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Ahmadiyya Muslims: अहमदिया मुसलमानों को क्यों नहीं मिलती हज की इजाजत, गैर-मुस्लिम माना जाता है

Ahmadiyya Muslims: अहमदिया मुसलमानों को क्यों नहीं मिलती हज की इजाजत, गैर-मुस्लिम माना जाता है

पाकिस्तान में एक समुदाय ऐसा है, जिसे न तो मुसलमान माना जाता है और न ही उन्हें इस्लाम के पवित्र तीर्थ हज करने की इजाजत है। यह समुदाय है अहमदिया मुसलमान (Ahmadiyya Muslims), जिनके साथ दशकों से भेदभाव और अत्याचार की कहानियां जुड़ी हैं। 7 जून 2025 को जब पूरी दुनिया में बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा, तब भी यह समुदाय कुर्बानी देने से रोका जाएगा। यह मुद्दा नई पीढ़ी के लिए न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल उठाता है, बल्कि मानवाधिकारों पर भी गहरी चर्चा की मांग करता है। पाकिस्तान में अहमदिया (Ahmadiyya in Pakistan) का यह संघर्ष एक ऐसी कहानी है, जो इतिहास, विश्वास और सामाजिक अन्याय को एक साथ बयान करती है।

अहमदिया समुदाय की शुरुआत 1889 में भारत के पंजाब के कादियान गांव में हुई थी। इसके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद ने खुद को अल्लाह का चुना हुआ मसीहा और पैगंबर मोहम्मद का अनुयायी घोषित किया था। उनके अनुयायी मानते हैं कि मिर्जा गुलाम अहमद को धार्मिक युद्ध खत्म करने, शांति स्थापित करने और खूनखराबे की निंदा करने के लिए भेजा गया था। अहमदिया समुदाय इस्लाम के 73 संप्रदायों में से एक है और दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहा है। आज इसके 200 से ज्यादा देशों में दो करोड़ से अधिक अनुयायी हैं। उनकी कुरान का 65 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, और पूरी दुनिया में उनकी 16 हजार से ज्यादा मस्जिदें हैं। लेकिन पाकिस्तान में इस समुदाय को न केवल गैर-मुस्लिम माना जाता है, बल्कि उनके धार्मिक अधिकारों पर भी पाबंदी लगाई गई है।

अहमदिया और अन्य मुसलमानों के बीच सबसे बड़ा अंतर विश्वास का है। जहां अधिकांश मुसलमान पैगंबर मोहम्मद को अंतिम पैगंबर मानते हैं, वहीं अहमदिया मिर्जा गुलाम अहमद को पैगंबर मानते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान में उन्हें मुसलमानों के बजाय पाकिस्तान में अहमदिया (Ahmadiyya in Pakistan) को गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने संविधान में संशोधन कर अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया। इसके बाद जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में एक अध्यादेश पारित हुआ, जिसने उन्हें खुद को मुसलमान कहने तक पर रोक लगा दी। इस कानून के तहत, अगर कोई अहमदिया व्यक्ति खुद को मुसलमान कहता है, तो उसे तीन साल की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को हज करने की अनुमति नहीं है। हज इस्लाम का एक अनिवार्य स्तंभ है, लेकिन अहमदिया लोगों को सऊदी अरब में मक्का जाने से रोका जाता है। इसके लिए उन्हें एक फॉर्म पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसमें मिर्जा गुलाम अहमद को झूठा पैगंबर घोषित करना पड़ता है। यह उनके विश्वास के खिलाफ है, इसलिए वे ऐसा करने से इनकार कर देते हैं। नतीजतन, पाकिस्तानी पासपोर्ट वाले अहमदिया हज या उमरा नहीं कर सकते। हालांकि, जिन अहमदिया लोगों के पास दोहरी नागरिकता या गैर-पाकिस्तानी पासपोर्ट है, वे हज पर जा सकते हैं। लेकिन पाकिस्तान में रहने वाले 40 लाख अहमदिया लोगों के लिए यह एक बड़ा अन्याय है।

बकरीद जैसे त्योहारों पर भी अहमदिया समुदाय को कुर्बानी देने से रोका जाता है। पाकिस्तानी पुलिस उन्हें एक हलफनामे पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करती है, जिसमें वे वादा करते हैं कि वे पशुओं की कुर्बानी नहीं करेंगे। यह उनके धार्मिक अधिकारों का हनन है। इसके अलावा, अहमदिया समुदाय की मस्जिदों पर हमले, उनके घरों को निशाना बनाना और ईशनिंदा के झूठे मुकदमे दर्ज करना आम बात है। पिछले पांच सालों में चरमपंथियों ने 50 से ज्यादा अहमदिया लोगों की हत्या की है। उनकी मस्जिदों में नमाज पढ़ने पर भी पाबंदी है। मतदान के समय भी उन्हें गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की अलग सूची में रखा जाता है।

अहमदिया समुदाय की विचारधारा सुधार और शांति पर आधारित है। वे मानते हैं कि इस्लाम को बचाने के लिए सामाजिक और धार्मिक सुधार जरूरी हैं। लेकिन शिया और सुन्नी समुदाय उनके दावों को खारिज करते हैं। कट्टरपंथी तो उन्हें इस्लाम का विरोधी मानते हैं, और यहां तक कि उदारवादी मुसलमान भी अहमदिया समुदाय को स्वीकार नहीं करते। इस वजह से पाकिस्तान में उनकी मस्जिदों और लोगों पर हमले होते रहते हैं। कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि अहमदिया लोग पाकिस्तान के चिनाब नगर (रबवाह) में हज करते हैं, लेकिन यह सच नहीं है। रबवाह अहमदिया समुदाय का मुख्यालय है, लेकिन हज केवल मक्का में ही होता है।

यह कहानी केवल धार्मिक भेदभाव की नहीं, बल्कि एक समुदाय के अस्तित्व की लड़ाई की है। अहमदिया लोग अपने विश्वास के साथ जीना चाहते हैं, लेकिन पाकिस्तान में उन्हें हर कदम पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

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