महाराष्ट्र

OMG: मराठा आरक्षण के नाम पर ‘प्लांट’ की गई आत्महत्याएं, फर्जी सुसाइड नोट्स से हिली महाराष्ट्र पुलिस

मराठा आरक्षण

महाराष्ट्र के लातूर से एक ऐसा खुलासा सामने आया है जिसने पूरे राज्य में हलचल मचा दी है। मराठा आरक्षण आंदोलन के समर्थन में जिन आत्महत्याओं को लेकर राज्य भर में भावनाएं भड़क उठी थीं, अब पुलिस जांच में सामने आया है कि उनमें से कई आत्महत्याएं “प्लांट” की गई थीं। यानी सुसाइड नोट्स पीड़ितों ने नहीं, बल्कि उनके परिजनों ने बाद में रखे थे।

पुलिस ने इन मामलों को लेकर फर्जी दस्तावेज़ और झूठी जानकारी देने के आरोप में तीन अलग-अलग केस दर्ज किए हैं। लातूर पुलिस की इस कार्रवाई ने अब पूरे महाराष्ट्र में राजनीतिक और सामाजिक बहस छेड़ दी है।

सुसाइड नोट्स निकले फर्जी
लातूर के पुलिस अधीक्षक अमोल तांबे ने बताया कि तीन अलग-अलग तालुकों में हुई आत्महत्याओं की जांच में चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। जिन चिट्ठियों को आंदोलन के समर्थन में लिखा बताया गया था, वे आत्महत्या के बाद परिजनों द्वारा रखी गई थीं। और उसका
मकसद था, आत्महत्याओं को मराठा आरक्षण आंदोलन से जोड़कर समाज की सहानुभूति और सरकारी आर्थिक मदद प्राप्त करना।

पहला मामला: अहमदपुर तालुका (शिंदगी गांव)
26 अगस्त को बलीराम श्रीपती मुले नामक व्यक्ति ने जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की, हालांकि वो बच गया। जांच में सामने आया कि उसके चचेरे भाई ने उसकी जेब में “मराठा आरक्षण के लिए आत्महत्या” लिखी चिट्ठी बाद में रखी थी।

दूसरा मामला: निलंगा तालुका (दादगी गांव)
शिवाजी मेले की मौत बिजली के झटके से हुई थी। लेकिन उनकी जेब से “महादेव कोली समाज के आरक्षण” के लिए लिखा सुसाइड नोट मिला। पुलिस जांच में स्पष्ट हुआ कि ये चिट्ठी परिजनों ने खुद तैयार कर बाद में जेब में रखी थी।

तीसरा मामला: चाकूर तालुका
अनिल बलीराम राठोड की मौत के बाद उनकी जेब से “बंजारा समाज के आरक्षण” के समर्थन में लिखा सुसाइड नोट मिला। लेकिन जांच में ये नोट फर्जी निकला, जिसे उनके ही तीन रिश्तेदारों ने मिलकर तैयार किया था।

तीनों मामलों में पुलिस ने धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने और झूठी जानकारी देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है। पुलिस अधीक्षक अमोल तांबे ने कहा, “हमने पाया कि आत्महत्याओं को जानबूझकर राजनीतिक और सामाजिक रंग देने की कोशिश की गई थी। सभी मामलों की विस्तृत जांच जारी है।”

लातूर पुलिस की ये कार्रवाई अब राज्यभर में चर्चा का केंद्र बन गई है। आरक्षण आंदोलन के नाम पर “सहानुभूति जुटाने के लिए फर्जी कहानियां गढ़ना” महाराष्ट्र में अब तक का पहला मामला माना जा रहा है।

राजनीतिक हलकों में इस खुलासे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे “सच्चाई सामने लाने वाला कदम” बता रहे हैं, तो कुछ इसे “आंदोलन को कमजोर करने की साजिश” मान रहे हैं।

ये पूरा मामला एक बड़ा सवाल छोड़ गया है, क्या आरक्षण की मांग के नाम पर भावनात्मक खेल खेला जा रहा है? और क्या समाज के दर्द को राजनीतिक हथियार बनाया जा रहा है? लातूर पुलिस की जांच ने फिलहाल इस सवाल को और गहरा कर दिया है।

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