महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं का दिल दहलाने वाला सच सामने आया है। जनवरी से मार्च 2025 तक केवल तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या की। विदर्भ के यवतमाल, अमरावती, और अकोला जिलों में सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए। लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार के पास इन आँकड़ों के अलावा कोई ठोस समाधान है?
767 आत्महत्याएं: क्या सिर्फ मुआवजा काफी है?
महाराष्ट्र सरकार ने विधान परिषद के मानसून सत्र 2025 में खुलासा किया कि इन तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से 373 मामले मुआवजे के लिए पात्र पाए गए, जिनमें से 327 परिवारों को एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी गई। लेकिन क्या ये राशि उन परिवारों के दुख और नुकसान की भरपाई कर सकती है? बाकी 394 मामलों का क्या हुआ? 200 मामले अपात्र क्यों करार दिए गए, और 194 मामलों की जांच अब तक क्यों लंबित है?
कर्ज, फसल की बर्बादी, और बाजार में उचित दाम न मिलना – ये वो कारण हैं जो किसानों को इस कदम तक ले जा रहे हैं। फिर भी, सरकार की ओर से इन मूल समस्याओं को हल करने की कोई ठोस योजना नजर नहीं आती।
विदर्भ: आत्महत्याओं का गढ़, लेकिन समाधान कब?
यवतमाल, अमरावती, अकोला, बुलढाणा, और वाशिम जिलों में 257 किसान आत्महत्याएं दर्ज की गईं। विदर्भ लंबे समय से इस संकट का केंद्र रहा है, फिर भी सरकार की ओर से कोई दीर्घकालिक नीति या प्रभावी कदम नहीं दिखता। मंत्री मकरंद पाटील ने विधान परिषद में बताया कि मुआवजा प्रक्रिया में देरी और लंबित जांचें अभी भी जारी हैं। क्या ये संवेदनहीनता नहीं कि परिवार महीनों तक केवल इंतज़ार करते रहें?
सवाल यह है: आखिर कब तक विदर्भ के किसान इस तरह मरते रहेंगे, और सरकार केवल आंकड़े गिनती रहेगी?
सरकारी सिस्टम की नाकामी?
मुआवजा देने में देरी, जांच का लंबा इंतज़ार, और अपात्र मामलों की बढ़ती संख्या ये दिखाती है कि सरकारी तंत्र किसानों की जिंदगी को प्राथमिकता नहीं दे रहा। हर चुनाव में “किसान समृद्धि” का वादा किया जाता है, लेकिन धरातल पर क्या बदलाव आया? सरकार अब मुआवजे की राशि बढ़ाने पर विचार कर रही है, लेकिन ये विचार कब निर्णय में बदलेगा? और तब तक कितने और किसान अपनी जान गंवा देंगे?
आंकड़ों से आगे की ज़रूरत
767 आत्महत्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि बिखरे परिवार, रुकी पढ़ाई, और अकेलेपन की कहानियां हैं। महिलाओं पर घर की जिम्मेदारी और बच्चों का भविष्य दांव पर है। फिर भी, सरकार की नजर सिर्फ “पात्र” और “अपात्र” की फाइलों तक सीमित क्यों है? क्या सरकार का जवाब सिर्फ मुआवजा तक सीमित रह गया है?
ये नीतिगत असफलता का स्पष्ट प्रमाण है कि तीन महीनों में सैकड़ों किसान आत्महत्या कर लें, और सरकार के पास जवाब केवल आंकड़े हों। सरकार को अब उन कारणों पर काम करना होगा जो किसानों को इस हद तक ले जा रहे हैं। कर्ज से मुक्ति, फसलों के उचित दाम, और बेहतर बाजार व्यवस्था – क्या ये कदम उठाए जाएंगे?
शायद ये कहना गलत नहीं होगा कि महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं का ये आलम किसी आपदा से कम नहीं। सरकार को अब आंकड़ों से बाहर निकलकर ठोस कदम उठाने होंगे। विदर्भ के किसानों को बचाने के लिए दीर्घकालिक नीतियां, त्वरित मुआवजा प्रक्रिया, और कर्ज से राहत जैसे कदम जरूरी हैं। सवाल ये नहीं कि कितने पात्र हैं या अपात्र, सवाल ये है कि कब तक किसान बलिदान देते रहेंगे, और सरकार सिर्फ आंकड़े गिनती रहेगी?
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