Bombay HC Live Streaming: जब भी हम कोर्ट या न्याय व्यवस्था की बात करते हैं, तो हमारे मन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है जहां न्याय की प्रक्रिया गंभीर और गोपनीय होती है। लेकिन अब समय बदल रहा है, और बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस बदलाव को अपनाते हुए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। 7 जुलाई 2025 से, बॉम्बे हाई कोर्ट और उसकी बेंचेस कोर्ट की कार्यवाही (Court Proceedings) का लाइव स्ट्रीमिंग (Live Streaming) शुरू करने जा रही हैं। यह कदम न्याय प्रणाली में पारदर्शिता (Transparency) और जनता की पहुंच (Public Access) को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा बदलाव है।
पिछले महीने बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक पूर्ण अदालत संकल्प पारित किया, जिसके बाद यह निर्णय लिया गया। कोर्ट ने गुरुवार को एक नोटिस जारी कर कहा, “कोर्ट की कार्यवाही के लाइव स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के नियमों के तहत, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 7 जुलाई 2025 को वह तारीख नियुक्त की है, जिससे ये नियम महाराष्ट्र राज्य में लागू होंगे।” यह फैसला महाराष्ट्र सरकार द्वारा 1 जुलाई को जारी एक औपचारिक अधिसूचना के बाद लिया गया, जिसमें कोर्ट को लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने की तारीख तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
यह पहल संविधान के अनुच्छेद 225 और 227 के तहत बनाए गए विस्तृत नियमों द्वारा समर्थित है। ये नियम न केवल बॉम्बे हाई कोर्ट पर लागू होंगे, बल्कि इसके अधीन आने वाले निचली अदालतों और ट्रिब्यूनल्स पर भी लागू होंगे। हर कोर्ट परिसर में एक समर्पित नियंत्रण कक्ष स्थापित किया जाएगा, जो लाइव स्ट्रीमिंग की प्रक्रिया की निगरानी करेगा। इस कक्ष का काम यह सुनिश्चित करना होगा कि केवल उचित सामग्री ही स्ट्रीम की जाए।
लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति पीठासीन जज की सहमति पर निर्भर करेगी। अगर कई जजों की बेंच हो, तो सभी जजों की सहमति जरूरी होगी। पीठासीन जज के पास एक रिमोट-कंट्रोल डिवाइस होगी, जिससे वे किसी भी समय लाइव स्ट्रीमिंग को रोक या बंद कर सकेंगे। जिन मामलों में लाइव स्ट्रीमिंग नहीं होगी, वहां वकीलों या स्वयं मुकदमे लड़ रहे पक्षकारों को रिकॉर्डिंग की ट्रांसक्रिप्ट उपलब्ध कराई जाएगी।
हालांकि, सभी मामले लाइव स्ट्रीम नहीं किए जाएंगे। कुछ संवेदनशील मामले, जैसे वैवाहिक विवाद, पोक्सो और एमटीपी मामले, बलात्कार के मुकदमे, लिंग-आधारित हिंसा या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले, लाइव स्ट्रीमिंग से बाहर रखे गए हैं। इसके अलावा, साक्ष्य रिकॉर्डिंग और जिरह जैसी प्रक्रियाएं भी स्ट्रीम नहीं होंगी।
कोर्ट की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग को कम से कम छह महीने तक संग्रहीत किया जाएगा और इसे केवल अधिकृत चैनलों के माध्यम से ही साझा किया जाएगा। अगर कोई अनधिकृत रूप से रिकॉर्डिंग करता है या साझा करता है, तो उसके खिलाफ कॉपीराइट कानून, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और अवमानना कानून के तहत कार्रवाई होगी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी स्ट्रीम और रिकॉर्डेड सामग्री पर विशेष कॉपीराइट रखने का अधिकार सुरक्षित रखा है।
इस पहल की नींव वर्षों की मेहनत से पड़ी है। वकील मैथ्यूज नेदुमपारा, जिन्होंने 2010 में कोर्ट की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की वकालत शुरू की थी, ने इसे “लंबे समय से संजोया गया सपना जो अब पूरा हुआ” बताया। उन्होंने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग (Live Streaming) से न्यायपालिका की अपारदर्शिता की छवि को तोड़ने में मदद मिलेगी और यह जवाबदेही को बढ़ावा देगा।
वकील जमशेद मिस्त्री, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में स्वप्निल त्रिपाठी मामले में पारदर्शिता के लिए बहस की थी, ने भी इस कदम की सराहना की। उन्होंने कहा कि वे इस बात से विशेष रूप से खुश हैं कि सभी अदालतों और ट्रिब्यूनल्स में कानूनी ट्रांसक्रिप्ट उपलब्ध होंगे, भले ही कार्यवाही लाइव स्ट्रीम न हो। यह कदम न केवल पारदर्शिता (Transparency) को बढ़ाएगा, बल्कि उन लोगों के लिए भी न्याय तक पहुंच को आसान बनाएगा जो सुनवाई में हिस्सा नहीं ले सकते।
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि पूरे देश में न्याय प्रणाली को और खुला और जवाबदेह बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। जैसे-जैसे 7 जुलाई नजदीक आ रही है, लोग इस नए युग की शुरुआत का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जहां न्याय न केवल किया जाएगा, बल्कि उसे देखा भी जा सकेगा।