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Badlapur Encounter: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बदलापुर मुठभेड़ की नई जांच का आदेश

Badlapur Encounter: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बदलापुर मुठभेड़ की नई जांच का आदेश

Badlapur Encounter: महाराष्ट्र के बदलापुर में पिछले साल सितंबर 2024 में हुई एक मुठभेड़ ने पूरे देश का ध्यान खींचा था। इस घटना में अक्षय शिंदे, जो एक स्कूल में नौकर के रूप में काम करते थे, की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी। यह मामला तब और चर्चा में आया जब उनके परिवार ने इसे एक फर्जी मुठभेड़ करार दिया। अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस मामले की गहराई से जांच के लिए एक नई विशेष जांच टीम (Special Investigation Team) गठित करने का आदेश दिया है। यह कदम न केवल इस मामले की सच्चाई को सामने लाने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत की न्याय व्यवस्था कितनी गंभीरता से काम करती है। आइए, इस मामले की पूरी कहानी और नई जांच के महत्व को समझें।

यह कहानी शुरू होती है 23 सितंबर 2024 को, जब अक्षय शिंदे को तलोजा जेल से कल्याण पुलिस स्टेशन ले जाया जा रहा था। पुलिस के अनुसार, इस दौरान अक्षय ने एक पुलिसकर्मी का पिस्तौल छीन लिया और गोली चलाई, जिसमें एक पुलिसकर्मी, नीलेश मोरे, घायल हो गए। जवाबी कार्रवाई में वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर संजय शिंदे ने अक्षय पर गोली चलाई, जिससे उनकी मौत हो गई। पुलिस ने इसे आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई बताया। इस घटना के बाद मुंब्रा पुलिस स्टेशन में अक्षय के खिलाफ हत्या के प्रयास का एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज किया गया। हालांकि, अक्षय की मौत के संबंध में केवल एक आकस्मिक मृत्यु रिपोर्ट (ADR) दर्ज की गई।

लेकिन इस कहानी में कई सवाल उठे। अक्षय के परिवार ने दावा किया कि यह एक सुनियोजित फर्जी मुठभेड़ थी। उनके वकील, अमित कटर्नवरे, ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की। परिवार का कहना था कि अक्षय को जानबूझकर मारा गया, और इसमें राजनीतिक दबाव भी शामिल हो सकता है। इस मामले ने न केवल बदलापुर, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में हलचल मचा दी।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया। अप्रैल 2025 में, जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की बेंच ने महाराष्ट्र पुलिस और राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए। एक मजिस्ट्रेट जांच ने पहले ही संकेत दिए थे कि पुलिस की आत्मरक्षा की कहानी में कई खामियां हैं। इस जांच में पाया गया कि पुलिस ने अत्यधिक बल का उपयोग किया, और यह मुठभेड़ संदिग्ध थी। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में एक विशेष जांच टीम (Special Investigation Team) गठित की जाए, जिसका नेतृत्व मुंबई पुलिस के संयुक्त आयुक्त (अपराध) लखमी गौतम करें। साथ ही, कोर्ट ने दो दिनों के भीतर पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया।

लेकिन महाराष्ट्र सरकार और पुलिस ने इस आदेश का पूरी तरह पालन नहीं किया। हाई कोर्ट ने इसे आदेश का “खुला उल्लंघन” करार दिया और आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस और सरकार इस तरह न्यायिक आदेशों की अवहेलना करेंगे, तो यह समाज में गलत संदेश जाएगा। हाई कोर्ट की यह सख्ती दर्शाती है कि कानून के सामने कोई भी जवाबदेही से बच नहीं सकता।

महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार का तर्क था कि दूसरी प्राथमिकी दर्ज करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मुंब्रा पुलिस स्टेशन में पहले से ही एक प्राथमिकी दर्ज है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि हाई कोर्ट को जांच अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2025 को इस मामले की सुनवाई की। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और पी.बी. वराले की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश में संशोधन किया। कोर्ट ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (DGP) रश्मि शुक्ला को एक नई विशेष जांच टीम (Special Investigation Team) गठित करने का निर्देश दिया। साथ ही, यह स्पष्ट किया कि दूसरी प्राथमिकी की जरूरत नहीं है, और मौजूदा प्राथमिकी के आधार पर ही जांच होगी।

10 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को और स्पष्ट करते हुए कहा कि यह जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि जांच के लिए सभी जरूरी दस्तावेज और सबूत नई जांच टीम को सौंपे जाएं। इस आदेश ने मामले में एक नया मोड़ ला दिया, और अब सभी की नजर इस नई जांच पर है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, महाराष्ट्र DGP ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। नई विशेष जांच टीम (Special Investigation Team) का नेतृत्व डीआईजी रैंक के अधिकारी दत्तात्रय शिंदे करेंगे, जो मीरा भायंदर वसई विरार (MBVV) पुलिस में अतिरिक्त आयुक्त के रूप में तैनात हैं। दत्तात्रय शिंदे को इस क्षेत्र का अच्छा अनुभव है, क्योंकि वे पहले ठाणे में अतिरिक्त आयुक्त रह चुके हैं। उनकी टीम में MBVV के ACP उमेश माने और MBVV तथा नवी मुंबई पुलिस आयुक्तालय के चार अन्य अधिकारी शामिल हैं।

यह नई जांच टीम अब मुंब्रा पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर जांच करेगी। एक अधिकारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बाद, सभी जांच सामग्री को इस नई टीम को सौंप दिया गया है। अब यह टीम इस बात की गहराई से जांच करेगी कि क्या यह मुठभेड़ वाकई आत्मरक्षा में थी, या इसमें कोई साजिश थी। इस जांच से न केवल अक्षय शिंदे की मौत की सच्चाई सामने आएगी, बल्कि यह भी तय होगा कि पुलिस की जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाए।

बदलापुर मुठभेड़ मामला केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं है; इसका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी गहरा है। अक्षय शिंदे पर दो नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण का आरोप था, जिसके बाद बदलापुर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस घटना ने महाराष्ट्र में कानून-व्यवस्था और पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए। कुछ राजनीतिक नेताओं, जैसे NCP की सुप्रिया सुले और कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण, ने इस मुठभेड़ को “न्याय व्यवस्था का पतन” करार दिया। वहीं, पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख ने दावा किया कि यह मुठभेड़ एक BJP नेता से जुड़े स्कूल को बचाने की कोशिश थी।

इस मामले ने पुलिस मुठभेड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए हैं। एक मजिस्ट्रेट जांच ने पहले ही संकेत दिए थे कि पुलिस का आत्मरक्षा का दावा संदिग्ध है। ऐसे में, नई सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा गठित जांच टीम से उम्मीद है कि यह न केवल इस मामले की सच्चाई को उजागर करेगी, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए भी दिशा-निर्देश देगी।

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