Goregaon-Mulund Link Road: मुंबई शहर की भीड़भाड़ और ट्रैफिक की समस्या से हर कोई वाकिफ है। इस समस्या को कम करने के लिए बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) एक बड़ा कदम उठा रही है। गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड (Goregaon-Mulund Link Road, गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड) परियोजना के लिए BMC ने सुप्रीम कोर्ट से संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (SGNP) में 95 पेड़ काटने की अनुमति मांगी है। यह खबर नई पीढ़ी के उन पाठकों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने शहर के विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन को समझना चाहते हैं। यह कहानी एक महत्वाकांक्षी परियोजना की है, जो मुंबई के पूर्व-पश्चिम यातायात को आसान बनाने का वादा करती है, लेकिन इसके लिए प्रकृति की कीमत भी चुकानी पड़ रही है।
यह परियोजना 14,000 करोड़ रुपये की लागत से बन रही है। इसका मकसद गोरेगांव और मुलुंड को जोड़ने वाली 6.62 किलोमीटर लंबी दोहरी सुरंग बनाना है। इन सुरंगों का व्यास 13 मीटर होगा, और ये जमीन के नीचे बनेंगी। इनमें से 1.32 किलोमीटर हिस्सा आरे कॉलोनी के नीचे से गुजरेगा। यह सुरंग मुंबई में पूर्व से पश्चिम तक की यात्रा को तेज और आसान बनाएगी। BMC का कहना है कि इससे गोरेगांव और मुलुंड के बीच का सफर एक घंटा कम हो जाएगा। इस परियोजना को ट्रैफिक की समस्या (Traffic Congestion, ट्रैफिक जाम) से जूझ रहे मुंबईवासियों के लिए एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
लेकिन इस परियोजना के लिए एक बड़ी चुनौती सामने आई है। सुरंग बनाने के लिए दो विशाल टनल बोरिंग मशीनें (TBM) इस्तेमाल की जाएंगी। ये मशीनें 95 मीटर लंबी और 14.5 मीटर चौड़ी हैं, और इन्हें मुंबई में लाया जा चुका है। इन्हें जमीन के नीचे उतारने के लिए SGNP के अंदर एक बड़ा शाफ्ट खोदना होगा। यह शाफ्ट 200 मीटर लंबा, 50 मीटर चौड़ा और 35 मीटर गहरा होगा। इस शाफ्ट को बनाने के लिए 95 पेड़ काटने की जरूरत है। BMC ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी है।
यह मामला तब और जटिल हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी 2025 को एक आदेश जारी किया। इस आदेश में कोर्ट ने आरे कॉलोनी में पेड़ काटने की अनुमति देने से ट्री अथॉरिटी को रोक दिया था। हालांकि, कोर्ट ने BMC को आवेदन प्रक्रिया शुरू करने और बाद में अनुमति मांगने की छूट दी थी। इसी आधार पर BMC ने अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। BMC का कहना है कि यह परियोजना किसी व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि बड़े जनहित के लिए है। यह परियोजना लाखों लोगों के लिए ट्रैफिक जाम की समस्या को कम करेगी।
पिछले साल दिसंबर में ट्री अथॉरिटी ने 1,094 पेड़ काटने के प्रस्ताव पर सार्वजनिक चर्चा की थी। उस समय इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण अंतिम मंजूरी नहीं मिली। बाद में शाफ्ट की जगह में थोड़ा बदलाव किया गया, जिसके बाद काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या बढ़कर 1,134 हो गई। BMC ने बताया कि वह बाकी पेड़ों के लिए अलग से अनुमति मांगेगी। BMC ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन 95 पेड़ों को काटने की अनुमति मांगी गई है, वह क्षेत्र आरे मिल्क कॉलोनी के पर्यावरण-संवेदनशील हिस्से में नहीं आता।
यह परियोजना मुंबई के लिए कितनी जरूरी है, यह समझना मुश्किल नहीं है। गोरेगांव और मुलुंड के बीच का रास्ता शहर के सबसे व्यस्त रास्तों में से एक है। हर दिन हजारों लोग इस रास्ते पर घंटों ट्रैफिक में फंसते हैं। यह सुरंग न केवल समय बचाएगी, बल्कि ईंधन की खपत और प्रदूषण को भी कम करेगी। लेकिन इसके लिए SGNP जैसे महत्वपूर्ण हरे-भरे इलाके में पेड़ काटना पड़ रहा है। यह एक ऐसी दुविधा है, जो विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की बात को सामने लाती है।
संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान मुंबई का एक अनमोल हिस्सा है। यह न केवल वन्यजीवों का घर है, बल्कि शहर के लिए एक बड़ा ऑक्सीजन स्रोत भी है। इस उद्यान में पेड़ों को काटना आसान फैसला नहीं है। BMC का कहना है कि वह सिर्फ जरूरी पेड़ ही काट रही है, और वह भी सुप्रीम कोर्ट की अनुमति से। फिर भी, यह कदम पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का विषय है।
इस परियोजना में टनल बोरिंग मशीनों का इस्तेमाल एक और रोचक पहलू है। ये मशीनें इतनी विशाल हैं कि इन्हें जमीन के नीचे उतारने के लिए बड़े शाफ्ट की जरूरत है। मुंबई जैसे शहर में, जहां जगह की कमी है, ऐसी मशीनों का इस्तेमाल अपने आप में एक इंजीनियरिंग चमत्कार है। ये मशीनें सुरंग को सटीक और तेजी से खोद सकती हैं, जिससे सतह पर कम से कम नुकसान हो। लेकिन शाफ्ट बनाने के लिए पेड़ काटना एक ऐसा कदम है, जिसे लेकर बहस छिड़ी हुई है।
BMC ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि यह परियोजना शहर के लिए कितनी जरूरी है। गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड न केवल ट्रैफिक को कम करेगी, बल्कि मुंबई के आर्थिक विकास में भी मदद करेगी। यह परियोजना उन लोगों के लिए भी राहत लेकर आएगी, जो हर दिन लंबे ट्रैफिक जाम में फंसकर थक जाते हैं। लेकिन इसके लिए पर्यावरण को दी जाने वाली कीमत भी कम नहीं है।
यह कहानी सिर्फ पेड़ काटने या सुरंग बनाने की नहीं है। यह मुंबई जैसे बड़े शहर की उन चुनौतियों की कहानी है, जहां विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं है। यह उन लोगों की कहानी है, जो हर दिन ट्रैफिक में समय गंवाते हैं। और यह उस कोशिश की कहानी है, जो सरकार और कोर्ट मिलकर शहर को बेहतर बनाने के लिए कर रहे हैं।