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नाम में छिपा है इतिहास: सिक्किम सांसद ने उठाई ऐसी मांग, जो बदल सकती है भारत-चीन संबंधों की दिशा

नाम में छिपा है इतिहास: सिक्किम सांसद ने उठाई ऐसी मांग, जो बदल सकती है भारत-चीन संबंधों की दिशा

आज हम एक ऐसे मुद्दे पर बात करेंगे, जो भारत और चीन के रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। सिक्किम सांसद (राज्यसभा) डी टी लेप्चा ने एक ऐसी मांग उठाई है, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उन्होंने केंद्र सरकार से कहा है कि ‘चीन सीमा’ का नाम बदलकर ‘तिब्बत सीमा’ कर दिया जाए। आइए जानते हैं कि आखिर यह मांग क्यों की गई और इसका क्या महत्व है।

सांसद लेप्चा ने यह बात केंद्रीय बजट पर चर्चा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि चीन सीमा का नाम आधिकारिक तौर पर बदलकर तिब्बत सीमा कर देना चाहिए। उनका मानना है कि इस छोटे से बदलाव से बहुत बड़ा फर्क पड़ सकता है। वे कहते हैं कि इससे न सिर्फ हमारे क्षेत्र में चीन का प्रभाव कम होगा, बल्कि यह ऐतिहासिक तौर पर भी सही होगा।

लेप्चा जी ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात की ओर ध्यान खींचा है। उन्होंने कहा कि चीन हमेशा से हमारे इलाकों पर नजर गड़ाए रहता है। वह हमारे क्षेत्रों के नाम तक बदल देता है। ऐसे में, हमें भी अपनी सीमा का सही नाम रखना चाहिए। उन्होंने बताया कि अरुणाचल प्रदेश से लेकर सिक्किम तक, करीब 1400 किलोमीटर लंबी सीमा को हमेशा से ‘चीन सीमा’ कहा जाता रहा है। लेकिन यह नाम सही नहीं है।

सांसद ने एक बहुत दिलचस्प बात बताई। उन्होंने कहा कि वास्तव में हमारी सीमा तिब्बत से लगती है, न कि चीन से। LAC यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा तिब्बत के साथ है, चीन के साथ नहीं। इसलिए इस सीमा को ‘तिब्बत सीमा’ कहना ज्यादा सही होगा। उन्होंने सरकार से अपील की है कि वह सभी सरकारी एजेंसियों को इस नए नाम का इस्तेमाल करने का निर्देश दे।

लेप्चा जी ने सिर्फ नाम बदलने की बात नहीं की। उन्होंने कुछ और महत्वपूर्ण मुद्दे भी उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार को भारत-चीन सीमा व्यापार और नाथू ला सीमा के रास्ते मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने पर विचार करना चाहिए। यह यात्रा पहले होती थी, लेकिन अब बंद हो गई है। सांसद का मानना है कि इसे फिर से शुरू करना चाहिए।

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उन्होंने एक और चिंता जताई। उन्होंने कहा कि चीन ने तिब्बत में अपनी तरफ के सीमावर्ती इलाकों में नए गांव बसा दिए हैं। लेकिन हमारी तरफ, हमारे अपने लोगों को इन क्षेत्रों में जाने की अनुमति नहीं है। सरकार का कहना है कि ये इलाके आरक्षित वन और वन्यजीव अभयारण्य हैं। लेप्चा जी चाहते हैं कि सरकार इस नीति पर फिर से विचार करे और अपने नागरिकों को वहां जाने की अनुमति दे।

यह मुद्दा सिर्फ नाम बदलने का नहीं है। यह हमारी पहचान, हमारे इतिहास और हमारे अधिकारों से जुड़ा हुआ है। सांसद लेप्चा की यह मांग हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने देश की सीमाओं को कैसे देखते हैं और उनका नाम क्या होना चाहिए। यह बहस आने वाले दिनों में और भी गहरी हो सकती है।

इस तरह की मांगें हमें याद दिलाती हैं कि छोटे से बदलाव भी बड़े परिणाम ला सकते हैं। अब देखना यह है कि सरकार इस मांग पर क्या कदम उठाती है और क्या वाकई में ‘चीन सीमा’ का नाम बदलकर ‘तिब्बत सीमा’ किया जाता है या नहीं।

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