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Electoral Bonds: बंद होने से पहले पार्टियों की झोली भर गया चुनावी बॉन्ड, किस दल पर कितने बरसे नोट

Electoral Bonds: बंद होने से पहले पार्टियों की झोली भर गया चुनावी बॉन्ड, किस दल पर कितने बरसे नोट

Electoral Bonds: भारत में राजनीतिक पार्टियों की आय और उनके खर्चों से जुड़ी हर जानकारी हमेशा चर्चा का विषय रहती है। हाल ही में आई एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) रिपोर्ट ने इस विषय पर नई रोशनी डाली है। इस रिपोर्ट में चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) के ज़रिए क्षेत्रीय दलों की आय के आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, जिसने यह स्पष्ट किया है कि यह प्रणाली राजनीतिक दलों के लिए आय का प्रमुख स्रोत बन चुकी है।

क्या हैं चुनावी बॉन्ड (What Are Electoral Bonds)?

चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) को भारत सरकार ने 2018 में पेश किया था। इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को पारदर्शी फंडिंग उपलब्ध कराना था। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इसके ज़रिए पारदर्शिता के बजाय गुमनामी बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में कई क्षेत्रीय दलों ने अपनी कुल आय का बड़ा हिस्सा चुनावी बॉन्ड से प्राप्त किया।

क्षेत्रीय दलों की आय (Income of Regional Parties)

एडीआर रिपोर्ट बताती है कि 2023-24 में क्षेत्रीय दलों की आय (Income of Regional Parties) में भारी इजाफा हुआ है।

  • तृणमूल कांग्रेस (TMC): चुनावी बॉन्ड से ₹612.4 करोड़ की आय हुई, जो उनकी कुल आय का 95% है।
  • भारत राष्ट्र समिति (BRS): ₹495.5 करोड़ प्राप्त किए, जो कुल आय का 72% है।
  • अन्य दल जैसे बीजेडी, टीडीपी, वाईएसआरसीपी, और डीएमके ने भी बॉन्ड के माध्यम से करोड़ों रुपये जुटाए।

आम आदमी पार्टी (AAP) का योगदान

चार राष्ट्रीय दलों में से केवल आम आदमी पार्टी (AAP) ने चुनावी बॉन्ड से प्राप्त आय का खुलासा किया। उनकी कुल आय का 44% चुनावी बॉन्ड के माध्यम से आया, जो पारदर्शिता के लिहाज से एक सकारात्मक कदम है।

टीएमसी और बीआरएस ने की रिकॉर्ड कमाई

टीएमसी और बीआरएस जैसे क्षेत्रीय दलों ने चुनावी बॉन्ड के जरिए रिकॉर्ड कमाई की है। टीएमसी ने अपनी आय में 88% की बढ़ोतरी दर्ज की, जबकि बीआरएस ने 6.3% की गिरावट के बावजूद ₹685.5 करोड़ की कुल आय घोषित की।

डीएमके की गिरावट और अन्य आंकड़े

जहां डीएमके की आय में 67% की गिरावट आई, वहीं बीजेडी और वाईएसआरसीपी जैसे दलों ने बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की। इन आंकड़ों से यह साफ है कि चुनावी बॉन्ड ने क्षेत्रीय दलों की आय पर गहरा प्रभाव डाला है।

चुनावी बॉन्ड प्रणाली: एक दोधारी तलवार

चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) ने फंडिंग को आसान और तेज़ बनाया है, लेकिन इससे जुड़ी गुमनामी पर सवाल उठते हैं। दानदाता की पहचान गुप्त रखने का प्रावधान पारदर्शिता पर असर डालता है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को इसे रद्द कर दिया, लेकिन तब तक यह प्रणाली राजनीतिक फंडिंग का एक बड़ा हिस्सा बन चुकी थी।

एडीआर रिपोर्ट क्षेत्रीय दलों की आय और चुनावी बॉन्ड के प्रभाव पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालती है। चुनावी बॉन्ड ने राजनीतिक दलों की फंडिंग को आसान बनाया है, लेकिन इसकी पारदर्शिता और प्रभावशीलता पर बहस जारी है। यह समय है कि सरकार और जनता मिलकर इस प्रणाली के फायदों और खामियों पर विचार करें।


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