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Malegaon Blast: जानें कौन हैं 7 आरोपी और क्या हैं उनपर आरोप

Malegaon Blast
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Malegaon Blast: मुंबई की विशेष एनआईए कोर्ट ने 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने सभी सात आरोपियों, जिनमें बीजेपी की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं, को बरी कर दिया। साथ ही, प्रत्येक पीड़ित परिवार को 2 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया। ये फैसला 1000 से अधिक पेज के आदेश में दिया गया, जो 17 साल पुराने इस हाई-प्रोफाइल मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

2008 मालेगांव धमाके का मामला
29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक व्यस्त सड़क पर हुए बम धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी और करीब 100 लोग घायल हुए थे। महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने धमाके के कुछ ही हफ्तों बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था। 2011 में एक आरोपी को जमानत मिली, जबकि बाकी छह को 2017 में जमानत दी गई।

प्रज्ञा सिंह ठाकुर: मुख्य आरोपी
प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जो मध्य प्रदेश की रहने वाली हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ी थीं, इस मामले में मुख्य आरोपी थीं। एटीएस ने दावा किया था कि धमाके में इस्तेमाल मोटरसाइकिल उनकी थी और उन्होंने साजिश की बैठकों में हिस्सा लिया था। हालांकि, प्रज्ञा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें गलत फंसाया गया और एटीएस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया।

2016 में एनआईए ने इस केस को अपने हाथ में लिया और चार्जशीट में कहा कि प्रज्ञा के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। एनआईए ने ये भी दावा किया कि मोटरसाइकिल प्रज्ञा के कब्जे में नहीं थी। कोर्ट ने अंततः माना कि मोटरसाइकिल का चेसिस नंबर और अन्य सबूत पुख्ता नहीं थे, जिसके आधार पर उन्हें बरी कर दिया गया।

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित
सेवारत सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित पर अभिनव भारत संगठन के जरिए धमाके की साजिश रचने का आरोप था। एटीएस ने दावा किया कि उन्होंने बैठकों में हिस्सा लिया और विस्फोटक सामग्री उपलब्ध कराई। पुरोहित ने अपने बचाव में कहा कि वे एक सैन्य खुफिया अधिकारी के रूप में चरमपंथ पर जानकारी इकट्ठा कर रहे थे। एनआईए ने भी उनके खिलाफ विस्फोटक आपूर्ति के सबूतों को कमजोर माना। कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है।

अन्य आरोपी

रमेश उपाध्याय: रिटायर्ड मेजर पर अभिनव भारत संगठन में सक्रिय भूमिका का आरोप था। कोर्ट ने कॉल इंटरसेप्ट के सबूतों को अवैध माना।
अजय राहिरकर: पुणे के व्यवसायी पर संगठन के लिए धन इकट्ठा करने का आरोप था, लेकिन कोर्ट ने इसे धमाके से जोड़ने के सबूत नहीं पाए।
सुधाकर चतुर्वेदी: उनके घर से कथित तौर पर आरडीएक्स मिला, लेकिन एनआईए ने सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
सुधाकर धर द्विवेदी: लैपटॉप में मिली रिकॉर्डिंग को सबूत माना गया, लेकिन कोर्ट ने इसे अविश्वसनीय माना।
समीर कुलकर्णी: सामाजिक कार्यकर्ता ने फंसाने का आरोप लगाया। कोर्ट ने उनके खिलाफ सबूतों को अपर्याप्त पाया।

कोर्ट का फैसला
विशेष कोर्ट ने माना कि जांच एजेंसियां बाइक की मालिकाना और विस्फोटक सामग्री से संबंधित सबूत पेश करने में नाकाम रहीं। गवाहों के बयान बदलने और मकोका धारा हटने के बाद सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।

पीड़ितों के लिए मुआवजा
कोर्ट ने धमाके में मारे गए लोगों के परिवारों को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया, जो पीड़ितों के लिए राहत का कदम है।

मालेगांव धमाके का ये मामला लंबे समय तक चर्चा में रहा। प्रज्ञा सिंह ठाकुर की राजनीतिक सक्रियता और विवादों ने इसे और सुर्खियों में रखा। कोर्ट के इस फैसले ने एक पुराने और जटिल मामले को अंतिम रूप दे दिया है, लेकिन इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव अभी भी चर्चा का विषय बने रहेंगे।

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