महाराष्ट्र

Water Crisis: नाशिक के अवलखेड़ गांव में पानी की कमी, 3 किमी की यात्रा दूषित पानी के लिए, ग्रामीण परेशान

Water Crisis: नाशिक के अवलखेड़ गांव में पानी की कमी, 3 किमी की यात्रा दूषित पानी के लिए, ग्रामीण परेशान

नाशिक जिले के इगतपुरी तालुका में स्थित अवलखेड़ ग्राम पंचायत की गलियों में आज एक गंभीर समस्या की गूंज सुनाई देती है। यह समस्या है जल संकट (Water Crisis), जिसने गांव के हर घर को प्रभावित किया है। स्कूल जाने वाली लड़कियां, महिलाएं और बच्चे हर दिन 3 किलोमीटर की कठिन यात्रा करके दूषित पानी लाने को मजबूर हैं। यह पानी न केवल पीने के लिए असुरक्षित है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन रहा है। आइए, इस कहानी को करीब से जानते हैं और समझते हैं कि अवलखेड़ के लोग इस संकट का सामना कैसे कर रहे हैं।

जल संकट की कठिन हकीकत

अवलखेड़ गांव में पानी की कमी ने जीवन को मुश्किल बना दिया है। गांव के कुएं, जो कभी पानी का मुख्य स्रोत थे, अब या तो सूख चुके हैं या उनका पानी गंदा और पीने के लिए अनुपयुक्त हो गया है। सुवर्णा मढे, जो एल्गार कष्टकारी संगठन से जुड़ी हैं, ने बताया कि गांव के कुएं का पानी जब जांचा गया, तो वह दूषित पानी (Contaminated Water) पाया गया। यह पानी न केवल पीने के लिए अनुपयुक्त है, बल्कि इससे कई ग्रामीणों का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है।

हर दिन सुबह, स्कूल जाने वाली लड़कियां अपनी किताबों को घर पर छोड़कर पानी की तलाश में निकल पड़ती हैं। उन्हें पहाड़ी नालों और नालियों के रास्ते 3 किलोमीटर चलना पड़ता है, जहां से वे गंदा और कीचड़ भरा पानी लाती हैं। यह दृश्य न केवल दुखद है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पानी की कमी ने गांव के बच्चों की शिक्षा को भी प्रभावित किया है। महिलाएं और बच्चे भी इस कठिन यात्रा का हिस्सा हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है।

प्रशासन पर सवाल

अवलखेड़ के ग्रामीण इस संकट के लिए स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि इगतपुरी के विधायक हीरामन खोसकर और नाशिक के सांसद राजभाऊ वाजे ने इस गंभीर समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सुवर्णा मढे ने बताया कि 10 अप्रैल को टैंकर सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। ग्रामीणों का गुस्सा इस बात से और बढ़ जाता है कि प्रशासन की ओर से कोई ठोस योजना या कार्रवाई नहीं दिख रही।

गांव में पानी की कमी का असर केवल इंसानों तक सीमित नहीं है। पशुओं को भी पानी नहीं मिल रहा, जिसके कारण कई ग्रामीण अपने जानवरों को बेचने पर मजबूर हो रहे हैं। यह स्थिति गांव की अर्थव्यवस्था और आजीविका पर भी गहरा असर डाल रही है। एक ग्रामीण ने बताया कि बारिश के मौसम में पर्याप्त पानी होने के बावजूद, इस तरह की कमी प्रशasan की खराब योजना और निष्क्रियता का सबूत है।

स्वास्थ्य और शिक्षा पर प्रभाव

दूषित पानी का उपयोग करने से ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। पेट दर्द, उल्टी और अन्य जलजनित बीमारियां आम हो गई हैं। खासकर बच्चे और बुजुर्ग इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं। एक मां ने बताया कि उसके बच्चे को बार-बार बीमार होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य के लिए, बल्कि गांव के भविष्य के लिए भी चिंताजनक है।

शिक्षा पर भी इस संकट का गहरा असर पड़ा है। स्कूल जाने वाले बच्चे पानी लाने के लिए सुबह की कीमती घंटे बर्बाद कर देते हैं। इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है, और कई बच्चे स्कूल जाना ही छोड़ रहे हैं। यह स्थिति नई पीढ़ी के लिए एक बड़ा खतरा है, जो शिक्षा के माध्यम से बेहतर भविष्य की उम्मीद रखती है।

जल जीवन योजना की सुस्ती

जल जीवन योजना, जिसका उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ पानी पहुंचाना है, अवलखेड़ में प्रभावी नहीं हो पाई है। ग्रामीणों का कहना है कि इस योजना के तहत कोई ठोस काम नहीं हुआ। न तो पाइपलाइन बिछाई गई, न ही पानी के नए स्रोत विकसित किए गए। यह योजना, जो ग्रामीण भारत के लिए एक वरदान हो सकती थी, अवलखेड़ में केवल कागजों तक सीमित रह गई।

पानी की कमी का यह संकट केवल अवलखेड़ तक सीमित नहीं है। इगतपुरी तालुका के कई आदिवासी गांवों में भी यही स्थिति है। ये गांव, जो प्राकृतिक रूप से बारिश से समृद्ध हैं, फिर भी पानी के लिए तरस रहे हैं। यह विडंबना प्रशासन की प्राथमिकताओं और योजनाओं पर सवाल उठाती है।

ग्रामीणों की मांग

अवलखेड़ के लोग अब और इंतजार नहीं करना चाहते। उन्होंने प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनकी मांग है कि टैंकर सेवा शुरू की जाए, कुओं की सफाई की जाए और स्वच्छ पानी के लिए स्थायी समाधान ढूंढा जाए। कुछ ग्रामीणों ने सुझाव दिया कि बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए छोटे बांध या तालाब बनाए जा सकते हैं। यह न केवल पानी की कमी को कम करेगा, बल्कि भविष्य में ऐसी स्थिति को रोकने में भी मदद करेगा।

एक युवा ग्रामीण ने बताया कि गांव के लोग एकजुट होकर इस मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहे हैं। वे सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात को दुनिया तक पहुंचाना चाहते हैं, ताकि उनकी आवाज सुनी जाए। यह नई पीढ़ी की जागरूकता और सक्रियता को दर्शाता है, जो बदलाव की उम्मीद रखती है।

संघर्ष की कहानी

अवलखेड़ की यह कहानी केवल पानी की कमी की नहीं, बल्कि एक समुदाय के संघर्ष और उनकी उम्मीद की है। हर दिन 3 किलोमीटर की यात्रा करके दूषित पानी लाने वाली महिलाएं और बच्चे इस संकट के सबसे बड़े गवाह हैं। उनकी मेहनत और हिम्मत इस बात का सबूत है कि वे हार नहीं मानना चाहते। लेकिन यह भी सच है कि उनकी इस लड़ाई में प्रशासन का साथ जरूरी है।

यह संकट न केवल अवलखेड़ की समस्या है, बल्कि यह उन हजारों गांवों की कहानी है, जो आज भी स्वच्छ पानी के लिए तरस रहे हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि एक ऐसी दुनिया में, जहां तकनीक और विकास की बातें हर दिन होती हैं, बुनियादी जरूरतों जैसे पानी के लिए लोग अभी भी इतना संघर्ष क्यों कर रहे हैं।

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