चुनावी रण में अब सड़कों की जगह सोशल मीडिया ने ले ली है, जहाँ क्रिएटर्स और विशेषज्ञ अपनी अनूठी सेवाओं से चुनाव प्रचार को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।
एक समय था जब चुनावी प्रचार मुख्यतः सड़कों और दीवारों पर नजर आता था, लेकिन तकनीकी प्रगति और चुनाव आयोग की सख्ती के चलते अब यह दृश्य बदल चुका है।
आज के डिजिटल युग में, चुनाव प्रचार के लिए सोशल मीडिया का महत्व बढ़ गया है। फेसबुक, ट्विटर, और अन्य प्लेटफॉर्म चुनावी प्रचार के नए अखाड़े बन गए हैं। इसके चलते, क्रिएटर्स और विशेषज्ञों की मांग और उनकी कमाई में भी इजाफा हुआ है।
इस बदलाव का मुख्य कारण युवा मतदाताओं की बढ़ती संख्या और उनकी सोशल मीडिया तक पहुंच है। इससे चुनावी प्रचार की रणनीतियां भी बदल रही हैं।
भारत में युवाओं की आबादी काफी बड़ी है और ये युवा अब चुनावों में पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। सोशल मीडिया ने इस बदलाव में एक अहम भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए युवा ना सिर्फ राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, बल्कि राजनेताओं और पार्टियों को भी सीधे सवाल कर पाते हैं।
लगभग 30 करोड़ से अधिक युवा मतदाता हैं भारत में, जिनकी आवाज़ को नज़रअंदाज करना अब किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है। 2019 के चुनाव में इसका असर देखने को मिला था, जब युवाओं ने बड़ी संख्या में वोटिंग की। युवा, सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से खबरें पढ़ते रहते हैं और अलग-अलग मुद्दों पर गंभीरता से सोच-विचार भी करते हैं।
चुनावी सीजन में कैमरामैन, वीडियो एडिटर, और एसईओ मैनेजरों की दिन-प्रतिदिन की कमाई में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
कुल मिलाकर, सोशल मीडिया राजनीति का एक अहम हिस्सा बन चुका है। भारत का युवा मतदाता इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से ना सिर्फ खबरें लेता है, बल्कि अपनी आवाज़ भी उठाता है।