भारतीय अध्यात्म जगत में कुछ संत ऐसे होते हैं, जिनकी साधना और करुणा की कहानियां सदियों तक याद रखी जाती हैं। नीम करोली बाबा भी ऐसे ही संत थे, जिनकी साधना, चमत्कार और सरल जीवनशैली आज भी लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
1958 में नीम करोली बाबा ने अपने घर को छोड़कर उत्तर भारत में साधु के रूप में जीवन बिताना शुरू किया था। इस दौरान उन्हें कई अलग-अलग नामों से जाना गया, जैसे लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा। जब उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की, तो वहां के लोग उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारने लगे।
कैसे नाम पड़ा नीम करोली बाबा?
नीम करोली बाबा की लोकप्रियता का एक चमत्कारी किस्सा काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि एक बार बाबा ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे में बिना टिकट यात्रा कर रहे थे। टिकट चेकर ने उन्हें देखा और अगले स्टेशन ‘नीब करोली’ पर उतार दिया।
स्टेशन पर उतरकर बाबा पास ही अपना चिमटा जमीन में गाड़कर बैठ गए। गार्ड ने ट्रेन को चलाने के लिए हरी झंडी दिखाई, लेकिन ट्रेन वहां से टस से मस नहीं हुई। कई प्रयासों के बाद भी ट्रेन नहीं चली, तब गार्ड ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें सम्मान के साथ वापस ट्रेन में बैठाया। जैसे ही बाबा वापस बैठे, ट्रेन तुरंत चल पड़ी। इसी घटना के बाद से उन्हें नीम करोली बाबा के नाम से जाना जाने लगा।
नीम करोली बाबा अपने जीवन में साधना, भक्ति और सेवा के लिए प्रसिद्ध थे। उनका जीवन ये संदेश देता है कि सच्ची शक्ति और सम्मान सिर्फ तपस्या और प्रेम से ही प्राप्त होता है, न कि भौतिक साधनों से।
आज भी नीम करोली बाबा की कहानियां, उनके चमत्कार और उनके सरल जीवन की बातें लाखों भक्तों के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का काम करती हैं। उनके अनुयायी उन्हें न केवल एक संत के रूप में बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में पूजते हैं।
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