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Athawale Slams Raj Thackeray on Marathi Row: मुंबई में मराठी के नाम पर दादागिरी, अठावले ने की MNS पर कार्रवाई की मांग

Athawale Slams Raj Thackeray on Marathi Row: मुंबई में मराठी के नाम पर दादागिरी, अठावले ने की MNS पर कार्रवाई की मांग

Athawale Slams Raj Thackeray on Marathi Row: मुंबई, जो देश की आर्थिक राजधानी है, इन दिनों एक नए विवाद की चपेट में है। इस बार मामला है मराठी भाषा का, जिसके नाम पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ताओं की टिप्पणियों ने तूफान खड़ा कर दिया है। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने राज ठाकरे की तीखी आलोचना की है, उनके बयानों को “दादागिरी” और “विवादास्पद” करार देते हुए। यह कहानी सिर्फ भाषा की नहीं, बल्कि मुंबई के उस समावेशी चरित्र की है, जो इसे हर भाषा और संस्कृति का घर बनाता है।

यह सब तब शुरू हुआ, जब राज ठाकरे ने एक सभा में अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि जो लोग मराठी नहीं बोलते, उन्हें सबक सिखाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई “नाटक” करता है, तो उसे “कान के नीचे” मारना चाहिए, लेकिन इसका वीडियो नहीं बनाना चाहिए। इस बयान ने ना सिर्फ विवाद को जन्म दिया, बल्कि MNS कार्यकर्ताओं के कुछ हिंसक कृत्यों को भी हवा दी। वर्ली में एक व्यापारी, सुशील केडिया के दफ्तर पर हमला हुआ, क्योंकि उन्होंने मराठी ना बोलने की बात को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी। बाद में केडिया ने माफी मांगी, लेकिन इस घटना ने मुंबई में भाषा के नाम पर बढ़ती असहिष्णुता को उजागर कर दिया।

रामदास अठावले, जो रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के नेता हैं, ने इस मराठी भाषा विवाद पर अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि मराठी का सम्मान करना ठीक है, लेकिन किसी को जबरदस्ती मराठी बोलने के लिए मजबूर करना गलत है। अठावले ने राज ठाकरे से सवाल किया कि अगर इस तरह की दादागिरी के चलते मुंबई की इंडस्ट्रीज बंद हो गईं, तो क्या वह सबको नौकरियां देंगे? मुंबई में गैर-मराठी लोग भी कारोबार चलाते हैं, और यह शहर हर भाषा, हर प्रांत के लोगों का है। अठावले ने यह भी जोड़ा कि जो लोग मुंबई में पैदा हुए हैं, भले ही वे किसी और राज्य से हों, वे मराठी अच्छे से बोलते हैं। फिर दादागिरी की क्या जरूरत है?

इस विवाद में एक और मोड़ तब आया, जब अठावले ने शिवसेना (UBT) के प्रमुख उद्धव ठाकरे पर भी निशाना साधा। उन्होंने पूछा कि जब हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, तो उद्धव ठाकरे चुप क्यों हैं? उनके पिता बालासाहेब ठाकरे ने हिंदू समुदाय के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन उद्धव इस मुद्दे पर क्या कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे हाल ही में एक मंच पर साथ आए थे। यह सभा मराठी भाषा के लिए थी, जिसमें दोनों ने मिलकर सरकार के उस फैसले का जश्न मनाया, जिसमें स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का आदेश वापस लिया गया। लेकिन इस सभा में राज ठाकरे के बयानों ने विवाद को और हवा दी।

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में सख्त रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि भाषा के नाम पर “गुंडागर्दी” बर्दाश्त नहीं की जाएगी। पुलिस ने भी कार्रवाई की और कुछ MNS कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। भायंदर में हुए एक हमले में सात MNS समर्थकों को हिरासत में लिया गया, हालांकि बाद में उन्हें नोटिस देकर छोड़ दिया गया। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें राज ठाकरे पर हिंदी भाषियों के खिलाफ नफरत भरे भाषण देने का आरोप लगाया गया। इस याचिका में MNS को मान्यता रद्द करने की मांग भी की गई थी।

मुंबई का दिल बड़ा है। यह शहर हर उस शख्स को गले लगाता है, जो मेहनत और लगन के साथ यहां आता है। लेकिन भाषा के नाम पर हिंसा और दादागिरी ने इस शहर की छवि पर सवाल उठाए हैं। अठावले ने साफ कहा कि जो लोग दूसरों को मारते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन वे भी जवाब में उसी तरह का व्यवहार पा सकते हैं। उन्होंने सरकार से अपील की कि ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

यह विवाद सिर्फ मराठी और हिंदी का नहीं है। यह उस शहर की आत्मा का सवाल है, जो देश की आर्थिक धड़कन है। मराठी भाषा का गौरव अपनी जगह है, लेकिन मुंबई को मुंबई बनाने में हर भाषा, हर संस्कृति का योगदान है। इस शहर में गुजराती, हिंदी, तमिल, बंगाली और ना जाने कितनी भाषाएं एक साथ सांस लेती हैं। फिर भाषा के नाम पर यह तनाव क्यों? यह सवाल आज हर मुंबईकर के मन में है।

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