अघोरपंथ, भगवान शिव की साधना का एक अद्भुत और रहस्यमयी रूप है अघोरी, जो हमेशा से लोगों के बीच जिज्ञासा का विषय रहा है। महाकुंभ जैसे अवसर पर अघोरियों की चर्चा स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। उनकी दुनिया रहस्यों से भरी होती है, और उनकी साधना की विधियां समाज के परंपरागत मानकों से अलग होती हैं। आइए जानते हैं अघोरियों के इतिहास, उनकी साधना और उनकी विचित्र परंपराओं के बारे में।
“अघोरी” और “अघोर साधना के रहस्य” (Aghori and the Secrets of Aghor Sadhana)
महाकुंभ में अघोरी साधुओं की उपस्थिति लोगों के लिए हमेशा एक बड़ा आकर्षण होती है। “अघोरी” (Aghori) और “अघोर साधना के रहस्य” (Secrets of Aghor Sadhana) जैसे शब्द महाकुंभ के संदर्भ में सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं। ये साधु अपने जीवन को भगवान शिव की आराधना में समर्पित करते हैं और दुनिया की भौतिक सीमाओं से परे अपनी साधना करते हैं।
भगवान शिव के उपासक
अघोरपंथ के अनुयायी भगवान शिव को अपना ईष्ट देव मानते हैं। इस पंथ की स्थापना स्वयं भगवान शिव द्वारा की गई मानी जाती है। अघोरपंथ के प्रमुख संत बाबा कीनाराम को अघोरी समुदाय में अत्यंत सम्मान प्राप्त है। माना जाता है कि बाबा कीनाराम का जन्म 1601 में हुआ था, और उन्होंने अपने पूरे जीवन में अघोर साधना को आगे बढ़ाया।
अघोरपंथ का गहरा संबंध भगवान शिव के एक अन्य रूप भगवान दत्तात्रेय से भी है। शिव के इस रहस्यमयी पंथ में शिव, शव (मुर्दा), और श्मशान का विशेष महत्व है।
श्मशान में साधना का रहस्य
श्मशान, अघोरियों की साधना का मुख्य केंद्र होता है। उनका मानना है कि जीवन और मृत्यु का स्रोत श्मशान है। अघोरियों की साधना तीन प्रकार की होती है—श्मशान साधना, शिव साधना, और शव साधना।
कहा जाता है कि शव साधना के दौरान अघोरी मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा अर्पित करते हैं। वे शव के ऊपर पैर रखकर ध्यान करते हैं, जिसे शिव साधना भी कहा जाता है। इसके अलावा, श्मशान साधना परिवारजनों को भी जोड़ने वाली विधि है, जहां मृत्यु के रहस्यों को समझने का प्रयास किया जाता है।
विचित्र और रहस्यमयी जीवनशैली
अघोरी साधुओं का जीवन साधारण नहीं होता। उनका व्यवहार आम लोगों से पूरी तरह अलग और रहस्यमयी होता है। वे श्मशान में वास करते हैं, चिता की राख शरीर पर लगाते हैं, और मानव खोपड़ी को बर्तन के रूप में उपयोग करते हैं।
अघोरियों की एक खास मान्यता है कि साधना के लिए घृणा का त्याग करना आवश्यक है। वे समाज द्वारा घृणित मानी जाने वाली वस्तुओं को अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, श्मशान, शव, और कफन जैसी चीजें, जो आमतौर पर भय और घृणा का कारण बनती हैं, अघोरियों के लिए साधना के माध्यम हैं।
महाकुंभ और अघोरी
महाकुंभ जैसे आयोजन में अघोरियों का आना एक प्रमुख आकर्षण होता है। यह वही समय है, जब आम लोग इन साधुओं को देख पाते हैं। महाकुंभ के बाद, अघोरी फिर से श्मशान में लौट जाते हैं और अपनी साधना जारी रखते हैं।
अघोरियों की साधना और उनकी परंपराएं हमारी दुनिया के परे एक अलग और अनोखी वास्तविकता को दर्शाती हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि घृणा और डर से ऊपर उठकर जीवन और मृत्यु के गूढ़ रहस्यों को समझने का प्रयास करना चाहिए। महाकुंभ 2025 में, अघोरियों की उपस्थिति एक बार फिर हमें उनकी अद्वितीय और रहस्यमयी परंपराओं से रूबरू कराएगी।
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