Mumbai Jain Temple: मुंबई के विले पार्ले में सालों पुराने दिगंबर जैन मंदिर को बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) द्वारा तोड़े जाने से जैन समुदाय में गहरा आक्रोश फैल गया है। इस कार्रवाई को जैन समाज ने न सिर्फ धार्मिक आस्था पर हमला करार दिया, बल्कि इसे एकतरफा और असंवेदनशील भी बताया। इस घटना के विरोध में जैन समुदाय और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेतृत्व में 19 अप्रैल को विले पार्ले से अंधेरी पूर्व के बीएमसी कार्यालय तक मौन विरोध मार्च निकाला जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
बीएमसी ने कोर्ट के आदेश का हवाला देकर विले पार्ले के इस ऐतिहासिक जैन मंदिर को ध्वस्त कर दिया। जैन धर्मगुरुओं और समुदाय के नेताओं का कहना है कि ये कार्रवाई न केवल आस्था के खिलाफ थी, बल्कि इसमें संवेदनशीलता की भी कमी थी। ध्वस्तीकरण के दौरान जैन धार्मिक नेताओं ने बीएमसी से अनुरोध किया था कि मंदिर की पवित्र पुस्तकें और पूज्य वस्तुओं को हटाने का समय दिया जाए, लेकिन बीएमसी ने इस आग्रह को नजरअंदाज कर जेसीबी मशीनों से कार्रवाई शुरू कर दी।
कोर्ट की रोक और समुदाय की मांग
हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोपहर तक मंदिर तोड़ने पर अस्थायी रोक लगा दी, लेकिन तब तक बीएमसी की मशीनें मंदिर का बड़ा हिस्सा मलबे में बदल चुकी थीं। जैन समुदाय ने इस घटना के लिए जिम्मेदार बीएमसी के वार्ड अधिकारी नवनाथ घाडगे को तुरंत निलंबित करने की मांग की है। इसके अलावा, समुदाय ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से अपील की है कि मंदिर को उसी स्थान पर फिर से स्थापित किया जाए।
आंदोलन की चेतावनी
जैन समाज ने इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। मौन मार्च के जरिए समुदाय अपनी नाराजगी और एकजुटता को प्रदर्शित करने की तैयारी में है। ऐसे में अब सभी की नजरें प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं। क्या बीएमसी और सरकार जैन समुदाय की मांगों को पूरा कर पाएगी? क्या धार्मिक सौहार्द को बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे? ये समय बताएगा।
क्या है पूरा मामला?
मिली जानकारी के अनुसार ये मंदिर एक इमारत के पार्किंग स्थल पर बना है, जिसके कारण लंबे समय से विवाद चल रहा है। विले पार्ले के इस जैन मंदिर को लेकर जमीन के मालिकों और मंदिर के ट्रस्टियों के बीच कई सालों से कानूनी लड़ाई चल रही है। मंदिर के स्थान को लेकर दोनों पक्षों में मतभेद हैं, क्योंकि ये एक निजी इमारत के पार्किंग क्षेत्र में बना है। इस विवाद ने न केवल स्थानीय लोगों का ध्यान खींचा है, लेकिन इसे कोर्ट तक ले गया।
कोर्ट में क्या हुआ?
इस मामले की सुनवाई सत्र अदालत में हुई, जहां अदालत ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। इस फैसले के खिलाफ मामला बॉम्बे हाई कोर्ट में पहुंचा। हाई कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया और मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को मंदिर को ध्वस्त करने के लिए चार बार आदेश जारी किए।
हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि अगर पांचवीं बार भी कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ, तो बीएमसी अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाएगी। ये बयान इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है।
कानूनी लड़ाई और कोर्ट का रुख
ये मामला लंबे समय से कोर्ट में चल रहा था। सत्र अदालत ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था, जिसके बाद मामला बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने BMC को चार बार मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था और पांचवीं बार आदेश न मानने पर अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
अखिल भारतीय जैन अल्पसंख्यक महासंघ के अध्यक्ष ललित गांधी ने बताया कि 15 अप्रैल को कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी थी, और 16 अप्रैल को सुबह 11 बजे सुनवाई होनी थी। लेकिन BMC ने सुबह 8 बजे ही कार्रवाई शुरू कर दी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
जैन समुदाय ने मांग की है कि मंदिर के मलबे को हटाकर वहां अस्थायी रूप से देवताओं को रखने के लिए शेड बनाया जाए। समुदाय का कहना है कि ये कार्रवाई न केवल उनकी आस्था पर चोट है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान पर भी हमला है। वैसे इसपर आपका क्या कहना है, हमें कमेंट कर जरूर बताएं।
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