ये सच्ची घटना है उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर स्थित धनौरा गांव की। इसी घनौरा गांव में सत्यदेव शर्मा नाम के एक व्यक्ति का बेटा बबलू 22 साल पहले दिल्ली रेलवे स्टेशन पर यात्रा के दौरान खो गया था। अब तक चुकी उसे अपने गांव का नाम याद था, इसी वजह से इतने सालों बाद भी वो मां-बाप के पास वापस लौट पाया।
कब और कैसे गुम हुआ था बच्चा?
जिस वक्त वो गुम हुआ था, उसकी उम्र महज 4 वर्ष थी। दरअसल वो अपने माता-पिता के साथ कहीं जा रहा था, तभी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरने के दौरान वो गुम हो गया। इसके बाद मां-बाप ने अपने बच्चे को ढूंढने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो नहीं मिला। बच्चे के पैरेंट्स ने बच्चे की तलाश में पुलिस के साथ-साथ साधु-संत, फकीर, मंदिर, मस्जिद सबके चक्कर काट लिए, लेकिन बच्चे का कुछ पता नहीं चला।फिर उन्होंने न चाहते हुए बी बच्चे के मिलने की उम्मीद का दामन किस्मत के भरोसे छोड़ दिया। लेकिन फिर कई सालों बाद एक चमत्कार हुआ और उस माता-पिता को अपना खोया हुआ बच्चा वापस मिल गया।
कैसे हुआ चमत्कार?
ऑपरेशन मुस्कान के तहत आगरा जीआरपी ने बबलू को उसके परिवार से मिलवाया। मिली जानकारी के अनुसार साल 2002 में बबलू दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अपने माता-पिता से बिछड़ गया था। दिल्ली पुलिस ने जब देखा की एक अकेला बच्चा घूम रहा है। तो उसे बाल-सुधार गृह में भेज दिया गया। वो लगातार 22 साल तक वहीं रहा। 14 साल की उम्र तक तो वो वहां पर शरणार्थी के रूप में रहा, लेकिन जब वो 18 साल की हो गया तो उसे वहीं पर नौकरी मिल गई।
इसी बीच ‘ऑपरेशन मुस्कान’ में जुटी आगरा जीआरपी की टीम किसी गुमशुदा की तलाश में दिल्ली के उसी बाल सुधार गृह पहुंची जहां पर बबलू रह रहा था। यहां पर ‘ऑपरेशन मुस्कान’ की टीम को बबलू के बारे भी जानकारी मिली तो उस टीम ने बबलू से पूछताछ की। तब बबलू ने अपने गांव का धनौरा बताया। इसके अलावा उसे कुछ और याद नहीं था। तब टीम ने बबलू को उसके मां-बाप से मिलाने बीड़ा उठाया। गांव की तलाश जारी हुई। अब यहां टीम के लिए मुश्किल ये थी कि धनौरा नाम का गांव को कई राज्यों में और अनेक हैं। तो आखिर किस धनौरा गांव की बात बबलू कर रहा है।
इसके बाद फिर बबलू ने बताया कि उसके गांव के पास एक रेलवे स्टेशन है, जहां से उसने ट्रेन पकड़ी थी। तब ‘ऑपरेशन मुस्कान’ की टीम ने ऐसे गांव की तलाश जारी की। मैप का सहारा लिया। इस छानबीन में चोला नाम के रेलवे स्टेशन का नाम सामने आया। फिर काफी मशक्कत के बाद बुलंदशहर के गांव धनौरा के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद टीम ने उस गांव में पूछताछ की तो, उसी गांव के किसी व्यक्ति ने बताया कि कई साल पहले सत्यदेव का बेटा गुम हो गया था। फिर क्या था जीआरपी की टीम ने बबलू की पहचान के लिए धनौरा में उसकी फोटो भेजी। फोटो को देखते ही बबलू की मां ने अपने बेटे को पहचान लिया।
इसके बाद सत्यदेव शर्मा, यानी बबलू के पिता से जीआरपी की टीम ने बात की और बबलू से वीडियो कॉल पर माता-पिता की बात करवाई। ये सब हो जाने के बाद बबलू के माता-पिता को आगरा बुलाया गया, और फिर वहां से दिल्ली के उस बाल सुधार गृह में उन्हें ले जाया गया, जहां बबलू रह रहा था। माता-पिता को देखते ही वो उनके गले लग पड़ा। सालों पहले अपने छोटे से बच्चे को खोने का जो दर्द उनकी आंखो में दिख रहा था, उसे देख हर कोई इमोशनल हो गया। फिर आखिरकार 22 साल बाद बबलू अपने घर लौट सका।