महाराष्ट्र की राजनीति में हाल ही में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (CM Devendra Fadnavis) और डिप्टी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Deputy CM Eknath Shinde) के बीच सत्ता को लेकर आंतरिक मतभेद की चर्चाएं तेज हो गई हैं। इस बार मामला डिप्टी सीएम चिकित्सा सहायता सेल (DCM Medical Assistance Cell) से जुड़ा है, जिसे एकनाथ शिंदे ने अलग से स्थापित किया है, जबकि पहले से ही मुख्यमंत्री राहत कोष (CM Relief Fund) मौजूद है। इस फैसले से अटकलें लगाई जा रही हैं कि शिंदे अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
शिंदे का नया फैसला क्यों विवादों में?
एकनाथ शिंदे ने हाल ही में DCM चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ की स्थापना की और अपने करीबी मंगेश चिवटे को इसका प्रमुख नियुक्त किया। इस कदम को कई राजनीतिक विश्लेषक मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच बढ़ते मतभेद का संकेत मान रहे हैं। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री राहत कोष पहले से ही जरूरतमंद मरीजों को आर्थिक सहायता देने के लिए कार्यरत है। ऐसे में, शिंदे द्वारा अलग से यह प्रकोष्ठ बनाना कई सवाल खड़े कर रहा है।
DCM Medical Assistance Cell: DCM चिकित्सा सहायता सेल की भूमिका
चर्चाओं के बीच, मंगेश चिवटे ने स्पष्ट किया कि यह नया प्रकोष्ठ सीधे वित्तीय सहायता प्रदान नहीं करेगा। बल्कि, इसका उद्देश्य जरूरतमंद मरीजों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने और स्वास्थ्य योजनाओं को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने में मदद करना है। यह सेल महाराष्ट्र सरकार की महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना और केंद्र की आयुष्मान भारत योजना से जुड़े मरीजों को सही जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
क्या सत्ता में संघर्ष की शुरुआत हो चुकी है?
एकनाथ शिंदे के इस फैसले को लेकर अटकलें इसलिए भी तेज हैं क्योंकि जब वे मुख्यमंत्री थे, तब CM राहत कोष के तहत 32,000 मरीजों को 267.50 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी गई थी। लेकिन फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद, शिंदे के करीबी चिवटे की जगह रामेश्वर नाइक को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई। इस बदलाव के बाद ही शिंदे ने अलग से DCM चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ बनाने का फैसला लिया, जिससे साफ संकेत मिलता है कि वे अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाहते हैं।
राजनीतिक समीकरणों पर असर
इस नए घटनाक्रम ने महाराष्ट्र की महायुति सरकार (Mahayuti Government) में अंदरूनी कलह को उजागर कर दिया है। पहले संरक्षक मंत्री पद को लेकर शिवसेना और भाजपा के बीच मतभेद सामने आए थे और अब चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ को लेकर विवाद गहरा रहा है। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि शिंदे केवल डिप्टी सीएम की भूमिका तक सीमित नहीं रहना चाहते और अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
भविष्य की राजनीति पर प्रभाव
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि फडणवीस इस मामले पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। क्या यह केवल एक प्रशासनिक फैसला है, या फिर महाराष्ट्र की राजनीति में सत्ता संघर्ष की एक नई कहानी लिखी जा रही है? आने वाले दिनों में इस मामले में और भी खुलासे हो सकते हैं, जो महाराष्ट्र की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकते हैं।
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