महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में एक ऐसी घटना घटी है, जिसने सभी को चौंका दिया है। एक साधारण से दिखने वाले आदिवासी ने अपनी एक छोटी सी सूचना से पूरे इलाके का नक्शा ही बदल दिया। आइए जानते हैं इस रोमांचक कहानी के बारे में विस्तार से।
गढ़चिरौली, जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, वहां एक दिन एक गरीब आदिवासी ने हिम्मत जुटाई और पुलिस को एक बड़ी खबर दी। उसने बताया कि कहां छिपे हैं खतरनाक नक्सली। बस फिर क्या था, पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की योजना बनाई।
पुलिस ने बड़ी चालाकी से एक ऑपरेशन की तैयारी की। जैसे ही मौका मिला, सुरक्षाबलों ने नक्सलियों पर धावा बोल दिया। दोनों तरफ से जमकर गोलीबारी हुई। करीब छह घंटे तक चली इस लड़ाई में आखिरकार सुरक्षाबल विजयी हुए।
इस भीषण मुठभेड़ में कुल 12 नक्सली मारे गए। इनमें पांच महिला नक्सली भी शामिल थीं। मारे गए नक्सलियों में तीन ऐसे भी थे, जो नक्सली संगठन के बड़े नेता थे। इस कार्रवाई में तीन पुलिसकर्मी भी घायल हुए, लेकिन उनकी जान बच गई।
इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी बात यह रही कि इससे नक्सलियों के दो बड़े दलों का सफाया हो गया। ये दल थे कोरची-टीपागढ़ और चटगांव-कासनसूर। इन दलों के खत्म होने से पूरे उत्तरी गढ़चिरौली क्षेत्र से नक्सलियों का प्रभाव लगभग समाप्त हो गया है।
पुलिस को इस ऑपरेशन में बड़ी सफलता मिली। उन्होंने नक्सलियों से कई खतरनाक हथियार भी बरामद किए। इनमें सात स्वचालित हथियार, तीन एके-47 राइफल, दो इंसास राइफल, एक कार्बाइन गन और एक सेल्फ लोडिंग राइफल (SLR) शामिल थे। ये हथियार बताते हैं कि नक्सली कितने खतरनाक थे।
जो नक्सली मारे गए, उनमें से कई पर लाखों रुपये का इनाम था। योगेश तुलावी, लक्ष्मण अत्राम उर्फ विशाल और प्रमोद कचलामी – इन तीनों पर 16-16 लाख रुपये का इनाम था। बाकी नक्सलियों पर भी दो से छह लाख रुपये तक का इनाम घोषित था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितने खतरनाक अपराधी थे।
अब आते हैं सबसे दिलचस्प हिस्से पर। जिस आदिवासी ने यह जानकारी दी, उसे सरकार ने 86 लाख रुपये का बड़ा इनाम देने का ऐलान किया है। यह राशि उस गरीब आदिवासी के लिए किसी सपने के सच होने जैसी है। लेकिन उसकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसका नाम गुप्त रखा गया है।
महाराष्ट्र के गृह मंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने इस ऑपरेशन में शामिल कमांडो को भी 51 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की है। यह इनाम उनकी बहादुरी और कुशलता के लिए दिया जा रहा है।
इस पूरी घटना से कई सवाल उठते हैं। क्या एक आम आदमी की छोटी सी मदद इतना बड़ा बदलाव ला सकती है? क्या इस तरह के इनाम और अन्य लोगों को नक्सलियों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेंगे? क्या इससे नक्सलवाद पर अंकुश लगेगा?
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