Haryana Dalit vote: हरियाणा के चुनाव में दलित वोटरों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। बीजेपी ने पुराने मामलों को उठाकर और अपनी उपलब्धियों को बताकर दलित वोटरों को आकर्षित किया। इस लेख में हम देखेंगे कि दलित वोटों ने चुनाव परिणाम को कैसे प्रभावित किया।
हरियाणा चुनाव में दलित वोटों की भूमिका
हरियाणा के चुनाव में एक महत्वपूर्ण कारक रहा हरियाणा दलित वोट (Haryana Dalit vote)। इस बार दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए सभी दलों ने कड़ी मेहनत की। खासकर बीजेपी ने इस मोर्चे पर बहुत ध्यान दिया और अपनी रणनीति को इसी के अनुसार तैयार किया।
बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार में पुराने मामलों को उठाया। गोहाना और मिर्चपुर की घटनाओं का जिक्र किया गया। ये दोनों घटनाएँ कांग्रेस सरकार के समय हुई थीं। गोहाना में 2005 में एक बड़ी घटना हुई थी। वहाँ दलितों के 50 से ज्यादा घर जला दिए गए थे। यह घटना जातीय हिंसा का नतीजा थी। इसी तरह, 2010 में मिर्चपुर में भी एक दर्दनाक घटना हुई। वहाँ दलित परिवारों पर हमला किया गया था। इस हमले में एक बुजुर्ग और उनकी विकलांग बेटी की मौत हो गई थी।
बीजेपी ने इन घटनाओं को याद दिलाकर कांग्रेस को दलित विरोधी साबित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन में दलितों पर अत्याचार हुए। बीजेपी के बड़े नेताओं ने भी इन घटनाओं का जिक्र किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपने भाषणों में इन घटनाओं का उल्लेख किया।
हरियाणा में दलित वोटर्स का प्रभाव चुनाव पर (impact of Dalit voters on elections) काफी अधिक है। राज्य की कुल आबादी का लगभग 21 प्रतिशत हिस्सा दलित समुदाय का है। विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा, 35 ऐसी सीटें हैं जहाँ दलित वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसलिए हर पार्टी के लिए दलित वोटरों को अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी था।
बीजेपी ने अपनी रणनीति में दलित वोटरों को विशेष महत्व दिया। उन्होंने न सिर्फ पुराने मामलों को उठाया, बल्कि अपने कार्यकाल में दलितों के लिए किए गए कामों का भी जिक्र किया। उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाओं की बात की जो दलित समुदाय के लिए शुरू की गईं। इसके अलावा, उन्होंने नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर एक बड़ा संदेश दिया। सैनी ओबीसी समुदाय से आते हैं और उनका चयन दलित और पिछड़े वर्ग के वोटरों को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा था।
दूसरी ओर, कांग्रेस ने भी दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। उन्होंने अपने कार्यकाल में दलितों के लिए किए गए कामों का जिक्र किया। लेकिन बीजेपी के आरोपों का उन्हें सामना करना पड़ा। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे। बीजेपी ने इस बात को भी मुद्दा बनाया। उन्होंने कहा कि हुड्डा जाट समुदाय से हैं और अगर वे फिर मुख्यमंत्री बनते हैं तो दलितों पर फिर अत्याचार हो सकता है।
चुनाव नतीजों से पता चला कि बीजेपी की यह रणनीति कामयाब रही। उन्हें दलित वोटरों का समर्थन मिला और वे सत्ता में वापसी करने में सफल रहे। हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि सिर्फ दलित वोटों की वजह से ही बीजेपी जीती। कई अन्य कारक भी थे जिन्होंने चुनाव परिणाम को प्रभावित किया। लेकिन यह स्पष्ट है कि दलित वोटरों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस चुनाव ने एक बार फिर साबित किया कि हरियाणा की राजनीति में दलित वोटरों का महत्व बहुत अधिक है। आने वाले समय में भी राजनीतिक दल दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपनाते रहेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में दलित वोटर किस तरह से राज्य की राजनीति को प्रभावित करते हैं।
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