ऑनटीवी स्पेशल

क्या सच में भारतीय युवा “बुलबुले” में जी रहे हैं? अशनीर ग्रोवर का दावा मचा रहा है तहलका!

अशनीर ग्रोवर
Image Source - Web

अशनीर ग्रोवर, जो भारत के जाने-माने उद्यमी हैं, ने हाल ही में एक बयान दिया है जो देश भर में चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल उन्होंने कहा है कि भारत के 20 साल के युवा एक तरह के “बुलबुले” में रह रहे हैं। ये बात उन्होंने एक पॉडकास्ट में कही, जिसके बाद से सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझें।

अशनीर ग्रोवर ने अपने बयान में भारतीय और अमेरिकी युवाओं के बीच तुलना की। उनका कहना था कि अमेरिका में 16 साल के बच्चे भी मैकडॉनल्ड्स जैसी जगहों पर काम करके जीवन का अनुभव हासिल करते हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता। उनके अनुसार, ये अंतर दोनों देशों के युवाओं के व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव में बड़ा फर्क पैदा करता है।

ग्रोवर का मानना है कि भारतीय समाज में युवाओं को एक सुरक्षित और सीमित वातावरण में रखा जाता है। इससे वे बाहरी दुनिया की वास्तविकताओं से दूर रहते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि भारत में अक्सर एक ही तरह के लोगों के बीच समूह बनाए जाते हैं, जिससे विवाह भी उसी वर्ग में होता है। ये प्रथा, उनके अनुसार, युवाओं को विविध अनुभवों से वंचित रखती है।

इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। कई लोगों ने ग्रोवर की बात से सहमति जताई है, जबकि कुछ ने उनकी आलोचना की है। एक यूजर ने लिखा कि ग्रोवर सिर्फ 10% युवाओं की बात कर रहे हैं, बाकी 90% किसी बुलबुले में नहीं रह रहे। दूसरे यूजर ने कहा कि पहले शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए, फिर नौकरी पर।

कई लोगों ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि भारत में युवाओं के लिए पार्ट-टाइम नौकरियों की कमी है। उन्होंने कहा कि अगर मैकडॉनल्ड्स या बर्गर किंग जैसी जगहों पर पार्ट-टाइम काम मिलता, तो भारतीय युवा भी वहां काम करते। लेकिन ऐसे अवसर बहुत कम हैं।
इस विवाद ने भारतीय शिक्षा प्रणाली और रोजगार के अवसरों पर भी सवाल उठाए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक ज्ञान की कमी है। वहीं, कुछ लोग कह रहे हैं कि भारतीय युवा भी मेहनती और जागरूक हैं, बस उन्हें सही मौके की जरूरत है।
ये विवाद कई महत्वपूर्ण सवाल उठाता है। क्या सच में भारतीय युवा दुनिया की वास्तविकताओं से कटे हुए हैं? क्या हमारी शिक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत है? क्या रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने की आवश्यकता है? ये सवाल न केवल युवाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं।

अंत में, ये कहना उचित होगा कि हर समाज की अपनी विशेषताएं और चुनौतियां होती हैं। भारत और अमेरिका के बीच तुलना करते समय हमें दोनों देशों की सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए। साथ ही, ये भी सोचना चाहिए कि हम अपने युवाओं को कैसे बेहतर अवसर और अनुभव दे सकते हैं, ताकि वे दुनिया के लिए तैयार हो सकें।
ये विवाद निश्चित रूप से एक गंभीर चर्चा की शुरुआत है। इससे हमें अपने समाज, शिक्षा प्रणाली और युवाओं के भविष्य पर गहराई से सोचने का मौका मिलता है। चाहे हम ग्रोवर की बात से सहमत हों या न हों, ये बहस हमें एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकती है।

ये भी पढ़ें: पीएम श्री: क्या ये योजना बदल देगी भारत की शिक्षा का चेहरा?

You may also like