CJI Gavai: मुंबई की सड़कों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय करने वाले भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, बीआर गवई, ने हाल ही में अपने पुराने स्कूल में कदम रखा। यह वही जगह थी, जहां से उनकी जिंदगी ने नई दिशा पाई थी। रविवार को ‘चिकित्सक समूह शिरोडकर स्कूल’ में अपने पुराने सहपाठियों और शिक्षकों से मिलते हुए सीजेआई गवई ने दिल से बात की। उन्होंने कहा कि जज बनना कोई 10 से 5 की नौकरी नहीं है। यह समाज और राष्ट्र की सेवा का एक मौका है, जो बहुत कम लोगों को मिलता है। यह बात उन्होंने हाल ही में जजों के असभ्य व्यवहार की शिकायतों के बाद कही, जो सुर्खियों में थी।
सीजेआई गवई ने अपने स्कूल के उन दिनों को याद किया, जब वे मराठी माध्यम में पढ़ते थे। उन्होंने बताया कि मातृभाषा में पढ़ाई करने से उनकी सोच और समझ को नई गहराई मिली। यह स्कूल, जहां उन्होंने प्राथमिक से माध्यमिक तक की पढ़ाई की, उनके लिए सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह थी, जहां से उन्हें जीवन के मूल्य और आत्मविश्वास मिला। भाषण प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने की यादें ताजा करते हुए उन्होंने कहा कि यहीं से उनकी सार्वजनिक बोलने की कला शुरू हुई। आज वे जो कुछ हैं, उसका श्रेय वे अपने शिक्षकों और इस स्कूल को देते हैं।
जजों की भूमिका पर बात करते हुए सीजेआई गवई ने जोर देकर कहा कि जज बनना सिर्फ फैसले सुनाने का काम नहीं है। यह एक ऐसी जिम्मेदारी है, जो समाज की जरूरतों और मौजूदा पीढ़ी की समस्याओं को ध्यान में रखकर निभानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि जजों को अपनी शपथ और कानून के प्रति पूरी तरह ईमानदार रहना चाहिए। चाहे कोई फैसला कितना भी मुश्किल हो, उससे विचलित होने की जरूरत नहीं। जजों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने विवेक और संविधान के मुताबिक काम करें, ताकि न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे।
जजों की नियुक्ति के सवाल पर सीजेआई गवई ने साफ कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम में योग्यता, विविधता और समावेशिता का पूरा ध्यान रखा जाता है। उन्होंने कहा कि कानून और संविधान की व्याख्या व्यावहारिक होनी चाहिए, जो समाज की बदलती जरूरतों के साथ कदम मिलाए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि न्यायपालिका हर वर्ग के लिए सुलभ और निष्पक्ष रहे।
मुंबई के इस मराठी माध्यम स्कूल में अपने बचपन को याद करते हुए सीजेआई गवई ने मातृभाषा की ताकत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा में पढ़ने से न सिर्फ समझ बेहतर होती है, बल्कि यह जीवन भर साथ रहने वाले मूल्यों को भी मजबूत करता है। उनकी यह बात उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी जड़ों से जुड़े रहकर ऊंचाइयों को छूना चाहते हैं। स्कूल की गलियों में अपने सहपाठियों से हंसी-मजाक और पुरानी यादों को ताजा करते हुए वे उस बच्चे की तरह नजर आए, जो कभी इन्हीं बेंचों पर बैठकर सपने देखता था।
8 जुलाई को महाराष्ट्र विधानमंडल में सीजेआई गवई को सम्मानित किया जाएगा। यह समारोह उनके चीफ जस्टिस बनने की उपलब्धि के लिए आयोजित हो रहा है। इस मौके पर वे ‘भारत का संविधान’ विषय पर बोलेंगे। यह सम्मान न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के लिए गर्व का पल है। विधान भवन के सेंट्रल हॉल में होने वाले इस कार्यक्रम में उनकी यात्रा को याद किया जाएगा, जो एक छोटे से मराठी स्कूल से शुरू होकर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंची।