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Bihar Flood: हर साल डूबता बिहार- क्या कभी खत्म होगी यह त्रासदी? जानिए क्यों नाकाम हो रहे हैं सारे प्रयास!

Bihar Flood: हर साल डूबता बिहार- क्या कभी खत्म होगी यह त्रासदी? जानिए क्यों नाकाम हो रहे हैं सारे प्रयास!

हर साल की तरह इस बार भी बिहार बाढ़ (Bihar Flood) की चपेट में है। लाखों लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं, घर-खेत डूब गए हैं, और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। आइए समझते हैं कि आखिर क्यों बिहार हर साल इस समस्या से जूझता है और क्या इसका कोई स्थायी समाधान संभव है।

बिहार बाढ़ (Bihar Flood) की समस्या दशकों पुरानी है। यह राज्य भौगोलिक रूप से ऐसी जगह पर स्थित है जहां कई बड़ी नदियां बहती हैं। गंगा, कोसी, गंडक, बागमती जैसी नदियां जब मानसून के दौरान उफान पर आती हैं, तो बिहार के बड़े हिस्से में जलप्रलय की स्थिति बन जाती है। इस साल भी बिहार के 12 जिलों में बाढ़ के हालात हैं, जिनमें बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, बेगूसराय, लखीसराय, मुंगेर, खगड़िया, भागलपुर और कटिहार शामिल हैं।

बाढ़ के प्रमुख कारण

बिहार में बाढ़ आने के कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण है नेपाल से आने वाली नदियां। नेपाल में जब भारी बारिश होती है, तो वहां से आने वाली नदियों में पानी का प्रवाह अचानक बढ़ जाता है। यह पानी जब बिहार पहुंचता है, तो बाढ़ का रूप ले लेता है। उदाहरण के लिए, कोसी नदी को “बिहार का शोक” भी कहा जाता है, क्योंकि यह अक्सर अपना मार्ग बदलकर बड़े पैमाने पर तबाही मचाती है।

दूसरा महत्वपूर्ण कारण है नदियों के किनारे अतिक्रमण और अनियोजित विकास। लोग नदियों के किनारे बस्तियां बसा लेते हैं, जिससे नदी का प्राकृतिक बहाव बाधित होता है। जब अधिक पानी आता है, तो यह इन बस्तियों में घुस जाता है, जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान होता है।

तीसरा कारण है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव। पिछले कुछ दशकों में मौसम के पैटर्न में बदलाव आया है। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं अत्यधिक बारिश हो रही है। इससे नदियों के जल प्रवाह में अनियमितता आई है, जो बाढ़ की स्थिति को और बिगाड़ रही है।

बाढ़ का व्यापक प्रभाव

बाढ़ से तबाही (Flood Destruction) का असर बिहार के सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर गहरा पड़ता है। हर साल लाखों लोग विस्थापित हो जाते हैं। उन्हें अपने घर छोड़कर राहत शिविरों में रहना पड़ता है। 2023 में ही, बाढ़ से 25 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे।

कृषि क्षेत्र पर बाढ़ का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। हजारों एकड़ फसल पानी में डूब जाती है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है। उदाहरण के लिए, 2019 की बाढ़ में बिहार में लगभग 13 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुई थी।

बुनियादी ढांचे को भी बड़ा नुकसान होता है। सड़कें, पुल, बिजली के खंभे बह जाते हैं। स्कूल और अस्पताल बंद हो जाते हैं, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बाधित होती हैं। 2023 में ही, बाढ़ के कारण बिहार में 200 से अधिक स्कूल क्षतिग्रस्त हुए थे।

बाढ़ के बाद भी समस्याएं कम नहीं होतीं। पानी के साथ कई संक्रामक बीमारियां फैलने लगती हैं। डायरिया, मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। पीने के साफ पानी की कमी एक बड़ी चुनौती बन जाती है। 2023 की बाढ़ के दौरान, बिहार में लगभग 500 मेडिकल टीमों को तैनात किया गया था ताकि बीमारियों के प्रसार को रोका जा सके।

सरकारी प्रयास और उनकी सीमाएं

बिहार सरकार हर साल बाढ़ से निपटने के लिए कई कदम उठाती है। बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की गई है, जिससे लोगों को पहले से सतर्क किया जा सके। NDRF और SDRF की टीमें तैनात की जाती हैं। 2023 में, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 16 NDRF और 12 SDRF टीमें लगाई गई थीं।

राहत शिविर लगाए जाते हैं, जहां लोगों को आश्रय, भोजन और चिकित्सा सुविधाएं दी जाती हैं। 2023 में ही, बिहार सरकार ने 700 से अधिक राहत शिविर स्थापित किए थे, जहां लगभग 2 लाख लोगों को आश्रय दिया गया था।

लेकिन ये सब उपाय अस्थायी हैं। बाढ़ से तबाही (Flood Destruction) को रोकने के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। सरकार ने कई बड़ी परियोजनाएं भी शुरू की हैं। जैसे कि कोसी नदी परियोजना, जिसकी शुरुआत 1954 में हुई थी। इस परियोजना के तहत बांध और तटबंध बनाए गए, लेकिन यह अपने मुख्य उद्देश्य – बाढ़ नियंत्रण – में पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है।

नदियों के किनारे तटबंधों का निर्माण और मजबूतीकरण किया जा रहा है। 2023 में, बिहार सरकार ने 3,731 किलोमीटर लंबे तटबंधों के निर्माण और मरम्मत का काम किया। लेकिन इन तटबंधों के रखरखाव में कई बार लापरवाही देखी जाती है, जिससे बाढ़ के समय ये टूट जाते हैं।

इन प्रयासों को पूरा करने में कई चुनौतियां आती हैं। सबसे बड़ी चुनौती है नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की। चूंकि ज्यादातर नदियां नेपाल से आती हैं, इसलिए उनके प्रबंधन के लिए दोनों देशों के बीच समन्वय आवश्यक है। 1954 में भारत-नेपाल के बीच कोसी समझौता हुआ था, लेकिन इसके बावजूद बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।

वित्तीय संसाधनों की कमी एक अन्य बड़ी बाधा है। इतनी बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। 2023-24 के बजट में बिहार सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के लिए 1,159 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह राशि अपर्याप्त है।

स्थानीय समुदायों का सहयोग प्राप्त करना भी एक चुनौती है। कई बार लोग नदियों के किनारे से विस्थापित होने को तैयार नहीं होते। इससे बाढ़ नियंत्रण के कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है। 2023 में, कोसी नदी के किनारे एक नए तटबंध के निर्माण में स्थानीय विरोध के कारण देरी हुई थी।

इन चुनौतियों के बावजूद, बिहार सरकार बाढ़ से निपटने के लिए नए तरीकों पर काम कर रही है। आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। जैसे कि सैटेलाइट इमेजरी से नदियों की निगरानी, मोबाइल ऐप के माध्यम से लोगों को रियल-टाइम अलर्ट भेजना। 2023 में, बिहार सरकार ने एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया था जिसके माध्यम से लोगों को बाढ़ की चेतावनी दी जाती है।

बिहार में बाढ़ की समस्या जटिल है और इसका समाधान भी आसान नहीं है। यह एक ऐसी चुनौती है जिसमें प्रकृति, मानव और प्रौद्योगिकी, तीनों की भूमिका है। इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें नदी प्रबंधन, शहरी नियोजन, पर्यावरण संरक्षण और आपदा प्रबंधन सभी शामिल हों। केवल तभी हम इस प्राकृतिक आपदा से बेहतर तरीके से निपट पाएंगे और बिहार के लोगों को हर साल होने वाली इस तबाही से बचा पाएंगे।

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