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छठ पूजा 2025: सूर्य भक्ति, संतान सुख और लोक आस्था का महापर्व; जानिए क्यों रखा जाता है ये कठिन व्रत

छठ पूजा
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छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का सबसे पवित्र और कठोर व्रत कहा जाता है, भारत के कई हिस्सों, खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। ये पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की आराधना के लिए समर्पित है। दिवाली के ठीक बाद मनाया जाने वाला ये चार दिवसीय महापर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि ये प्रकृति, अनुशासन और परिवारिक सुख-शांति का प्रतीक भी है।

छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि सूर्य जीवन, ऊर्जा और आरोग्य का दाता माना गया है। वहीं, छठी मैया को बच्चों की रक्षा करने वाली देवी और सृष्टि की रचना करने वाली शक्ति का छठा अंश कहा गया है। पौराणिक मान्यता है कि वे सूर्य देव की बहन हैं, इसलिए इस पर्व पर सूर्य और छठी मैया की एक साथ उपासना की जाती है।

संतान सुख और परिवार की खुशहाली की कामना
छठ पूजा का सबसे प्रमुख उद्देश्य होता है संतान सुख की प्राप्ति और परिवार की कुशलता। महिलाएं ये कठिन 36 घंटे का निर्जला व्रत अपने बच्चों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की समृद्धि के लिए रखती हैं। जिन दंपत्तियों को संतान सुख नहीं मिला होता, वे भी छठी मैया से आशीर्वाद पाने के लिए ये व्रत करते हैं। लोक मान्यता है कि छठी मैया की कृपा से उनकी गोद भर जाती है।

आत्मसंयम, शुद्धता और वैज्ञानिक दृष्टि से लाभकारी
छठ व्रत को आत्म-नियंत्रण और मानसिक शांति का पर्व भी कहा जाता है।
इस दौरान व्रती महिलाएं 36 घंटे तक बिना जल और अन्न के रहती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर को आवश्यक विटामिन D और ऊर्जा मिलती है, जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
सूर्य की किरणें शरीर को शुद्ध करती हैं और मन को स्थिरता प्रदान करती हैं।

 चार दिवसीय छठ महापर्व 2025 का पूरा कार्यक्रम

  1. पहला दिन – नहाय-खाय (25 अक्टूबर)
    नदी में स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। ये दिन शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक होता है।

  2. दूसरा दिन – खरना (26 अक्टूबर)
    दिनभर उपवास के बाद शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसी के साथ 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।

  3. तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर)
    इस दिन व्रती और श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। घाटों पर पारंपरिक लोकगीतों और पूजा के स्वर गूंजते हैं।

  4. चौथा दिन – उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर)
    अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। इसी के साथ भक्त अपनी तपस्या पूर्ण करते हैं।

लोक संस्कृति और प्रकृति का उत्सव
छठ पूजा केवल धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि प्रकृति और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम है।
घाटों को दीयों, केले के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है। लोग ठेकुआ, चावल के लड्डू और मौसमी फलों का प्रसाद बनाते हैं, जो शुद्धता और सादगी का प्रतीक है। इस पर्व में गाए जाने वाले भक्ति गीत वातावरण को आध्यात्मिक बना देते हैं।

छठ पूजा केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति है। ये महापर्व हमें ये सिखाता है कि त्याग और संयम से ही जीवन में संतुलन, समृद्धि और सुख प्राप्त किया जा सकता है। सूर्य की आराधना और छठी मैया का आशीर्वाद ही इस पर्व का सच्चा सार है। सूर्य भक्ति से संतान सुख तक, छठ पूजा हर आस्था का प्रकाश है।

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