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मुंबई की लाइफलाइन बन रही है डेथलाइन: रोज तीन-चार लोग क्यों चुन रहे हैं मौत का रास्ता? जानिए इस चौंकाने वाली खबर की पूरी सच्चाई

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मुंबई, भारत की आर्थिक राजधानी, अपनी व्यस्त जीवनशैली और तेज रफ्तार जिंदगी के लिए जानी जाती है। यहां की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेनें हर रोज लाखों लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं। लेकिन इन्हीं रेल पटरियों पर एक ऐसा दर्दनाक सच छिपा है, जिसे जानकर हर किसी का दिल दहल जाएगा। मुंबई की रेलवे लाइनों पर हर दिन तीन से चार लोग अपनी जान दे देते हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि हमारे समाज की एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है।

मुंबई की मध्य और पश्चिमी रेलवे लाइनों पर होने वाली इन आत्महत्याओं के पीछे कई कारण हैं। कुछ लोग पारिवारिक कलह से तंग आकर यह कदम उठाते हैं, तो कुछ नौकरी में तनाव या आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए इस रास्ते को चुनते हैं। कई लोगों के लिए किसी बीमारी से लड़ना मुश्किल हो जाता है, तो कुछ लोग प्रेम में असफलता को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इन सभी कारणों के पीछे एक बड़ी वजह मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी भी है।

पिछले छह महीनों के आंकड़े बताते हैं कि मध्य और पश्चिमी रेलवे पर कुल 51 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 47 पुरुष और 4 महिलाएं शामिल थीं। यह आंकड़ा दिखाता है कि पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति ज्यादा है। इसके पीछे समाज में पुरुषों पर पड़ने वाला दबाव और उनके मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी हो सकती है।

इन घटनाओं का असर सिर्फ पीड़ित परिवारों तक ही सीमित नहीं रहता। जब कोई व्यक्ति रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करता है, तो उससे ट्रेन सेवाएं प्रभावित होती हैं। रेलवे कर्मचारियों को शव हटाने में समय लगता है, जिससे ट्रेनों में देरी होती है और हजारों यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति और उसके बेटे को पश्चिमी रेलवे लाइन पर तेज गति से आती ट्रेन के नीचे कूदते हुए देखा गया। यह दृश्य न सिर्फ दिल दहला देने वाला था, बल्कि इसने इस समस्या की गंभीरता को और भी उजागर कर दिया।

जब हम पिछले साल के आंकड़ों से तुलना करते हैं, तो पाते हैं कि स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। 2023 की पहली छमाही में कुल 50 आत्महत्याएं हुईं थीं, जबकि 2024 में यह संख्या 51 हो गई। यह बताता है कि इस समस्या से निपटने के लिए अभी तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं।

कल्याण और पालघर रेलवे स्टेशनों के आसपास आत्महत्या के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए गए हैं। 2024 की पहली छमाही में कल्याण में 20 और पालघर में 12 आत्महत्याएं हुईं। यह आंकड़ा इन इलाकों में रहने वाले लोगों की मानसिक स्थिति पर गहराई से विचार करने की जरूरत को दर्शाता है।

इन सभी तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि मुंबई की रेल पटरियों पर होने वाली आत्महत्याएं एक गंभीर सामाजिक समस्या है। यह न सिर्फ व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। हमें यह समझना होगा कि हर जीवन कीमती है और किसी को भी इस तरह अपनी जान देने के लिए मजबूर नहीं होना चाहिए।

इस समस्या से निपटने के लिए कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। पहला, मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ानी होगी। लोगों को समझाना होगा कि मानसिक समस्याएं शारीरिक बीमारियों की तरह ही होती हैं और उनका इलाज संभव है। दूसरा, परिवारों और समाज को अपने सदस्यों के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा। किसी की परेशानी को नजरअंदाज करने के बजाय उसे समझने और मदद करने की कोशिश करनी चाहिए।

सरकार और रेलवे प्रशासन को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। रेलवे स्टेशनों पर काउंसलिंग सेंटर खोले जा सकते हैं, जहां लोग अपनी समस्याओं के बारे में बात कर सकें। स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य पर कार्यशालाएं आयोजित की जा सकती हैं। मीडिया को भी इस मुद्दे पर अधिक ध्यान देना होगा और लोगों को जागरूक करना होगा।

अंत में, यह समझना जरूरी है कि आत्महत्या कोई समाधान नहीं है। जीवन में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन उनसे लड़ना और आगे बढ़ना ही असली जीत है। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहां हर व्यक्ति अपने दुख और दर्द को साझा कर सके, जहां कोई अकेला न महसूस करे। तभी हम इस गंभीर समस्या से निपट पाएंगे और मुंबई की रेल पटरियों को मौत की पटरियों से जीवन की पटरियों में बदल पाएंगे।

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