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सुगम्यता के शिल्पकार: डॉ. संदीप संकट – वास्तुकला में समावेशी क्रांति के नायक

सुगम्यता के शिल्पकार: डॉ. संदीप संकट – वास्तुकला में समावेशी क्रांति के नायक

~हरीश तिवारी

भारत के जाने-माने वास्तुकार और शिक्षाविद, डॉ. संदीप संकट, वास्तुकला के क्षेत्र में समावेशी डिज़ाइन (Inclusive Design) के पर्याय बन चुके हैं। दो दशकों से अधिक के असाधारण पेशेवर अनुभव और कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सुसज्जित डॉ. संकट ने न केवल एक प्रैक्टिसिंग आर्किटेक्ट के रूप में अपनी धाक जमाई, बल्कि अकादमिक उत्कृष्टता के शिखर को छूते हुए गोल्ड मेडल भी जीता।

जब ऑन टीवी के हमारे वरिष्ठ संवाददाता हरीश ने डॉ. संकट से मुलाकात की, तो उन्होंने अपनी शिक्षा से लेकर देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ‘सुगम्य भारत अभियान’ को सफल बनाने की दिशा में किए गए अपने अभूतपूर्व शोध पर बात की। भोपाल स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (SPA) में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में, वह ‘यूनिवर्सल डिज़ाइन’ को वास्तुकला शिक्षा का केंद्र बनाकर भविष्य के वास्तुकारों को एक सामाजिक दायित्व के लिए तैयार कर रहे हैं। हाल ही में, उनके इस महत्वपूर्ण योगदान को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स (IIA) के प्रतिष्ठित ‘बेस्ट आर्किटेक्चर डिज़ाइन रिसर्च’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जो उन्हें वास्तव में सुगम्यता का शिल्पकार सिद्ध करता है।

सुगम्यता के शिल्पकार: डॉ. संदीप संकट – वास्तुकला में समावेशी क्रांति के नायक

प्रेरणा और कला: वास्तुकला की ओर पहला कदम
डॉ. संकट की वास्तुकला के प्रति प्रेरणा की जड़ें उनकी शुरुआती रुचि और व्यक्तिगत अनुभवों में निहित हैं। उनका रुझान हमेशा से कला और डिज़ाइन की ओर रहा। बचपन में ही ड्राइंग और स्केचिंग के प्रति उनका गहरा लगाव उन्हें एक रचनात्मक मार्ग की ओर ले गया। यही रचनात्मकता उन्हें वास्तुकला के विस्तृत फलक तक लाई, जहाँ कला, विज्ञान और सामाजिक जिम्मेदारी का अनूठा संगम होता है।

व्यक्तिगत अनुभवों ने भी उन्हें आर्किटेक्चर को केवल डिज़ाइन तक सीमित न रखकर, इसे एक सामाजिक दायित्व के रूप में देखने के लिए प्रेरित किया। सेंट्रल स्कूल कॉलोनी में रहने वाले लोगों के जीवन ने उन्हें विशेष रूप से यह महसूस कराया कि निर्मित वातावरण को सभी के लिए सुगम और समावेशी होना कितना महत्वपूर्ण है।

पेशेवर पृष्ठभूमि: अभ्यास से लेकर अकादमिक नेतृत्व तक
डॉ. संकट का करियर बहुआयामी और प्रभावशाली रहा है:

  • निजी वास्तुकला अभ्यास: मध्य-नब्बे के दशक में उन्होंने इंदौर में अपनी फर्म, ‘डिज़ाइन इनोवेशंस’ को सात वर्षों तक संचालित किया। उन्होंने इंदौर और महू में कई आवासीय और वाणिज्यिक परियोजनाओं पर काम किया।
  • अकादमिक शिक्षण: उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI), नई दिल्ली में सीनियर लेक्चरर के रूप में कार्य किया, और वर्तमान में एसपीए भोपाल में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
    प्रशासनिक नेतृत्व: उन्होंने एसपीए भोपाल में डीन (अकादमिक), वास्तुकला विभाग के प्रमुख, डीन (छात्र मामले), और परीक्षा नियंत्रक जैसे प्रमुख प्रशासनिक पदों पर कार्य किया है।

शोध का केंद्र और राष्ट्रीय योगदान
डॉ. संकट के शोध कार्य का केंद्र भारत की सामाजिक चुनौतियों का समाधान करना रहा है:

  • समावेशी डिज़ाइन और सुलभता: उनका शोध ‘यूनिवर्सल डिज़ाइन’, ‘समावेशी डिज़ाइन’, ‘सुलभता’ और ‘विकलांगता अध्ययन’ पर केंद्रित है। उनकी पीएचडी का शोध “भारतीय बुजुर्गों के लिए शहरी आवासों में समावेशी रहने वाले वातावरण का निर्माण” पर केंद्रित था।
  •  सुगम्य भारत अभियान का समर्थन: उनका शोध पूरी तरह से भारत सरकार के ‘सुगम्य भारत अभियान’ को सफल बनाने पर केंद्रित है। उन्होंने एसपीए भोपाल में ह्यूमन सेंट्रिक रिसर्च लैब की स्थापना की है, ताकि ‘यूनिवर्सल डिज़ाइन और एक्सेस ऑडिट’ में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की कमी को दूर किया जा सके।
  • व्यावहारिक प्रशिक्षण: उन्होंने 48 छात्रों के साथ मिलकर उज्जैन में श्री महाकाल परिसर और श्रद्धय अटल अनुभूति उद्यान जैसे स्थलों का विस्तृत पहुँच ऑडिट (Access Audit) कराया, जिससे छात्रों को सुलभता मानकों का व्यावहारिक ज्ञान मिल सके।

अकादमिक कीर्तिमान और सम्मान

  • गोल्ड मेडल: मास्टर्स (एकिस्टिक्स) की डिग्री के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया से सम्मानित।
  • IIA अवार्ड 2025: ‘बेस्ट आर्किटेक्चर डिज़ाइन रिसर्च’ के लिए।
  • एनसीपीडीपी-एमपीएचएएसआईएस राष्ट्रीय पुरस्कार (2016): सुलभता और विकलांगता अध्ययन के क्षेत्र में योगदान के लिए।

एक समावेशी भविष्य का निर्माण
डॉ. संदीप संकट का जीवन और कार्य इस बात का प्रमाण है कि वास्तुकला केवल ईंटों और मोर्टार का डिज़ाइन नहीं है, बल्कि यह मानवीय जरूरतों और सामाजिक समावेश का सशक्त माध्यम है। उनकी शुरुआती रचनात्मक प्रेरणा ने उन्हें एक ऐसे मार्ग पर अग्रसर किया जहाँ उन्होंने अपनी विशेषज्ञता को सबसे वंचित समूहों की सेवा में लगाया।

दो दशकों से अधिक का उनका बहुआयामी अनुभव, चाहे वह निजी फर्म में हो या अकादमिक नेतृत्व में, समावेशी डिज़ाइन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। एक शिक्षाविद के रूप में, वह भावी वास्तुकारों को केवल सुंदर इमारतें बनाना नहीं, बल्कि ऐसी इमारतें बनाना सिखा रहे हैं जो सभी के लिए सुलभ हों। डॉ. संकट सही मायनों में सुगम्यता के शिल्पकार हैं, जो अपने शोध और प्रशिक्षण के माध्यम से भारत को एक अधिक सुलभ और समावेशी राष्ट्र बनाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।

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