Demand for RSS ban: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर भारतीय राजनीति में एक बार फिर बहस तेज़ हो गई है। कांग्रेस ने RSS को लोकतंत्र विरोधी बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। यह विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि दशकों से चलता आ रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सच में RSS देश के लोकतंत्र के लिए खतरा है, या यह केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा है?
RSS पर कांग्रेस के आरोप: लोकतंत्र विरोधी संगठन?
कांग्रेस का कहना है कि RSS भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ काम करता है। पार्टी ने कई तर्कों के आधार पर संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है, जिनमें शामिल हैं:
- संविधान विरोधी मानसिकता – कांग्रेस का दावा है कि RSS भारतीय संविधान को विदेशी बताकर मनुस्मृति को सर्वोच्च मानता है।
- दलितों और पिछड़ों के अधिकारों का विरोध – पार्टी के अनुसार, RSS ने कभी भी किसी दलित को शीर्ष पदों पर नहीं रखा और पिछड़े वर्गों की छात्रवृत्तियों में कटौती को समर्थन दिया।
- शिक्षा बजट में कटौती – कांग्रेस का आरोप है कि RSS समर्थित सरकार ने शिक्षा बजट में कटौती कर पिछड़े वर्गों को नुकसान पहुँचाया।
- महिला विरोधी मानसिकता – पार्टी के अनुसार, RSS महिलाओं को केवल पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित रखने की सोच रखता है।
- राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान – दशकों तक RSS ने तिरंगे को स्वीकार नहीं किया, यह भी एक बड़ा आरोप है।
- अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा – कांग्रेस का कहना है कि RSS मुस्लिम और ईसाई समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करता है।
- सरकारी संस्थाओं पर नियंत्रण – कांग्रेस का आरोप है कि RSS ने सरकार, शिक्षा, प्रशासन और सांस्कृतिक संस्थाओं में अपनी विचारधारा को बढ़ावा दिया है।
क्या पहले भी RSS पर बैन लगा है?
यह पहली बार नहीं है जब RSS पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठी है। इससे पहले भी तीन बार इस संगठन पर बैन लग चुका है:
- 1948: महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरकार ने RSS को देश विरोधी गतिविधियों के चलते प्रतिबंधित कर दिया था।
- 1975: इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान RSS पर रोक लगा दी गई थी।
- 1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन सरकार ने RSS और कुछ अन्य संगठनों पर बैन लगाया था।
तीनों बार यह प्रतिबंध हटा लिया गया, लेकिन हर बार RSS को लेकर विवाद फिर से खड़ा हो गया।
RSS का पक्ष: “हम राष्ट्रभक्त संगठन हैं”
RSS अपने ऊपर लगे आरोपों को पूरी तरह से नकारता रहा है। संगठन का कहना है कि वह राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना को बढ़ावा देता है। RSS समर्थकों का मानना है कि यह एक सामाजिक संगठन है जो देशभक्ति और हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए काम करता है।
क्या यह केवल राजनीति है?
विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस और RSS के बीच टकराव केवल विचारधारा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधने के लिए RSS को एक प्रमुख मुद्दा बनाया है।
अब देखना यह होगा कि क्या कांग्रेस अपनी मांग को लेकर कानूनी कदम उठाती है, या यह विवाद महज़ एक राजनीतिक बहस तक ही सीमित रह जाता है।
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