महाराष्ट्र

हिंदी पर सियासी संग्राम के बीच नितेश राणे की तीखी प्रतिक्रिया, बोले – “गोल टोपी, दाढी वाले, आमिर खान, जावेद अख्तर…”

नितेश राणे
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महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी भाषा को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। हाल ही में मराठी भाषा को लेकर हुए विवादों ने न केवल राजनीतिक माहौल को गर्माया है, बल्कि हिंसक घटनाओं को भी जन्म दिया है। इस बीच, महाराष्ट्र के बंदरगाह विकास मंत्री नितेश राणे के बयानों ने विवाद को और हवा दी है।

नितेश राणे ने क्या कहा?
नितेश राणे ने हिंदी-मराठी विवाद पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “ये गोल टोपी और दाढ़ी वाले क्या मराठी बोलते हैं? जावेद अख्तर, आमिर खान जैसे लोग क्या मराठी बोलते हैं? ये नियम केवल गरीब हिंदुओं के लिए हैं? अगर कोई गरीब हिंदू पर हाथ उठाएगा, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।”

राणे ने आगे कहा, “हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। अगर इतनी हिम्मत है, तो नल बाजार या मोहम्मद अली रोड पर जाकर दिखाएं। वहां कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं करता। हमारी सरकार हिंदुत्व की विचारधारा वाली है और तीसरी आंख खोलकर इस साजिश को रोकेगी, जो हिंदुओं में फूट डालने और मुस्लिम राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रही है।”

 

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एमएनएस कार्यकर्ताओं की हिंसक हरकत
इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं ने मराठी नहीं बोलने को लेकर एक दुकानदार के साथ मारपीट की। ये घटना मीरा रोड पर बालाजी होटल के पास जोधपुर स्वीट्स की दुकान पर हुई। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में एमएनएस कार्यकर्ता दुकानदार को मराठी बोलने के लिए दबाव बनाते और हिंदी बोलने पर आपत्ति जताते नजर आए। पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।

गौरतलब है कि हाल ही में महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने पहली से पांचवीं कक्षा तक के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाने का आदेश जारी किया था। इस फैसले का विपक्षी दलों, खासकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की पार्टियों ने तीव्र विरोध किया। दोनों नेताओं ने 5 जुलाई को विरोध मार्च की घोषणा की थी। भारी विरोध के बाद सरकार ने 29 जून को ये फैसला वापस ले लिया।

भाषा विवाद और सामाजिक तनाव
महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी को लेकर ये बहस नई नहीं है, लेकिन हाल की घटनाओं ने इसे और गंभीर बना दिया है। एमएनएस की हिंसक कार्रवाइयों और नेताओं के भड़काऊ बयानों ने सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर हो रही राजनीति से सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंच सकता है।

महाराष्ट्र में भाषा को लेकर चल रहे इस विवाद ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या भाषा को क्षेत्रीय अस्मिता से जोड़कर सियासी फायदा उठाना उचित है? क्या हिंसा के जरिए अपनी बात मनवाना सही रास्ता है? सरकार और समाज को मिलकर इस मुद्दे का समाधान निकालना होगा, ताकि भाषा संस्कृति को जोड़े, न कि उसे बांटे।

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