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मुंबई में लाउडस्पीकर विवाद: दरगाहों ने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में लगाई याचिका

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मुंबई में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर चल रहा विवाद अब कानूनी जंग में बदल गया है। शहर की पांच दरगाहों ने मुंबई पुलिस की कार्रवाई को ‘मनमानी’ और ‘भेदभावपूर्ण’ करार देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इनका आरोप है कि पुलिस चुनिंदा तरीके से मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस
न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति एम एम सथाये की पीठ ने मंगलवार, 3 जुलाई को इस मामले में याचिका पर सुनवाई करते हुए मुंबई पुलिस को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 9 जुलाई तय की है। ये मामला उस समय चर्चा में आया जब पुलिस ने एक अदालती आदेश के आधार पर धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।

‘चुनिंदा तरीके से निशाना बनाया जा रहा’
पुलिस का दावा है कि उनकी कार्रवाई सभी धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के खिलाफ समान रूप से हो रही है। हालांकि, पांच दरगाहों की याचिका में इसे खारिज करते हुए कहा गया है कि पुलिस विशेष रूप से मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बना रही है। याचिका में दावा किया गया है कि इस कार्रवाई से इबादत करने वाले लोग प्रभावित हो रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने पुलिस द्वारा ध्वनि प्रदूषण नियमों के उल्लंघन के लिए जारी नोटिस को भी चुनौती दी है।

मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव का आरोप
याचिका में गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि “पुलिस की पूरी कार्रवाई मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है और ये शत्रुतापूर्ण भेदभाव का मामला है।” याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये कार्रवाई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और इसके पीछे निहित राजनीतिक हित हैं। याचिका में ये भी तर्क दिया गया है कि अज़ान इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है और मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर में नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग जरूरी है।

सियासी हलकों में भी हलचल
इस मुद्दे ने सियासी हलकों में भी हलचल मचा दी है। महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने भी लाउडस्पीकर विवाद को लेकर अपनी आवाज बुलंद की है। उन्होंने पुलिस की कार्रवाई को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया है।

मुंबई में लाउडस्पीकर को लेकर ये विवाद सामाजिक और धार्मिक संवेदनशीलता का मुद्दा बन गया है। एक तरफ ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की जरूरत है, वहीं दूसरी तरफ धार्मिक स्वतंत्रता और समुदायों के अधिकारों का सवाल भी अहम है। बॉम्बे हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई अब सभी की नजरों पर है। क्या कोर्ट इस विवाद का कोई निष्पक्ष समाधान निकाल पाएगा? ये देखना बाकी है।

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