मुंबई

चॉकलेट से बनी गणपति की ‘अर्धनारी’ मूर्ति: महिलाओं की सुरक्षा पर रिंतु राठौड़ का अनूठा संदेश

चॉकलेट से बनी गणपति की 'अर्धनारी' मूर्ति: महिलाओं की सुरक्षा पर रिंतु राठौड़ का अनूठा संदेश

मुंबई की एक कलाकार, रिंतु राठौड़, ने इस साल गणपति उत्सव में कुछ खास करने का निश्चय किया। उन्होंने ‘अर्धनारी’ गणपति की मूर्ति बनाकर नारी और पुरुष के बीच संतुलन का संदेश दिया। यह मूर्ति न सिर्फ अद्वितीय है बल्कि एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे, महिला अपराधों की बढ़ती घटनाओं, को भी उजागर करती है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे रिंतु ने अपनी कला के ज़रिए यह संदेश दिया और मूर्ति के पीछे की कहानी क्या है।

अर्धनारी गणपति: एक अनूठी पहल

रिंतु राठौड़, जो कि चॉकलेट से मूर्तियां बनाने में माहिर हैं, ने इस बार गणपति की एक खास मूर्ति बनाई है जो कि अर्धनारी (Ardhanari) के रूप में है। इस रूप में मूर्ति का आधा हिस्सा पुरुष और आधा महिला है, जो नारी और पुरुष के बीच संतुलन और समानता का प्रतीक है। यह मूर्ति कोलकाता की एक दर्दनाक घटना से प्रेरित है, जहाँ एक महिला डॉक्टर के साथ हुए अपराध ने देश को झकझोर दिया था।

रिंतु का कहना है कि इस गणपति की विशेषता यह है कि यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि आज के समय में सामाजिक संदेश भी देता है। उनका मानना है कि अर्धनारी का यह रूप हमें याद दिलाता है कि समाज में नारी और पुरुष दोनों को बराबर सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए।

कोलकाता की घटना और मूर्ति का संदेश

कोलकाता के RG Kar मेडिकल कॉलेज की घटना, जिसमें एक महिला डॉक्टर पर हमला हुआ, ने रिंतु को यह मूर्ति बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इस घटना ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि समाज में नारी का स्थान क्या है और किस तरह से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

रिंतु ने इस मूर्ति के ज़रिए यह संदेश दिया कि अगर नारी का सम्मान और सुरक्षा नहीं होती, तो उन्हें माँ काली का रूप धारण करना पड़ेगा। यह मूर्ति नारी और पुरुष के बीच के संतुलन की बात करती है, और यह संदेश देती है कि अगर यह संतुलन बिगड़ता है, तो समाज में अशांति फैल जाती है।

चॉकलेट से बनी अनोखी मूर्ति

रिंतु राठौड़ ने इस गणपति की मूर्ति को 30 किलोग्राम चॉकलेट से बनाया है, जिसमें 20 किलो डार्क चॉकलेट और 10 किलो व्हाइट चॉकलेट का उपयोग किया गया है। यह 25 इंच लंबी मूर्ति उनके मुंबई के सांताक्रूज़ स्थित घर में स्थापित की गई है। उनकी यह मूर्ति न केवल कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति भी सजगता को दर्शाती है, क्योंकि यह पूरी तरह से eco-friendly (इको-फ्रेंडली) है।

अनंत चतुर्दशी के दिन, जो गणपति उत्सव के समापन का दिन होता है, इस चॉकलेट गणपति को दूध में विसर्जित किया जाएगा। इसके बाद उस दूध को गरीब बच्चों में बाँट दिया जाएगा, ताकि यह त्यौहार सिर्फ पूजा तक ही सीमित न रहे, बल्कि इसका सामाजिक लाभ भी हो।

संदेश और सामाजिक जागरूकता

रिंतु राठौड़ का यह अनूठा गणपति सिर्फ एक मूर्ति नहीं है, बल्कि यह एक आवाज़ है उन सभी महिलाओं के लिए जो समाज में सुरक्षा और सम्मान की हक़दार हैं। इस मूर्ति के ज़रिए रिंतु ने यह संदेश दिया कि समाज में नारी और पुरुष के बीच संतुलन बनाना ज़रूरी है, और अगर यह संतुलन नहीं बना, तो समाज में असमानता और अपराध बढ़ेंगे।

कोलकाता की घटना ने एक बार फिर यह साबित किया कि महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। लेकिन ऐसी कलात्मक पहलें हमें याद दिलाती हैं कि समाज में बदलाव लाने के लिए जागरूकता फैलाना ज़रूरी है, और इस दिशा में एक कदम रिंतु ने अपने गणपति के रूप में उठाया है।

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