मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बच्चों के लापता होने के बढ़ते मामलों ने शहर में चिंता की लहर पैदा कर दी है। बीते एक महीने में 82 बच्चों के लापता होने की खबर सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर तरह-तरह के अलर्ट और संदेश वायरल हो रहे हैं। व्हाट्सएप ग्रुप्स से लेकर अन्य प्लेटफॉर्म्स तक लोग बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठा रहे हैं। यकीनन ये मामला हर पैरेंट्स के लिए रेड अलर्ट है। आज के समय में आए दिन बच्चों के साथ बढ़ते क्राइम और स्ट्रेस जैसे मामले ये चेतावनी दे रहे हैं, कि अब भी नहीं संभलोगे तो सब हाथ से निकल जाएगा।
एक महीने में 82 बच्चे लापता
एक रिपोर्ट की मानें तो, 1 नवंबर से 6 दिसंबर के बीच मुंबई में कुल 82 बच्चे लापता हुए, जिनमें 60 लड़कियां शामिल हैं। इनमें से 41 लड़कियां और 13 लड़के लगभग 18 वर्ष की आयु के बताए जा रहे हैं। ये आंकड़े सामने आते ही शहर में हड़कंप मच गया और अभिभावकों की चिंता और बढ़ गई है।
किन इलाकों से आए सबसे ज्यादा मामले
लापता बच्चों के अधिकतर मामले मुंबई के कुरार, वाकोला, पवई, मालवणी और साकीनाका जैसे इलाकों से सामने आए हैं। पुलिस का कहना है कि हर मामले की अलग-अलग जांच की जा रही है और गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए विशेष टीमें काम कर रही हैं।
नवी मुंबई का आंकड़ा भी चिंताजनक
नवी मुंबई की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। जनवरी से नवंबर के बीच वहां 499 बच्चों के लापता होने की शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें से 458 बच्चों को सुरक्षित बरामद कर लिया गया है, जबकि 41 बच्चे अब भी लापता हैं। पुलिस लगातार उनकी तलाश में जुटी हुई है।
भावनात्मक कारण बने घर छोड़ने की बड़ी वजह
जिन 458 बच्चों को वापस लाया गया, उनकी काउंसलिंग के दौरान चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पुलिस के अनुसार, अधिकतर बच्चों ने किसी न किसी भावनात्मक कारण से घर छोड़ा था।
128 बच्चे प्रेम संबंधों में असफलता के कारण घर से चले गए।
114 बच्चों ने माता-पिता की डांट या पारिवारिक तनाव के चलते घर छोड़ने का फैसला किया।
इन आंकड़ों से साफ है कि बच्चों की मानसिक स्थिति और पारिवारिक संवाद की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।
पुलिस का दावा: कई बच्चे मिल चुके
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि हाल ही में लापता हुए 82 बच्चों में से कई को सुरक्षित खोज लिया गया है और बाकी बच्चों की तलाश तेज़ी से जारी है। रेलवे स्टेशन, बस टर्मिनल, धार्मिक स्थल और आसपास के जिलों में भी खोज अभियान चलाया जा रहा है।
समाज और अभिभावकों की भूमिका अहम
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के साथ खुला संवाद, उनकी भावनाओं को समझना और समय पर काउंसलिंग जैसी पहलें ऐसे मामलों को कम कर सकती हैं। वहीं, किसी बच्चे के लापता होने पर तुरंत पुलिस को सूचना देना सबसे अहम कदम बताया गया है।
मुंबई जैसे महानगर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। ऐसे में पुलिस, समाज और परिवार – तीनों की साझा जिम्मेदारी है कि बच्चों को सुरक्षित माहौल और भावनात्मक सहारा दिया जाए, ताकि वे घर छोड़ने जैसा कठोर कदम उठाने पर मजबूर न हों।
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