बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण 6 नवंबर को 121 सीटों पर होने जा रहा है। यह चरण न केवल 18 जिलों के भाग्य का फैसला करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि राज्य की राजनीति किस ओर रुख करेगी। इस चरण में तेजस्वी यादव, सम्राट चौधरी, और तेज प्रताप यादव जैसे बड़े राजनीतिक दिग्गजों की किस्मत दाँव पर है।
प्रमुख हॉट सीटों का चुनावी समीकरण
पहले चरण में कई ऐसी सीटें हैं जिन पर पूरे राज्य की निगाहें टिकी हुई हैं। यहां मुकाबला सीधे-सीधे जातीय समीकरण (Caste Equations), विकास के वादे और एंटी-इन्कम्बेंसी (सत्ता विरोधी लहर) के इर्द-गिर्द घूम रहा है।

राघोपुर (Raghopur): लालू परिवार का गढ़ और साख की लड़ाई
- उम्मीदवार: तेजस्वी यादव (राजद, महागठबंधन) बनाम सतीश कुमार यादव (भाजपा, एनडीए)।
- समीकरण: यह सीट लालू परिवार का पारंपरिक गढ़ रही है (लालू प्रसाद और राबड़ी देवी दोनों यहां से मुख्यमंत्री रहते हुए प्रतिनिधित्व कर चुके हैं)।
- यहां यादव मतदाता (लगभग 30%) निर्णायक भूमिका में हैं, जो लालू परिवार के पारंपरिक समर्थक माने जाते हैं।
- भूमिहार और पासवान मतदाताओं की संख्या भी अच्छी है, जिन पर एनडीए की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
- विश्लेषण: तेजस्वी यादव के लिए यह सीट उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का सवाल है। 2015 में उन्होंने यह सीट सतीश कुमार यादव से छीन ली थी। इस बार युवा नेतृत्व, रोजगार के मुद्दे और एंटी-इन्कम्बेंसी के बीच यह मुकाबला कड़ा माना जा रहा है। भाजपा, सतीश कुमार के माध्यम से तेजस्वी को उनके ही गढ़ में चुनौती देकर उनकी धार कुंद करना चाहती है।

तारापुर (Tarapur): डिप्टी CM की प्रतिष्ठा और JDU का किला
- उम्मीदवार: सम्राट चौधरी (उपमुख्यमंत्री, भाजपा, एनडीए) बनाम अरुण कुमार साह (राजद, महागठबंधन)।
- समीकरण: यह सीट मुंगेर जिले की है और कुशवाहा (कोइरी) और वैश्य मतदाताओं की निर्णायक भूमिका के लिए जानी जाती है।
- सम्राट चौधरी स्वयं कुशवाहा समुदाय से आते हैं, जिससे एनडीए को इस वर्ग का लाभ मिलने की उम्मीद है।
- राजद ने वैश्य समुदाय से आने वाले अरुण कुमार साह को टिकट दिया है, ताकि वैश्य और यादव समीकरण को जोड़कर एनडीए के किले को तोड़ा जा सके।
- विश्लेषण: यह सीट परंपरागत रूप से जेडीयू का गढ़ रही है (2021 के उपचुनाव में भी जेडीयू जीती थी)। सम्राट चौधरी के आने से मुकाबला हाई-प्रोफाइल हो गया है। एनडीए के लिए यह सीट जीतना सम्राट चौधरी के कद और जेडीयू के पारंपरिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। मुकाबला बेहद करीबी माना जा रहा है।

मोकामा (Mokama): बाहुबली बनाम बाहुबली की जंग
- उम्मीदवार: अनंत सिंह (बाहुबली नेता, JDU – मौजूदा खबरें JDU के टिकट की बता रही हैं) बनाम वीणा देवी (राजद, महागठबंधन)।
- समीकरण: यह सीट बाहुबल, जाति (मुख्यतः भूमिहार) और व्यक्तिगत दबदबे के आधार पर जीती जाती है।
- अनंत सिंह का इस क्षेत्र में व्यक्तिगत वर्चस्व है और उन्हें भूमिहार समुदाय का बड़ा समर्थन प्राप्त है।
- राजद ने बाहुबली नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को टिकट दिया है। इस तरह यह लड़ाई दो शक्तिशाली परिवारों के बीच बन गई है।
- विश्लेषण: अनंत सिंह का हाल ही में गिरफ्तार होना एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। इस गिरफ्तारी से जहां उनके समर्थकों में सहानुभूति लहर पैदा हो सकती है, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन इसे कानून के शासन और अपराधियों को संरक्षण देने के मुद्दे पर भुनाने की कोशिश कर रहा है।

बड़े मुद्दे जो चुनाव की दिशा तय करेंगे
पहले चरण के मतदान में मतदाताओं को प्रभावित करने वाले मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं:
- रोजगार और पलायन (Job and Migration): तेजस्वी यादव का ’10 लाख नौकरियों’ का वादा और सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले युवाओं का बड़ा वर्ग इस चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर है। पलायन से प्रभावित इस क्षेत्र में यह मुद्दा महागठबंधन के लिए उम्मीद की किरण है।
- सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency): नीतीश कुमार सरकार के लंबे कार्यकाल के कारण जनता में थकान महसूस की जा रही है, जिसका खामियाजा एनडीए को उठाना पड़ सकता है।
- जातीय समीकरण (Caste Politics): बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है। जाति आधारित जनगणना की मांग और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को साधने की दोनों गठबंधनों की कोशिशें निर्णायक होंगी।
- कानून और व्यवस्था (Law and Order): मोकामा में ‘बाहुबलियों’ की सक्रियता और अन्य क्षेत्रों में अपराध की घटनाएं एनडीए सरकार की ‘सुशासन’ की छवि को चुनौती दे रही हैं।
निष्कर्ष और राजनीतिक परिदृश्य
6 नवंबर का मतदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन क्षेत्रों पर केंद्रित है जहाँ 2020 में एनडीए ने मजबूत पकड़ बनाई थी।
- एनडीए (NDA): को अपनी पुरानी सीटों को बचाए रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील, विकास कार्यों और जातीय समीकरणों पर निर्भर रहना होगा।
- महागठबंधन (Mahagathbandhan): के लिए यह चरण तेजस्वी यादव के युवा नेतृत्व, रोजगार के वादे और एंटी-इन्कम्बेंसी को वोटों में बदलने का पहला मौका होगा।
ओपिनियन पोल्स मुकाबला बहुत करीबी (Neck-and-Neck) बता रहे हैं। प्रशांत किशोर की पार्टी की उपस्थिति कुछ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बनाकर वोटों के बँटवारे को जन्म दे सकती है, जिससे दोनों प्रमुख गठबंधनों के समीकरण बिगड़ सकते हैं।
परिणाम चाहे जो भी हो, 6 नवंबर को बिहार की राजनीति का भविष्य तय होना शुरू हो जाएगा, जिसके नतीजे 14 नवंबर को सबके सामने होंगे।





























