मध्य प्रदेश में हाथ से बनी “कार्बाइड गन” के इस्तेमाल के चलते लगभग 300 लोग अस्पताल में भर्ती हुए और करीब 30 लोगों की आंखें खो जाने के कगार पर हैं। हादसे में छोटे बच्चों की भी संख्या चिंता बढ़ाने वाली है त्योहार का उल्लास यहां मातम में बदल गया।
क्या है ये कार्बाइड गन?
कार्बाइड गन किसी फैक्ट्री का बना उपकरण नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर प्लास्टिक या लोहे के पाइप, कैल्शियम कार्बाइड और पानी के सरल रसायन-प्रतिक्रिया के ज़रिये तैयार किया जाने वाला देसी जुगाड़ होता है। पानी पड़ते ही कैल्शियम कार्बाइड से एसिटिलीन गैस बनती है और एक चिंगारी पर तेज विस्फोट हो जाता है जो न सिर्फ जोरदार ध्वनि करता है, बल्कि उड़ते प्लास्टिक के टुकड़ों और तेज ताप से चेहरे और आंखें को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देता है।
हादसा कैसे होता है?
आम तौर पर बच्चे या प्रयोग करने वाले लोग गन के मुंह से ही झांक लेते हैं जब प्रतिक्रिया धीमी लगती है तभी अंदर गैस बनकर अचानक तेज धमाका कर देती है। विस्फोट से निकले प्लास्टिक-शार्प और गरमा-गरम केमिकल सीधे आंखों व चेहरे पर लगते हैं; कॉर्निया और कंजंक्टिवा पर जलीय व रसायनिक चोटें आती हैं, जिससे स्थायी तौर पर आंखों की रोशनी तक खो सकती है। यही वजह है कि घायल हुए कई मामलों में डॉक्टरों ने देखने की क्षमता गंवाने का अलार्म दिया है।
प्रतिबंध के बावजूद बाजार कैसे भर गया गन?
हालांकि कई राज्यों और मध्य प्रदेश सरकार ने पहले ही इन पर पाबंदी लगाई थी, लेकिन ये गन सोशल मीडिया पर वायरल तरीकों और सस्ते दाम (150–200 रुपये) के कारण तेजी से फैल गई। स्थानीय कारीगर और ठेकेदार छोटे-छोटे बैचों में बनाकर बेचते रहे, जिससे रोकना मुश्किल हुआ। कहीं-कहीं ई-कॉमर्स पर भी मिलते होने की सूचनाएं हैं, जिससे खरीद और उपयोग और भी बढ़ा।
घटना के प्रकाश में आते ही राज्य प्रशासन सक्रिय हुआ: कई जगहों पर छापे मारकर कार्बाइड गन जब्त की जा रही हैं, कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया और एफआईआर दर्ज की जा रही है। पुलिस और प्रशासन ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रतिबंध के बावजूद ये उपकरण कैसे इतनी व्यापकता से बाजार में पहुंचे और किस रास्ते से बिके।
बचाव क्या करें?
यदि आंख पर केमिकल लगा हो तो तुरंत किसी नज़दीकी अस्पताल की आपात विभाग में जाएं; देरी करना irreversible नुकसान बढ़ा सकता है।
आंख पर पानी लगातार फ्लश करना (यदि रसायन तुरंत छुआ हो) तब तक जारी रखें जब तक डॉक्टर नहीं पहुंचते, लेकिन केवल तभी जब दिखता है कि पानी से और बढ़ती चोट का खतरा नहीं।
किसी भी तरह का घरेलू इलाज (जैसे तेल, क्रीम) आंख में न डालें। इससे रोग और बुरा हो सकता है।
क्यों खतरनाक है ये समस्या?
ये सिर्फ एक स्थानीय दुर्घटना नहीं; ये दर्शाता है कि खतरनाक आइटमों के छोटे-ठहरे उत्पादन और सोशल मीडिया की त्वरित प्रेरणा कैसे बड़े पैमाने पर मानव जीवन को नुकसान पहुंचा सकती है। त्योहारों पर सुरक्षा नियमों का पालन, बाजारों पर कड़ी निगरानी और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर अवैध वस्तुओं की बिक्री पर रोक जरूरी है।
दिवाली की रौनक में आत्म-निर्मित और प्रतिबंधित चीज़ों का प्रयोग करने से पहले सोचना हर परिवार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। ख़ुशियों के इस पर्व को किसी के लिए कष्ट और जीवन-पर्यन्त अंधेपन का कारण बनने से रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन, प्लेटफार्म और परिवार, तीनों की भूमिका अनिवार्य है।
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