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Army Uses Rats and Bees for Defense: चूहों को क्यों रिक्रूट कर रहीं सेनाएं, भारतीय सेना मधुमक्खियों से कराती है कौन सा टास्क

Army Uses Rats and Bees for Defense: चूहों को क्यों रिक्रूट कर रहीं सेनाएं, भारतीय सेना मधुमक्खियों से कराती है कौन सा टास्क

Army Uses Rats and Bees for Defense: क्या आपने कभी सुना है कि सेनाएं चूहों को अपने मिशन में शामिल करती हैं या मधुमक्खियों से खास काम करवाती हैं? यह सुनने में अटपटा लग सकता है, लेकिन यह सच है। दुनिया भर की सेनाएं जानवरों की अनोखी क्षमताओं का उपयोग करके अपने कार्यों को और प्रभावी बना रही हैं। इस लेख में हम इस रोचक विषय को सरल और आकर्षक तरीके से समझेंगे, ताकि नई पीढ़ी के पाठक इसे आसानी से समझ सकें। इस लेख में दो SEO-अनुकूल कीफ्रेज़ का उपयोग किया जाएगा: सैन्य प्रशिक्षण (Military Training) और जानवरों का सैन्य उपयोग (Animal Military Use)।

कई देशों की सेनाएं चूहों को विशेष रूप से प्रशिक्षित करके उन्हें खतरनाक मिशनों में शामिल करती हैं। ये चूहे कोई साधारण चूहे नहीं हैं, बल्कि अफ्रीकी विशाल थैलीदार चूहे हैं, जिन्हें अंग्रेजी में African Giant Pouched Rats कहा जाता है। इन्हें हीरोरैट्स (HeroRATs) के नाम से भी जाना जाता है। इन चूहों को सैन्य प्रशिक्षण (Military Training) के तहत विस्फोटकों और बारूदी सुरंगों का पता लगाने के लिए तैयार किया जाता है। इनकी सूंघने की क्षमता इतनी तेज होती है कि ये टीएनटी जैसे विस्फोटक पदार्थों को आसानी से ढूंढ लेते हैं। इनका वजन इतना कम होता है कि बारूदी सुरंगों पर चलने से विस्फोट नहीं होता, जिससे ये इस काम के लिए बेहद उपयुक्त हैं।

कंबोडिया, मोज़ाम्बिक और अंगोला जैसे देशों में, जहां बारूदी सुरंगें आज भी बड़ा खतरा बनी हुई हैं, इन चूहों का उपयोग बहुत प्रभावी साबित हुआ है। एक प्रशिक्षित चूहा 30 मिनट में टेनिस कोर्ट के आकार के क्षेत्र को स्कैन कर सकता है, जबकि इंसान को यही काम करने में कई दिन लग सकते हैं। ये चूहे रात में भी काम कर सकते हैं और अंधेरे में अपनी सूंघने की क्षमता का उपयोग करते हैं। जानवरों का सैन्य उपयोग (Animal Military Use) का यह उदाहरण दर्शाता है कि प्रकृति की छोटी-सी रचना भी कितने बड़े काम कर सकती है।

इन चूहों की खासियत क्या है? ये चूहे आकार में सामान्य चूहों से बड़े होते हैं, जिनका शरीर 25 से 45 सेंटीमीटर और पूंछ 30 से 50 सेंटीमीटर लंबी होती है। इनके गालों में थैली जैसी संरचना होती है, जिसमें ये भोजन जमा करते हैं, इसलिए इन्हें पाउच रैट्स कहा जाता है। ये फल, सब्जियां और छोटे कीड़े खाते हैं। इनकी बुद्धिमत्ता और प्रशिक्षण के बाद की भरोसेमंदी इन्हें सैन्य कार्यों के लिए आदर्श बनाती है। इजरायल में इन चूहों को हवाई अड्डों पर विस्फोटक सामग्री की जांच के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जबकि यूक्रेन में ये बारूदी सुरंगों का पता लगाने में मदद करते हैं।

चूहों के अलावा, भारत में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने मधुमक्खियों को एक अनोखे तरीके से सैन्य प्रशिक्षण (Military Training) में शामिल किया है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में बीएसएफ ने मधुमक्खी पालन के डिब्बों को कंटीली बाड़ पर टांगना शुरू किया है। इन डिब्बों में मधुमक्खियों के छत्ते होते हैं। जब कोई घुसपैठिया या तस्कर सीमा पार करने की कोशिश करता है और बाड़ को छूता है, तो मधुमक्खियां हमला कर देती हैं। उनके डंक से डरकर घुसपैठिए पीछे हट जाते हैं। इस रणनीति में मधुमक्खियों के लिए फूलदार पौधे लगाए जाते हैं, ताकि उन्हें प्राकृतिक भोजन और आवास मिले। बीएसएफ जवानों को मधुमक्खी पालन की विशेष ट्रेनिंग भी दी जाती है।

यह रणनीति न केवल सस्ती और प्रभावी है, बल्कि यह जानवरों का सैन्य उपयोग (Animal Military Use) का एक अनोखा उदाहरण भी है। मधुमक्खियों की इस भूमिका से पता चलता है कि प्रकृति के छोटे-छोटे जीव भी देश की सुरक्षा में योगदान दे सकते हैं। चूहों और मधुमक्खियों की तरह ही, कुछ देशों में डॉल्फिन और सील जैसे समुद्री जीवों को भी सैन्य कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी नौसेना अपने “नेवी मरीन मैमल प्रोग्राम” के तहत डॉल्फिन और कैलिफोर्निया सील को पानी के नीचे बारूदी सुरंगों और विस्फोटकों का पता लगाने के लिए तैयार करती है।

इन जानवरों की खासियत उनकी प्राकृतिक क्षमताओं में छिपी है। चूहों की सूंघने की शक्ति, मधुमक्खियों की आक्रामक रक्षा और समुद्री जीवों की पानी में गतिशीलता उन्हें सैन्य कार्यों के लिए अनमोल बनाती है। ये जानवर न केवल सस्ते और रखरखाव में आसान हैं, बल्कि ये उन खतरनाक जगहों पर काम कर सकते हैं, जहां इंसान या बड़े जानवर नहीं पहुंच सकते।

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