महाराष्ट्र के धुले के शिरपुर तालुका में बिजली बोर्ड की लापरवाही ने तो हद पार कर दी! एक 70 वर्षीय वृद्धा, जो अपनी छोटी सी झोपड़ी में सिर्फ एक बल्ब और एक टेबल पंखा चलाती है, उसे बिजली बोर्ड ने ₹82,100 का बिजली बिल थमा दिया। मानो ये सदमा काफी नहीं था, जुलाई के बिल में ₹1,160 और जोड़कर कुल राशि ₹83,260 कर दी गई! ये कहानी न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि बिजली बोर्ड की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है। आइए, इस अजूबे की पूरी कहानी जानते हैं।
झोपड़ी में रहता है गरीब परिवार
शिरपुर तालुका के लौकी शिवर में जितेंद्र हिरालाल भिल अपने परिवार के साथ एक साधारण झोपड़ी में रहते हैं। उनके परिवार में उनकी 70 साल की मां इंदुबाई हिरालाल भिल, पत्नी और दो बच्चे शामिल हैं। जितेंद्र मजदूरी करते हैं और दिनभर की मेहनत के बाद मुश्किल से ₹200 कमा पाते हैं। उनके घर में बिजली का कनेक्शन उनकी मां के नाम पर है, और बिजली का इस्तेमाल? बस एक बल्ब और एक टेबल पंखा! न टीवी, न फ्रिज, न ही कोई और बिजली का उपकरण। फिर भी, इस परिवार को ऐसा बिल मिला, जो किसी अमीर के बंगले का भी नहीं होगा!
जून में आया पहला झटका: ₹82,100 का बिल
जून का महीना था, जब जितेंद्र के घर बिजली का बिल आया। राशि देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई—₹82,100! जितेंद्र ने सोचा, शायद कोई गलती हुई होगी। आखिर, एक बल्ब और पंखे से इतना बिल कैसे बन सकता है? वे तुरंत बिजली बोर्ड के दफ्तर पहुंचे। वहां उन्होंने कर्मचारियों को पूरी बात बताई। घर में सिर्फ एक बल्ब और पंखा है, फिर ये बिल कैसे? लेकिन उनकी सुनवाई तो दूर, एक कर्मचारी ने उनका बिल छीन लिया और रूखे अंदाज में कहा, “आवेदन दो और जाओ!” जितेंद्र ने लिखित शिकायत दी और उम्मीद लिए घर लौट आए कि अब सब ठीक हो जाएगा।
जुलाई में और बढ़ा बिल: ₹83,260
लेकिन बिजली बोर्ड ने तो जैसे जितेंद्र के परिवार को और परेशान करने की ठान ली थी। दो दिन पहले, जुलाई का बिल आया। इस बार बिल में जुलाई की राशि ₹1,160 थी, लेकिन उसमें जून का बकाया ₹82,100 भी जोड़ दिया गया। कुल मिलाकर, बिल अब ₹83,260 हो गया! ये देखकर जितेंद्र का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वे फिर से बिजली बोर्ड के दफ्तर गए और पूछा कि उनकी पुरानी शिकायत का क्या हुआ। जवाब मिला – आवेदन गायब है! कर्मचारियों ने पुराने आवेदन की खोजबीन की, लेकिन वो कहीं नहीं मिला। मजबूरन, जितेंद्र को एक और शिकायत दर्ज करनी पड़ी। अब परिवार इंसाफ की आस में बैठा है, लेकिन बिजली बोर्ड की लापरवाही देखकर उम्मीद कम ही दिखती है।
क्या है बिजली बोर्ड का नया रैकेट?
ये मामला सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि बिजली बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। आखिर एक बल्ब और पंखा, जो दिन में भी शायद कुछ घंटे ही चलता हो, उससे ₹82,000 का बिल कैसे बन सकता है? अगर मान लें कि दोनों 24 घंटे, 30 दिन तक चले, तब भी इतना बिल बनना असंभव है। तो क्या बिजली बोर्ड के कुछ अधिकारी गरीबों से पैसे वसूलने का नया खेल खेल रहे हैं? ये सवाल अब तालुका में हर किसी की जुबान पर है।
लापरवाही का लंबा इतिहास
ये पहला मौका नहीं है जब बिजली बोर्ड की लापरवाही सामने आई हो। तालुका में पहले भी कई बार गलत बिलिंग की शिकायतें दर्ज हुई हैं। लेकिन हर बार बोर्ड की ओर से सिर्फ आश्वासन मिलता है, न कि समाधान। जितेंद्र जैसे गरीब परिवार, जो दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं, उनके लिए ₹83,260 का बिल किसी बुरे सपने से कम नहीं।
क्या मिलेगा इंसाफ?
जितेंद्र और उनका परिवार अब बिजली बोर्ड से इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बोर्ड इस बार उनकी बात सुनेगा? या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा? इस घटना ने एक बार फिर बिजली बोर्ड के लापरवाह रवैये को उजागर किया है। अब देखना यह है कि क्या इंदुबाई और उनके परिवार को इस अन्याय से राहत मिलेगी, या बिजली बोर्ड का यह “चमत्कार” यूं ही चलता रहेगा। आप क्या सोचते हैं? क्या ये सिर्फ गलती है, या गरीबों को परेशान करने की साजिश?
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