Ladki Bahin Scheme: महाराष्ट्र की सियासत में इन दिनों एक नया तूफान उठ खड़ा हुआ है। बात है लाडकी बहिन योजना (Ladki Bahin Scheme) की, जिसे पिछले साल विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शुरू किया गया था। इस योजना ने महिलाओं के बीच खूब लोकप्रियता बटोरी, लेकिन अब इसके लिए फंड्स जुटाने का तरीका विवादों के घेरे में है। सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण (Scheduled Caste and Tribe Welfare) के लिए तय किए गए 746 करोड़ रुपये को इस योजना में डायवर्ट कर दिया है। इस फैसले ने न केवल विपक्ष को हमलावर बना दिया है, बल्कि सत्ताधारी महायुति गठबंधन में भी दरारें उजागर हो रही हैं।
शुक्रवार को जारी एक सरकारी आदेश ने इस बात का खुलासा किया कि सामाजिक न्याय और विशेष सहायता विभाग से 410.30 करोड़ रुपये और जनजातीय विकास विभाग से 335.70 करोड़ रुपये को लाडकी बहिन योजना के लिए स्थानांतरित कर दिया गया। यह राशि हर महीने इस योजना के लिए ली जाएगी। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है, और इसे महायुति सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। लेकिन इस फंड डायवर्जन ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या यह आर्थिक तंगी का नतीजा है या फिर गलत प्राथमिकताओं का?
सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट, जो उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के करीबी माने जाते हैं, इस फैसले से बेहद नाराज हैं। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि अगर सामाजिक न्याय विभाग की जरूरत नहीं है, तो इसे बंद ही कर देना चाहिए। शिरसाट का गुस्सा इसलिए भी जायज लगता है, क्योंकि उन्हें इस फंड डायवर्जन की जानकारी मीडिया के जरिए मिली, न कि आधिकारिक तौर पर। उन्होंने वित्त विभाग पर मनमानी का आरोप लगाया और कहा कि यह कदम गैरकानूनी है। शिरसाट ने पहले भी मार्च में दावा किया था कि उनके विभाग से 7,000 करोड़ रुपये की कटौती की गई थी, और अब यह नया डायवर्जन उनके लिए बर्दाश्त से बाहर है।
लाडकी बहिन योजना की शुरुआत एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई थी, और इसे महायुति की चुनावी जीत का बड़ा कारण माना जाता है। इस योजना के तहत करीब 2.46 करोड़ महिलाएं हर महीने 1,500 रुपये की मदद पाती हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद सरकार को अब इस योजना को चलाने के लिए भारी आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है। राज्य का कर्ज 8 लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका है, और राजस्व घाटा भी चिंताजनक स्तर पर है। ऐसे में सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण के लिए तय फंड्स को डायवर्ट करने का रास्ता चुना, जो कई सवाल खड़े करता है।
विपक्ष ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए तय फंड्स को इस तरह डायवर्ट करना नियमों का उल्लंघन है। उन्होंने बताया कि सामाजिक न्याय विभाग को 3,960 करोड़ रुपये का विशेष अनुदान मिला था, जिसमें से 414.30 करोड़ रुपये और जनजातीय विकास विभाग के 3,420 करोड़ रुपये में से 335.70 करोड़ रुपये को लाडकी बहिन योजना में डाल दिया गया। दानवे ने इसे सामाजिक अन्याय करार दिया और कहा कि यह कदम पिछड़े और आदिवासी समुदायों के हक को छीनने जैसा है।
यह पहली बार नहीं है जब लाडकी बहिन योजना विवादों में आई है। चुनाव से पहले सरकार ने वादा किया था कि इस योजना के तहत दी जाने वाली राशि को 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये किया जाएगा। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते यह वादा पूरा नहीं हो सका। अप्रैल 2025 की किस्त भी अक्षय तृतीया के मौके पर देने का वादा किया गया था, लेकिन फंड्स की कमी के कारण यह भुगतान अब तक नहीं हो पाया। अब जब सामाजिक न्याय और जनजातीय विकास विभागों से फंड्स लिए गए हैं, तो उम्मीद है कि यह किस्त जल्द ही लाभार्थियों के खातों में पहुंच जाएगी।
यह पूरा मामला महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर भी सवाल उठाता है। एक तरफ सरकार अपनी लोकप्रिय योजना को चलाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक न्याय और आदिवासी कल्याण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को नजरअंदाज किया जा रहा है। कई अन्य राज्यों में अनुसूचित जाति और जनजाति के फंड्स को डायवर्ट करने पर रोक लगाने वाले कानून हैं, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा कोई कानून नहीं है। इसकी वजह से सरकार को यह कदम उठाने में आसानी हुई, लेकिन इसका विरोध भी उतना ही तेज हो रहा है।
महायुति गठबंधन में भी इस फैसले ने तनाव पैदा कर दिया है। शिरसाट की नाराजगी और उनके वित्त मंत्री अजित पवार पर लगाए गए आरोप इस बात का संकेत हैं कि गठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। शिरसाट ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इस मुद्दे पर बात करने की बात कही है, जिससे इस विवाद के और गहराने की आशंका है।
लाडकी बहिन योजना ने लाखों महिलाओं को आर्थिक सहारा दिया है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन इसके लिए दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के फंड्स को डायवर्ट करना कितना जायज है, यह एक बड़ा सवाल है। यह योजना महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई थी, लेकिन अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या एक समुदाय को सशक्त करने के लिए दूसरे समुदाय के हक को छीना जा रहा है? इस पूरे घटनाक्रम ने महाराष्ट्र की सियासत को गरमा दिया है, और आने वाले दिनों में यह विवाद और क्या रंग लाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
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