मुंबई

शिवसेना (UBT) की दशहरा रैली में क्यों नहीं गए राज ठाकरे? जानें बड़ी वजह

राज ठाकरे
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मुंबई में बीएमसी चुनावों से पहले हुई दशहरा रैली सिर्फ एक परंपरा नहीं बल्कि शिवसेना की ताकत दिखाने का बड़ा मंच मानी जाती है। इस बार सबकी निगाहें खास तौर पर इस बात पर थीं कि क्या उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ दिखेंगे? क्या शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के बीच गठबंधन का ऐलान होगा? लेकिन हकीकत कुछ और रही।

उद्धव अकेले, राज अपने घर पर
शिवाजी पार्क में शिवसैनिकों की भीड़ के बीच उद्धव ठाकरे बारिश का सामना करते हुए भाषण देते नज़र आए। उनके संबोधन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, राज ठाकरे अपने निवास शिवतीर्थ पर ही विजयादशमी मनाते दिखे। उन्होंने पत्नी के साथ पारंपरिक शस्त्र पूजा की और सार्वजनिक मंच से दूरी बनाए रखी।

क्यों नहीं आए राज ठाकरे?
राज ठाकरे की गैरमौजूदगी को लेकर राजनीतिक हलकों में तरह-तरह की चर्चाएं रहीं। सूत्रों के मुताबिक, उन्हें उद्धव गुट की ओर से कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं मिला था। ऐसे में बतौर एक अलग पार्टी के प्रमुख, उनका वहां जाना मुश्किल माना गया।

गौर करने वाली बात ये है कि साल 2005 में दोनों भाइयों के अलग होने के बाद, इस साल ही वर्ली में एक गैर-राजनीतिक मंच पर उनकी मुलाकात हुई थी। ऐसे में दशहरा रैली में उनकी मौजूदगी को लेकर जो उम्मीदें थीं, वे अधूरी रह गईं।

गौरतलब है कि 1966 से लगातार शिवाजी पार्क में दशहरा रैली शिवसेना की पहचान और उसकी जड़ों का प्रतीक रही है। बाल ठाकरे के दौर से चली आ रही इस परंपरा को शिवसैनिक अपनी ताकत और अस्तित्व का सवाल मानते हैं। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि अगर इस मंच पर दोनों भाई साथ आते तो आगामी चुनावों के लिए ये बड़ा संदेश होता।

गठबंधन पर सिर्फ ‘पतंगबाजी’
राजनीतिक विश्लेषक दयानंद नेने का कहना है कि उद्धव और राज ठाकरे के संभावित गठबंधन को लेकर जो बातें हो रही हैं, वे फिलहाल मीडिया की अटकलें भर हैं।
उनका तर्क है कि दोनों दलों का प्रभाव मुंबई के कुछ चुनिंदा इलाकों, माहिम से वर्ली और भांडुप तक सीमित है। ऐसे में सीट बंटवारे जैसे पेचीदे सवाल सुलझे बिना गठबंधन संभव नहीं।

जानकारी हो कि उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) के पास फिलहाल 20 विधायक हैं, जिनमें अधिकतर मुंबई से चुने गए हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि 31 जनवरी 2026 तक चुनाव होना ही है। ऐसे में अब देखना ये होगा कि उद्धव और राज ठाकरे कब तक चुप्पी साधे रहते हैं और क्या सचमुच दोनों गुट एक साथ आते हैं, या फिर ये सिर्फ राजनीतिक ‘पतंगबाजी’ ही साबित होगी।

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