़कों पर पहली ट्राम चली थी। घोड़ों से खिंची जाने वाली इस ट्राम ने शहर में आवागमन को आसान बना दिया था। लेकिन आज यह इतिहास बन चुकी है। अब सिर्फ कोलकाता में ही ट्राम देखने को मिलती है।
शुरुआत घोड़ों के साथ: भारत में ट्राम की शुरुआत घोड़ों के साथ हुई थी। कलकत्ता में 1873 में पहली ट्राम चली, लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चल पाई। मुंबई, पटना और नासिक में भी घोड़ों वाली ट्राम चलीं, लेकिन ये धीमी और महंगी थीं।
भाप के इंजन की एंट्री: कलकत्ता में 1880 में ट्राम फिर से शुरू हुई, लेकिन इस बार भाप के इंजन के साथ। लेकिन ये इंजन ज्यादा कारगर नहीं साबित हुए और प्रदूषण भी फैलाते थे।
बिजली से मिली नई जिंदगी: 1895 में मद्रास में पहली बार बिजली से चलने वाली ट्राम चली। यह ट्राम साफ-सुथरी, तेज और सस्ती थी। इसके बाद कलकत्ता, मुंबई, कानपुर और दिल्ली में भी बिजली की ट्राम चलने लगीं।
फिर हुआ ट्राम का अंत: 1960 के दशक तक भारत के ज्यादातर शहरों से ट्राम गायब हो गई। पटना में कम सवारियों के चलते सबसे पहले ट्राम बंद हुई। नासिक में अकाल और प्लेग की वजह से ट्राम बंद करनी पड़ी। मुंबई में लोकल ट्रेन और बसों की वजह से ट्राम की जरूरत खत्म हो गई।
ट्राम कभी शहरों की शान हुआ करती थी। लेकिन बदलते समय के साथ-साथ ट्राम भी पुरानी हो गई। आज भले ही ट्राम सिर्फ कोलकाता में बची हो, लेकिन यह अपने पीछे एक समृद्ध इतिहास छोड़ गई है।
आज भी कोलकाता में ट्राम चलती है और शहर के इतिहास का हिस्सा है। कुछ लोग ट्राम को फिर से शुरू करने की मांग भी कर रहे हैं।
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